अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

झूठी शान से मुक्त होता पुरुष

Written By: AjitGupta - Sep• 22•17

झूठी शान से मुक्त होता पुरुष
कुछ लोग अलग मिट्टी से बने होते हैं, उनकी एक छोटी सी सोच उन्हें सबसे अलग बना देती है। कल केबीसी के सेट पर खिलाड़ी थी – अनुराधा, लेकिन मैं आज बात अनुराधा की नहीं कर रही हूँ। मेरी बात का नायक है अनुराधा का पति – दिनेश। कुछ लोग जीवन में एक उद्देश्य लेकर आगे बढ़ते हैं, स्वयं को बीज की तरह धरती में रोप देते हैं। उनका सारा ध्यान इस बात पर होता है कि मेरे इस बीज के त्याग से श्रेष्ठ बीजों का निर्माण हो सके। दिनेश का बचपन अशिक्षा की रात के साथ बीता, उसके दिल और दीमाग में एक ही बात घर कर गयी कि मेरी संतान आगे पढ़ेगी। लेकिन यह कैसे सम्भव होगा? बारह भाई-बहनों के गरीब परिवार में उम्मीद की किरण कहीं नहीं थी। शिक्षित युवती से विवाह का सपना तो सब कोई देख लेते हैं लेकिन उसके लिये खुद को होम देने की बात कितने कर पाते हैं? दिनेश ने पोलियों से ग्रस्त एक शिक्षित युवती – अनुराधा से विवाह किया और उसकी बैसाखी बन गया। अब अनुराधा पढ़ाई भी करती और नौकरी भी करती और घर सम्भालता दिनेश। रोटी बनाने से लेकर सारे ही काम दिनेश करता। धीरे-धीरे शिक्षिका अनुराधा डिप्टी-कलेक्टर बन गयी और कल केबीसी में हॉट-सीट पर थी।
जो पुरुष पत्नी के प्रमोशन होने पर भी शराब के अड्डे पर गम गलत करता दिख जाता है, वहीं दिनेश पूरे घर को मनोयोग से सम्भाल रहा है। दोनों पैरों से अपाहिज लड़की से विवाह करना, फिर घर की जिम्मेदारी वहन करना साहस का काम है। अपाहिज होने के बाद भी अनुराधा का आत्मविश्वास देखने लायक था। अक्सर पतियों के सपनों को पूरा करने में पत्नी खुद को झौंक देती है, अपने सपने के बारे में रत्ती भर नहीं सोचती है और बदले में सुनती है कि तुम करती ही क्या हो? किसी के भी सपने किसी दूसरे के सपनों को जमींदोज करके ही पूरे होते हैं। किसी भी सफल व्यक्तित्व के पीछे उसके साथी का हाथ होता है और हमारे देश में अक्सर यह हाथ महिला का होता है लेकिन कल दिनेश ने सिद्ध कर दिया कि पुरुष भी अपने झूठे अभिमान को त्याग दे तो एक सुखद जीवन और सुखी परिवार का निर्माता बन सकता है। ऐसे न जाने कितने दिनेश होंगे, बस उन्हें समाज जीवन में उदाहरण बनकर सामने आना है, तब झूठी शान से पुरुष मुक्त हो सकेगा और अपने अंकुरण से श्रेष्ठ संतान को जन्म देगा।

You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

One Comment

  1. प्रवीण पाण्डेय says:

    सुख के लिये अभिमान तो त्यागना ही होगा।

Leave a Reply