प्रकृति अपने यौवन पर है, बगीचों में जहाँ तक नजर जाती है, फूल ही फूल दिखायी देते हैं। भारतीय त्योहार प्रकृति पर आधारित हैं इसी कारण यह मौसम त्योहारों का भी रहता है। अभी होली गयी, फिर नया साल आ गया और अब गणगौर। त्योहारों के कारण परिवारों में प्रेम भी फल-फूल रहा है। और जब मन में केवल प्रेम ही हो, सब कुछ सकारात्मक हो तब लिखने की बेचैनी मन में नहीं होती है। मन प्रकृतिस्थ रहता है और प्रतिक्रिया से कोसो दूर हो जाता है। लेकिन जैसे पृथ्वी नियमित घूमती है वैसे ही लेखन भी सतत ही रहना चाहिए। यह नहीं कि जैसे भगवान को दुख में तो स्मरण कर लो और सुख में पूछो तक नहीं। इसलिए सुख में भी लेखन करना ही चाहिए।
जब सुबह-सुबह अपने बगीचे को देखती हूँ तो वहाँ ढेर सारे फूल खिले होते हैं, पेड़ों से छनकर सूर्य-किरण भी उन्हें उष्मा दे रही होती हैं। सारे दिन ये फूल सूरज के साथ इठलाते रहते हैं। हवा भी इनकी संगिनी बन जाती है और मन्द-मन्द सुगंध को अपने साथ लेकर वातावरण को सुरभित बना देती है। छोटी-छोटी मधुमक्खियां भी फूलों पर मंडराती रहती हैं, वे शहद की तलाश तक यहाँ आयी हैं। बगीचे में ऐसे छोटे-छोटे फूल भी खिलते हैं जिसमें ना गंध होती है और ना ही सुन्दरता। लेकिन वहाँ भी मधुमक्खी अपना कार्य कर रही होती हैं। वे उनमें भी शहद ढूंढ ही लेती हैं। जिन्हें हम जंगली फूल कहते हैं, या जिन्हें हम फूल की संज्ञा तक नहीं देते हैं, लेकिन वे होते तो फूल ही हैं, उनमें से भी मधुमक्खी शहद ढूढ लेती है। फिर किसी बड़े से पेड़ की छांव में उस शहद को एकत्र कर सभी प्राणियों के लिए उपलब्ध करा देती है। लेकिन मनुष्य अपनी चालाकी से इसे केवल अपने उपयोग के लिए ही रख लेता है।
जहाँ एक तरफ मधुमक्खी प्रत्येक फूल से शहद संचित करती है, वहीं मनुष्य जहर एकत्र करता रहता है। कितना ही योग्य मनुष्य क्यों ना हो, हम केवल उसके अन्दर की कमियों को ढूंढकर समाज के समक्ष प्रदर्शित करते हैं। यदि व्यक्ति अपने श्रम से सफलता की सीढ़ियां चढ़ने में सफल हो गया हो तो उसके अवगुणों को इसतरह से ढूंढा जाता है जैसे घास के ढेर में सूई ढूंढी जाती हो। पूरे परिवार के गुण-अवगुणों का पिटारा खोल दिया जाता है और कुछ न कुछ ढूंढ ही लिया जाता है। फिर इस जहर को समाज में वितरित किया जाता है। सारा समाज प्रेममय होने के स्थान पर विषमय होता जाता है। किसी को किसी पर विश्वास ही नहीं रहता। लोग कहने लगते हैं कि सभी चोर हैं। फिर बड़ा चोर और ऐसे चोर एक ही श्रेणी में आ जाते हैं। समाज इसे धोखे में आकर बड़े चोर को उच्च सिंहासन पर आसीन कर देती है। मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है लेकिन फिर भी प्रकृति से कुछ नहीं सीखता।
अभी दो दिन पूर्व शाम को बाजार में थे, लाल-बत्ती पर गाडी रूकी तो देखा आकाश तोतों की चहचहाट से गूंज रहा था। एकसाथ सैकड़ों तोते आकाश में उड़ रहे थे। वे अपनी दिनचर्या पूर्ण कर शाम को किसी पेड़ पर अपना ठिकाना बनाएंगे। घर आने की खुशी में सभी खुशी से झूम रहे थे, गीत गा रहे थे। उनकी मधुर गान से लग रहा था कि समय वहीं ठहर जाए। लेकिन जैसे ही लाल-बत्ती से हरी-बत्ती हुई, लोग अपनी गाडियों को बेतहाशा दौड़ाने लगे। कोई इधर से निकल रहा है और कोई उधर से निकल रहा है। किसी के पास अनुशासन नहीं बचा था। कोई इधर से किसी को ठोक रहा था तो कोई उधर से किसी गाडी को ठोक रहा था। सारा पक्षी-गान तिरोहित हो गया। एक मिनट में ही मनुष्य की वास्तविकता में हम आ गए। बस यही सोच के रह गए कि हम पक्षियों का मुकाबला नहीं कर सकते। हमें उनके जैसे बनने में शायद अपनी बुद्धि को कुछ मन्द करना होगा। हम इस बुद्धि के सहारे केवल स्वयं के लिए ही सोच रहे हैं। सम्पूर्ण सृष्टि के लिए नहीं सोच रहे। जहाँ पक्षी कहीं शहद बना रहे हैं, कहीं पंक्षी अपने पंजों में भरकर नन्हें बीजों को सारे जंगल में वितरित करने को दिनभर घूमते रहते हैं और हमें सब कुछ देते हैं जिनके लिए हमने परिश्रम नहीं किया था। लेकिन मनुष्य कभी प्रकृति की ओर नहीं देखता कि इस प्रकृति ने हमें बिना मांगे ही कितना दे दिया है। काश मनुष्य समझ सकता और प्रकृति का आभारी बन सकता। ये दिन प्रकृति को निहारने के हैं, हम निहारें और उसके योगदान को अपने दिल और दिमाग में सहेजकर रख लें। अपना गर्व और अपना विष कहीं दूर करने का प्रयास भी करते रहें।
इंग्लैड में अनुसंधानकर्ताआें ने बताया है कीटनाशक दवाआें के प्रयोग के चलते मधुमक्खियों की जनसंख्या में गिरावट आ रही है. परिणमत:, पुष्प-निषेचन प्रक्रिया में व्यवधान के चलते फसलों की पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है. मैं सोच रहा हूं कि नेताआें की पैदावार में गिरावट के लिए क्यों नहीं कुछ अविष्कृत किया जाता.
