अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

खबर बहादुर

Written By: AjitGupta - Jul• 17•12

 

 

हमारे देश में राय-बहादुरों का कमी नहीं होती। आपको हर घर में, मोहल्‍ले में, नगर में जितने ढूंढों मिल जाएंगे। आप कैसी भी मुसीबत में हों, वे आपको सुखी जीवन का कोई न कोई सुझाव दे ही देंगे। इन्‍हीं राय-बहादुरों की तर्ज पर एक जमात और उग रही है, वह है खबर-बहादुर। जैसे राय-बहादुर करता धरता कुछ नहीं है लेकिन अपनी राय से सुर्खियों में अचानक ही बन जाता है वैसे ही खबर-बहादुर भी करता धरता कुछ नहीं है बस खबरों में बना रहता है। सुबह का समाचार पत्र जैसे ही आप खोलते हैं, कहीं न कहीं ऐसी खबर दिखायी दे जाती है जिसे पढ़कर आप चौंक जाते हैं। आप सोच में पड़ जाते हैं कि अरे यह कार्यक्रम कब हुआ? लेकिन अखबार में प्रकाशित हुआ है तो अब प्रामाणिक भी बन गया है। कटिंग काटी और चिपका ली अपनी फाइल में।

एक दिन एक समाचार प्रकाशित हुए कि फलां की महाविद्यालय परिसर में बरसी मनायी गयी और उसमें हवन आदि हुआ। समाचार पढ़कर मुझे लगा कि महाविद्यालय में कार्यक्रम हो गया और हमें निमंत्रण भी नहीं! फिर दिमाग ने सोचने में और फुर्ती दिखायी, जिस समय कार्यक्रम होना बताया गया है, उस समय तो मैं वहीं थी। कार्यक्रम कब हुआ? मन ने चैन नहीं लिया और महाविद्यालय में पड़ताल की गयी कि यह कार्यक्रम कब हुआ? लोग हँसने लगे, अरे यह कार्यक्रम कागजों पर हुआ था। लेकिन समाचार-पत्र में कैसे प्रकाशित हो गया? उत्तर था – सेटिंग। आप की एकाध संवाददाता से दोस्‍ती हो जाए या परिचय मात्र भी काफी है तो आप कैसी भी खबर भेजें वे उसे बिना जाँच-पड़ताल किये प्रकाशित कर देते हैं। चार लोग अपने ड्रांइग-रूम में बैठकर गप मार रहे हैं और दूसरे दिन एक गोष्‍ठी की खबर प्रकाशित हो जाती है। ऐसी खबरे रोज ही छपती हैं लेकिन हमारा ध्‍यान जब जाता है जब वह खबर हमारे से सम्‍बंधित होती है।

ये खबर बहादुर लोग छप-छपकर प्रसिद्धि पा लेते हैं और समाज में प्रतिष्ठित भी हो जाते हैं। जैसे की राय-बहादुर होते हैं। किसी भी परिवार में समस्‍या आयी तो आप उस राय-बहादुर को चाहे कितना भी नापसन्‍द करते होंगे लेकिन कोई न कोई सदस्‍य तो कह ही देगा कि उनसे परामर्श ले लेते तो अच्‍छा होता। ऐसे ही इन खबर बहादुरों के बारे में भी राय बन जाती है। लोग कहते हैं कि अरे उनकी खबर तो प्रमुखता से छपती है, उनसे से अपने समाचार की चर्चा कर लो। सारा समाचार-पत्र इसने कहा और उसने कहा से भरा होता है, उसमें देश और समाज हित की कोई बात नहीं होती है। इसलिए यह खबर-बहादुर भी छप जाते हैं। समाचार की आवश्‍यकता तब पड़ी जब समाज के पिछड़े, गरीब, शोषित व्‍यक्ति को शासन से न्‍याय नहीं मिलता था तब पत्रकार उसकी तरफ से समाज को जागृत करता था लेकिन अब तो सारी खबरे ही शासन की हैं या फिर खबर-बहादुरों की। दिग्विजय सिंह किस कोने में बैठकर क्‍या बोल गया, यह खबर मुख्‍य पृष्‍ठ पर होगी। ऐसे ही कुछ नेता हैं, जो समाचार-पत्रों की अग्रिम पंक्ति में आते हैं। लालू यादव भी उनमें से एक हैं। संवाददाता का ध्‍यान समाज के वंचित वर्ग की तरफ नहीं है अपितु इन प्रपंचित व्‍यक्तियों की तरफ है। आप जितने बड़े प्रपंची होंगे उतने ही व्‍यापक रूप से खबरों की सुर्खिया बनेंगे। अच्‍छे कार्य और अच्‍छी बातों के लिए समाचार-पत्र में कोई स्‍थान नहीं है। पेज-थ्री कल्‍चर आता जा रहा है, गोसिप को महिमा मण्डित किया जा रहा है। समाचार-पत्रों के संवाददाता भी खबर-बहादुर बन गए हैं। कहते हैं कि समाचारों में तिल का ताड़ बनाया जाता है लेकिन हमारे ये खबर-बहादुर तो बिना तिल के ही ताड़ भी बना देते हैं, तैल भी निकला लेते हैं और ताड़ी भी पिला देते हैं।

