अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

आते रहा करो

Written By: AjitGupta - Apr• 17•20

निंदक टाइप के लोग बड़े कमाल के होते हैं, किसी की बाल की खाल निकालनी हो तो ये ही याद आते हैं। क्या मजाल ऐसे बन्दे किसी की तारीफ कर दें, कोई ना कोई अवगुण निकाल ही लेते हैं। आप कहेंगे कि इसमें क्या कमाल है, मैं कहती हूँ की कमाल ही कमाल है। तभी तो कवि ने भी कह दिया कि निंदक नियरे राखिय़े। आंगन में अच्छी सी कुटिया बनाकर इन्हें जगह देनी चाहिये। अब कल की ही बात ले लीजिए, बन्दा लाकडाउन के आंदोलन की निंदा करके चले गया। एण्टी वायरस बनाने में जितना दिमाग चाहिये उतना ही दिमाग निंदा करने में लगता है, ऐसे ही नहीं कपिल सिब्बल जैसे लोग रोज उग आते हैं और लोग इन्हें हाथों हाथ लेते हैं। किसी के परचक्खे उड़ता देख आनन्द आता है लोगों को।

लेकिन बन्दा सच्चा होना चाहिये, यह नहीं की किसी ने कागज पर लिख दिया, थोड़ी मशक्कत करा ली और बन्दा आकर बक गया। ऐसे नहीं निंदक बन जाओगे प्यारे लाल। खुद का दिमाग  होना चाहिये तब जाकर अंगद की तरह पैर जमा पाओंगे! माना कि तुम तुरप के पत्ते के समान बोल गये कि लोकडाउन दवा नहीं है, लेकिन दवा से कम भी नहीं है! छूत की बीमारी को संक्रमण से बचा लो तो दवा जैसा ही काम करती है! ढूंढ-ढूंढकर लाते तो बहुत हो लेकिन खुद का दिमाग नहीं होने से सारा गुड़-गोबर हो जाता है। मेरे हीरालाल खुद को खुरचो, तब जाकर हीरे में चमक आएगी। कब तक कॉपी-पेस्ट करके काम चलाते रहोंगे! नेता बनना है तो खुद का ही दिमाग चाहिये नहीं तो ना घोड़ा और ना गधा, कुछ नहीं बन पाओगे।

खुद को कभी कन्हैया लाल बना लेते हो, कभी कजरी जैसा तो कभी अहमद पटेल की नकल करते हो, लेकिन सारे ही जतन बेकार हो जाते हैं क्योंकि ऑरिजिनल नहीं हैं ना! तुम ने कभी भी सुना है कि कोई भी व्यक्ति यह कह रहा हो कि मैं गाँधी परिवार के कुल दीपक जैसा बनना चाहता हूँ! बस तुम ही लगे पड़े हो, लोगों के पीछे! कभी यह बन जाऊँ, कभी वह बन जाऊँ! जब तक ऑरिजनल निंदक नहीं बनोंगे तब तक तुम्हारा कुछ नहीं होने का। कुछ और कुटिल लोगों के साथ रहो, उनको अपना गुरु मानो और धार पैनी करो। नकल से तो कुछ नहीं मिलने वाला। प्रेस के सामने आओ और मनोरंजन करके चले जाओ, बस यही काम रह गया है तुम्हारा। अब तो तुम्हारे पास माँ का बेटा होने के अतिरिक्त कोई आधार-कार्ड भी नहीं है, फिर भी तुम मनोरंजन करने चले आते हों और हमारी  प्रतिभा को भी लिखने को उकसा जाते हो, इसके लिये तो आभार बनता ही है। कब से सोशल मीडिया खामोश सी थी, तुम्हारे आने से हलचल तो हुई। आते रहा करो। निंदक तो नहीं बन सकते, हाँ वैसे ही आ जाया करो, कुछ तो मसाला मिल ही जाता है।

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