काजल जी ये प्रजाति जहरप्रूफ है।
प्रकृति जाने कितने मानवीय पाठ पढ़ाती है …..
कितनी सहज, सरल पर विचारणीय बात लिए है आपकी पोस्ट …आभार
मनुष्य जाती स्वार्थी है | जहर फ़ैलाने में ही उत्तम | इसे प्रकृति से कुछ सिखानी ही चाहिए |
सारा पक्षी-गान तिरोहित हो गया। एक मिनट में ही मनुष्य की वास्तविकता में हम आ गए। विचारणीय बात लिए है आपकी पोस्ट …आभार
पक्षी प्रकृति का कहा मानते हैं और प्रसन्न रहते हैॆ, हम प्रसन्नता ढूढ़ने में घरती खोद देते हैं।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
सचमुच काश! मनुष्य इन मधुमक्खियों और तोते से कोई सबक ले.
प्रकृति और ये अबोध कीट और पक्षी निस्स्वार्थ कितना कुछ दे जाते हैं, जिसका प्रतिदान तो दूर ,मनुष्य उसकी कद्र भी नहीं करते .
इंसान जितना सभ्य बनता गया, जितना पढता गया – उतना ही प्रकृति से दूर होता चला गया…
शायद मनुष्य हर वस्तु को रुपयों में परिवर्तित कर उसके बेतहाशा संग्रह के प्रयास में ही जहर बांटने की होड में लगा है । प्रकति जन्य पशु-पक्षी इस होड से दूर हैं प्रसन्न रहने के लिये उन्हें उतना ही दाना-पानी चाहिये जितना उनकी चोंच में समा सके । बस…
आदमी के लोभ और तृष्णा की कोई सीमा नहीं-प्राणियों में सबसे अधिक ख़ुदगर्ज!
बेहतरीन प्रस्तुति..
पधारें “आँसुओं के मोती”
नव वर्ष की मंगल कामनाएं। भगवान् हमें सद्बुद्धि दे।
आपने सही कहा मनुष्य भी पानी, हवा की भांति प्रदूषित हो गया ..
नवरात्रों की बहुत बहुत शुभकामनाये
आपके ब्लाग पर बहुत दिनों के बाद आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
बहुत खूब बेह्तरीन !शुभकामनायें
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
मेरी मांग
मनुष्य के पास पूर्ण विकसित दिमाग नाम की चेज जो है … जिसका वो भरपूर दुरूपयोग करता है अपने स्वार्थ के लिए …
aapse poori tarah sahmat hoo, hum sirf naam ke insaan hain ,
डॉक्टर दीदी,
इंसानों ने कभी सीखा कहाँ है प्रकृति से.. इंसान के अंदर तो यह अहंकार बैठा है कि वही निर्माता है… वही सर्वशक्तिमान है.. वैज्ञानिक सोच के नाम पर!!
दिल्ली से यहाँ आने पर मैंने देखा कि प्रकृति क्या है.. आपको विश्वास नहीं होगा कि सुबह मेरी नींद पक्षियों के कलरव से होती है.. और सारे दिन कोयल की कुक और तोतों का परिवार हमारे सामने होता है!!
विष यहाँ नहीं दीखता, सच में!! नो राजनीति!!
कितना सही कहा है कि दुख में सुमरन सब करे दुख में करे न कोय ,वास्तव में जब आप उदास होते हो या परेशान होते हो तब ही ज़्यादा कुछ अपने भावों को express करते हो ,अभी इतना अच्छा मौसम ,सब अच्छा पर कहते संगती का असर पड़ता है और आजकल आपके साथी संगी कौन है ?
TV ,media, news channels ,और ये कभी positive बात करते नहीं ,इनके द्वारा ह़म politicians से जुड़े रहते है वे कैसी बातें करते है ,ज़हर की ,मधुमक्खी के छत्ते की ,और तो और महाराष्ट्र के सूखे और पानी के replacement की भी,तो सारी कोमल भावनायें ग़ायब ।अच्छी post है ,मन को सुकून मिला ,हमें भी फूलों की तरह खिलना व चिड़ियों की तरह चहकते रहना चाहिये स्वस्थ्य रहने के लिये
विचारणीय.
किसी व्यक्ति में , परिवार में नकारात्मक ढूंढना और फिर उसका प्रचार , प्रसार . इस समाज को आईने में दिखा दिया आपने ! प्रकृति अपने आप में बड़ी शिक्षक है जिससे सीखने वाले कम है !
सटीक विचार !
प्रकृति हमें बहुत कुछ सिखाती है, पर हम सीखना ही कहाँ चाहते हैं…सार्थक चिंतन