मृत्यु अरी चिर-निद्रे ! तेरा अंक हिमानी सा शीतल
तू अनंत में लहर बनाती, काल जलधि की सी हलचल। – जयशंकर प्रसाद
भाई नहीं रहा ! यह सूचना है या फिर काल जलधि की हलचल। मन के अनन्त में एक लहर सी उठती है, एक शून्य बन जाता है। मन का एक कोना टूटकर बिखर जाता है। मन हाहाकार कर उठता है। टूटे हुए कोने को जोड़ने में लग जाता है मन। अपने सगे सम्बन्धियों की बाहों में लिपटकर बह जाना चाहता है पीड़ा का सैलाब और भर लेना चाहता है कुछ बूंद प्रेम-रस की। एक-एक बूंद से घड़ा भरने लगता है, टूटे हुए मन के कोने में जो अवकाश बन गया है वह पूरित होने लगता है। प्रकृति कहती है कि जो प्रकृतिस्थ जोड़ था, वह तो पूरित नहीं हो सकता लेकिन इस प्रेम-रस से उसका अभाव कुछ कमतर हो जाएगा। इस प्रेम को पाने के लिए मन सारे ही अपनों से मिलना चाहता है लेकिन कुछ मिल पाते हैं और कुछ नहीं मिल पाते। कुछ अपने प्रेम का अंश दे पाते हैं और कुछ नहीं। शायद प्रेम भी वही दे पाते हैं जिसने अभाव का अनुभव किया हो। बाहों में वे ही लिपटा पाते हैं, जिसकी बाहे भी आतुर हों, दुख को समेटने की। मृत्यु का यह काल सभी सगे सम्बन्धियों की परीक्षा लेकर उपस्थित होता है। मन ही निर्धारण करता है की कौन कितना दे पाया और कौन कितना ले पाया। प्रकृति ने तो बस रचना की है मन के आदान-प्रदान की और समाज ने उसे वास्तविकता का स्वरूप दिया है।
समाज कहता है कि आओ और लिपट जाओ अपने अपनों से, दूर करलो मन की इस टूट को। प्रकृति का नियम है कि मृत्यु तो अवश्यम्भावी है लेकिन प्रभु ने हमें प्रेम दिया है, उससे इस मृत्यु के खेल से विजय भी पायी जा सकती है। समाज ने कुछ नियम बनाए, सारा परिवार एकत्र होगा, एक दूसरे का सहारा बनेगा। किसी को भी यह अभाव नहीं खटकेगा कि मेरा कोई नहीं है। एक हाथ नहीं सौ साथ सहायता के लिए उठ जाएंगे, दो बाहें नहीं परिवार की अगिनत बाहें अपने बाहुपाश में लेने को आतुर हो उठेंगी। एक पल के लिए भी एकान्त नहीं। रो लो जितना रोना है, बहा दो अपनी पीड़ा को, हम है इन आँसुओं को अपनी हथेलियों पर लेने को। परिवार का शायद यही अर्थ होता है। परिवार पर हम इसीलिए इतना कुछ कुर्बान करते हैं कि समय आने पर उनकी बाहों का सहारा हमें मिलेगा। आधुनिक समाज कहता है कि हमारे पास समय नहीं हैं, हमें प्रेम से अधिक अर्थ की आवश्यकता है। हम संवेदना के लिए तो आएंगे लेकिन अपने अन्दर के प्रेम को देने में असमर्थ ही रहेंगे। टूटन भर नहीं पाती, एक नवीन घाव बन जाता है और वह घाव फिर जीवन भर रिसता है। आज घर-घर में और मन-मन में घाव बनते जा रहे हैं, उस घाव में मरहम-पट्टी करने वाला चिकित्सक दिखायी नहीं देता। क्या हमारे अन्दर का प्रेम सूख गया या फिर प्रेम के ऊपर दुनियादारी हावी हो गयी। मैं कितना दूंगा तो मुझे कितना मिलेगा? यह प्रश्न मन में तराजू लेकर बैठने लगा है। यह तराजू शाश्वत हो गयी है। सभी के पास तराजू आ गयी है, सभी तौल-मौल के व्यवहार करने लगे हैं।
बहन और बेटी, दो ऐसे रिश्ते हैं जो कभी भी तराजू हाथ में लेकर नहीं बैठती। उनका मन बस प्रेम से ही धड़कता है। वे परिवार की इस टूट को प्रेम से भर देना चाहती हैं और बिछ जाती हैं दुख और पीड़ा के मार्ग पर। मृत्यु न जाने कितने प्रश्न खड़े कर जाती है, न जाने कितने रिश्तों का मर्म समझा जाती है और न जाने कितनों के दिल का राज उगल जाती है। कौन-कौन तराजू लेकर बैठा है, मृत्यु ही बता देती है। कौन अपनी बाहों के दायरों को विस्तार नहीं दे पा रहा, मृत्यु ही बता पाती है। किसकी हथेलियों में इतनी गहराई नहीं है कि वे अपनों के आँसुओं को थाम सके, मृत्यु ही अहसास करा देती है। बहुत कुछ कह जाती है मृत्यु, बहुत कुछ समझा जाती है मृत्यु और बहुत कुछ दे जाती है मृत्यु। अपना बनाने की कला सिखाती है मृत्यु और बेगाना बनाने की भूल कराती है यह तराजू। इस तराजू को जितना धकेल सको धकेल दो, नहीं तो यह आपके जीवन का रस आपसे छीन लेगी। इस तराजू को और किसी समय के लिए शेष रहने दो, अभी तो अवसर है बस बिना हिसाब-किताब किए कुछ देने का। हो सकता हो कि हमारी डायरी में बहुत कुछ लेना बाकी हो लेकिन यह जोड़-तोड़ करने का समय नहीं है, यह समय तो बस बाहों को फैलाने का है।