राजस्‍थान में एक ऐसे ही खबर-बाहदुर पत्रकार थे। मुख्‍यमंत्री को सदन में विश्‍वासमत प्राप्‍त करना था। टक्‍कर कांटे की थी। आखिर मुख्‍यमंत्री ने विश्‍वास मत प्राप्‍त कर लिया। कुछ ही देर में उन पत्रकार महोदय ने समाचार-पत्र वितरित कर दिये कि विश्‍वास मत जीत लिया। लोगों ने आश्‍चर्य किया कि इतनी जल्‍दी कैसे समाचार-पत्र प्रकाशित हो गया? किसी ने उनके थैले में झांक लिया तो देखा कि दो प्रकार के समाचार-पत्र उनके थैले में हैं, एक में जीत तो दूसरे में हार। कालांतर में वे ही बहुत दिग्‍गज पत्रकार माने गए और अब तो उनके लिए स्‍मारक की मांग भी हो रही है। हम जिन समाचार-पत्रों को सुबह रामायण की तरह बांचते हैं उनका सच यही है। न जाने कितने खबर-बहादुर रोज ही छप रहे हैं और हम उन समाचारों को सच मानते हुए उनकी वाहवाही भी कर रहे हैं। लेकिन आप और हम कुछ नहीं कर सकते। जैसे राय-बहादुर का वर्चस्‍व हमेशा बना रहेगा वैसे ही इनका भी बना रहेगा।

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27 Comments

  1. sugya says:

    आपने शानदार खबरों की खबर ली!!
    यही वास्तविकता है…….

  2. इस राय बहादुरों के कारण न्यूज़ पर से भरोसा ही उठ गया है !
    बढ़िया सामयिक लेख के लिए आपका आभार ..

  3. विश्वसनीयता ही नहीं बची है अब ख़बरों की …ये जो ‘सेटिंग ‘ है न इसी के चलते …..

  4. पृष्‍ठभूमि पर शब्‍दों के ठीक से न उभर पाने के कारण पढ़ना संभव नहीं हो रहा है.

    • AjitGupta says:

      आदरणीय राहुल सिंह जी
      आप किसी अन्‍य ब्राउजर से पोस्‍ट को पढ़ने का प्रयास करें। सम्‍भवतया कठिनाई नहीं आएगी।

  5. पत्रकारिता जब अपने मूल उद्देश्य से भटक कर सीमित स्वार्थ की गलियों में समाती है तो सारे समाज को गमुराह करने पर उतारू हो जाती है . जब सारी दाल ही काली हो रही हो तो सामान्य- जन के पास चारा ही क्या बचता है .

    • AjitGupta says:

      प्रतिभाजी, इसी कारण बहुत बड़ा वर्ग समाचार पत्रों से किनारा करने लगा है।

  6. समाचार की आवश्‍यकता तब पड़ी जब समाज के पिछड़े, गरीब, शोषित व्‍यक्ति को शासन से न्‍याय नहीं मिलता था तब पत्रकार उसकी तरफ से समाज को जागृत करता था लेकिन अब तो सारी खबरे ही शासन की हैं या फिर खबर-बहादुरों की।

    आज तो सारे समाचार बस सेटिंग वाले ही छपते हैं …. प्रतिभा जी ने सही कहा है …. सार्थक लेख

  7. खबरबहादुर/राय बहादुर के बारे में बढ़िया अभिव्यक्ति ….आभार

  8. sanjay kumar says:

    बढ़िया सामयिक लेख के लिए आपका आभार ..

  9. shikha varshney says:

    पत्रकारिता रही ही कहाँ है ? सब सेटिंग ही है. बहुत सार्थक लेख.

  10. t s daral says:

    जी सही कहा . यह भी एक कला है .

  11. pallavi says:

    इन्हीं कारणो के चलते तो अब समाचार पत्र पढ़ने का,या देखने सुनने का भी मन नहीं होता। सार्थक लेख।

  12. kshama says:

    राय बहादुरों से तो ज़िंदगी भरी पडी है! विशेषण बहुत बढ़िया लगा!

  13. खूब खबर ली राय बहादुरों की ….

  14. सुशील् says:

    खबर बहादुरों का भी एक रैकेट होता है
    उसकी क्वालिफिकेशन जो ले लेता है
    फिर वो काम कुछ नहीं करता है
    उसने काम किया बस ये खबर में होता है
    मीडिया के लोगों से उसका दोस्ताना होता है
    अपना तो जो भी करे अच्छे लोगों की
    अच्छी खबर को भी जब चाहे वो रोक लेता है
    हमारे यहां तो हर दूसरा खबर बहादुर होता है
    अच्छा लगा सुन कर कि वो आपके यहां भी होता है ।

  15. दो तरह की खबरों का बिचार तो सबसे तेज है..

  16. anshumala says:

    हमारे एक पत्रकार मित्र थे मौत की पुष्टि के पहले ही खबर दे दी की महिला की जलने से मौत हो गई रात २ बजे पता चला की महिला जीवित है ,खबर छप चुकि थी, उन्होंने मुझे बताया की सुबह के ६ बजे तक वो डर के वही अस्पताल में ही बैठे रहे (क्या करे नौकरी नई थी) जब तक की महिला की सच में मौत नहीं हो गई और कहा सोचो की मै रात भर बैठ कर वहा क्या दुआ कर रहा होंगा , अब जा रहा हूं गंगा अपने पापा धोने |

  17. पहले से ही छापकर, बेच रहे अखबार।
    दो नावों के सफर की, लीला अपरम्पार।।

  18. आजकल खबर होती नही बल्कि बनाई जाती है. और इसका खामियाजा निरीह जन भुगतते हैं. कुछ जबाबदेही तो तय की जाना चाहिये.

    रामराम

  19. Digamber says:

    तेज़ी का ज़माना है … मांगने पे फटाफट जो दे सके उसकी ही पूछ है आजकल … फिर चाहे खबर ही क्यों न हो …

  20. बहुत ही सार्थक आलेख…इसीलिए तो अखबारों की विश्वसनीयता ख़त्म होती जा रही है…हमेशा शंका बनी रहती है…’इस खबर में कितना प्रतिशत सच्चाई है’

  21. बहुत रोचक शानदार आलेख है हर फील्ड में सेटिंग चलती है और हमी लीग बेवकूफ भी बनते हैं

  22. सच क्या है यह जानना असम्भव हो गया है। क्या पता कौन सी खबर खबर-बहादुर की रची हो।
    घुघूती बासूती

  23. अपने बहुत अच्छी तरह से खबर बहादुरों की खबर ली है. बिल्कुल सच है ये अच्छे खासे इज्जतदार आदमी को समाज की नजर में बेइज्जत कर दें. कुछ लोगों से मेरा संपर्क है और इसके पोल पट्टी ये होती है कि कोई एक पत्रकार एक जगह की खबर लेता है और कई फोटो भी ले लेता है और दूसरे समाचार पत्र का दूसरी जगह और फिर वे आपस में खबरें शेयर कर लेते हें. हो गया एक पंथ दो काज. दुर्घटना कहीं होती है और दिखाई कहीं जाती है और कभी कभी तो बड़ी दुर्घटना सामने भी नहीं आती. ये सब एक व्यापार की तरह चल रहा है जिसमें सब जायज है.

  24. हम तो खबरदार ही रहते हैं ऐसे लोगों से। बहुत दिनो बाद आपका ब्लाग देख पाई। शुभकामनायें।

  25. डॉक्टर दी,
    बहुत दिनों बाद लौटा हूँ तो आज आपकी पोस्ट पर नज़र पड़ी..
    खबरों की खबर आपने खूब ली.. अब तो खबर बहादुर सिर्फ कागज़ के शेर रह गए हैं.. टुकड़े फेंको और तमाशा देखो टाइप..
    आपकी पारखी नज़र के लिए चश्मेबद्दूर!!

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