एक सप्ताह में इन आँखों में कई तराजू देखीं, अनेक बाहें भी देखी। जितनी तराजू दिखी उतने ही दुगुने वेग से हमारी बाहें आगे को बढ़ी। मन की टूट को प्रेम से भरने की जिद थी लेकिन पता नहीं कौन सी तराजू, किस मन को कोई घाव तो नहीं दे गयी और यह घाव कहीं परिवार की टूट ना बन जाए? जब भी आपका मृत्यु से साक्षात्कार हो, मन के टूटने और सैलाब के आने का क्रम जारी रहे तब कोशिश करना कि किसी अपने की बाहों का प्रेम आपकी रिक्तता को भर दे और आप भी किसी की रिक्तता को भर सकें। मृत्यु के समय पूर्ण ईमानदारी हो, प्रेम देने में पूर्ण ईमानदारी हो। बस उस समय कुछ भी लेने का मन में भाव ना हो। शायद हम वह वापस दे सकेंगे जिसे प्रकृति ने हमसे छीना है।
ऐसी कठिन घडी में अपनों का ही संबल होता है…!
कुछ यूँ बनाये हैं उसने जगत व्यवहार कि सँभलते सँभालते हम संभल ही जाते हैं…
दिवंगत आत्मा को ईश्वर अपनी शरण में लें!
ईश्वर दिवंगत को शान्ति दे, संबल बनाये रखें
बहुत ही कठिन वक्त होता है ये, ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति दे और परिजनों को दुख सहन करने की क्षमता.
रामराम.
ऐसा समय सच में कठीन होता है….ईश्वर संबल दे
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-08-2013 के चर्चा मंच पर है
कृपया पधारें
धन्यवाद
एक मृत्यु कई दर्शन उपलब्ध करवा जाती है।
इस शोक वेला में ईश्वर से प्रार्थना है कि सब परिजनों को धैर्य व साहस प्रदान करें।
स्वास्थ्य के बिगडने से पहले और जब तक मृत्यु दूर है उस से पहले पहले अपने सद्कर्मों से आत्मकल्याण का मार्ग ढूंढ ही लेना चाहिये और नहीं तो प्राणान्त के समय कुछ भी भला होने वाला नही है ( आचार्य चाणक्य )
ऐसी कमाई करियो जो संग चली जाये!
मुश्किल पड़े राह में तो काम आ जाये !!
जय हो
आर एम मित्तल
इस शोक घडी में ईश्वर से प्रार्थना है कि सब परिजनों को धैर्य व साहस प्रदान करें।
जिंद मेरिए मिट्टी दिए ढेरिए, इक दिन चलणा…
ईश्वर दिवंगत को शान्ति दे, सभी परिजनों को संबल…
जय हिंद…
‘सुर नर मुनि जे जन्मिया ,सप्त द्वीप नव खंड,
कह कबीर सब भोगिया देह धरे को दंड .’
-दंड भोगना ही है पर सदा को खो देने का भान बहुत दारुण है .इस दुख में संबल वही बनते हैं जिनसे हम जुड़े हैं. जुड़ाव बना रहे ,
अपनों का साथ बना रहे ,ईश्वर इतनी क्षमता दे कि इस महा दुख को झेल संके और दिवंगत आत्मा चिर-शान्ति पाये !
.
ईश्वर दिवंगत आत्मा को शान्ति दे और परिवार को इस कठिन घड़ी का सामना करने का साहस!
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे !
जिसे व्यवहार कहते हैं , परिवारों के प्रेम का हंता है !
सच ही ,है बहुत कुछ सिखा जाती है मृत्यु और यह भी एक शास्वत सत्य है कि अच्छे बुरा का पता सभी को आपतिकाल में ही लगता है। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे।
Haal-hee me mere chhote bhaiki mrityu hui….mai uske bareme likh nahi paa rahi hun,kyonki wishwas nahi kar paa rahi hun…..eeshwar aapko bal de…..
नियम तो ये प्राकृति का है … पर अपने के विछोह में कौन इस नियम की सत्यता स्वीकारता है … आसान नहीं होता अपनों का बिछुडना …
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे … आपको ये दुख सहने की हिम्मत मिले …
आप सभी का आभार । साथ में क्षमाप्राथी भी हूं कि आप लोगों की पोस्ट नहीं पढ पायी हूं ।