अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

यह लड़ाई है गड़रियों की ना की भेड़ों की

Written By: AjitGupta - Jan• 03•19

कभी हम यह गीत सुना करते थे – यह लड़ाई है दीये की और तूफान की, लेकिन मोदीजी ने कहा कि यह लड़ाई है महागठबंधन और जनता की। मैं पहली बार मोदी जी के कथन से इत्तेफाक नहीं रखती, क्योंकि भारत में जनता है ही नहीं! यहाँ तो भेड़ें हैं, जो अपने-अपने गड़रियों से संचालित होती हैं। गड़रिया जिस किसी कुएं में गिरने को कहता है, भेड़े लाइन बनाकर उस कुएं में कूद जाती हैं। देश का नम्बर एक गड़रिया है – धार्मिक नेता। एक धर्म के गड़रिये ने कहा कि महिला पुरुष के पैर की जूती है, पुरुष का अधिकार है कि उसे तलाक बोलकर घर से धक्का मारने का। गड़रिये की बात सारी भेड़ों ने मानी, यहाँ तक की महिला भेड़ों ने भी मानी और खुद के ही खिलाफ तख्ती लेकर खड़ी हो गयी कि हम वाकयी में पैर की जूती है, हम किसी भी कानून के बदलाव की पैरवी नहीं करते। दूसरे धर्म के गड़रिये ने कहा कि महिला अपवित्र है, उसे रसोई, बिस्तर, मन्दिर कहीं भी जाने का अधिकार नहीं है। महिला ने खुद स्वीकार किया कि हम अपवित्र हैं, हमें वाकयी में कोई अधिकार नहीं है। बहस अपवित्रता पर नहीं हुई, बहस हुई केवल महिला पर, बहस तलाक के कारण पर नहीं हुई, बहस हुई केवल महिला पर। इन गड़रियों के पास थोक की भेड़े एकत्र हो गयीं, मोदी जी कहते हैं कि ये भेड़ें लोकतंत्र की रक्षा करेंगी! भेड़ों का  भी कहीं लोकतंत्र है? ये भेड़ें तो गड़रियों की तान पर कुएं में गिरने को तैयार हो जाती हैं, इनके  पास ना लोकतंत्र हैं ना स्वयं का कोई तंत्र है।

देश में दूसरे गड़रिये हैं, जो जातिगत भेड़ों को एकत्र करते हैं। कुछ राजनैतिक गड़रिये ऐसे गड़रियों को समय-समय पर पैदा भी करते रहते हैं। ये गड़रिये अपनी भेड़ों से कहते हैं कि तुम्हारे गड़रिये शक्तिशाली होने चाहिये, इसके लिये इन्हें विशेष अधिकार मिलने चाहिये और सारी भेड़ें इन्हें शक्तिशाली बनाने में जुट जाती हैं। कहीं आरक्षण के नाम पर विशेष अधिकार मांगते हैं तो कभी विशेष दर्जा। अभी बीते 5-7 सालों में ऐसे ही कुछ गड़रियों को पैदा किया गया, जिसने जाति के नाम पर, भ्रष्टाचार के नाम पर अपनी-अपनी भेड़ों का झुण्ड बनाया। भेड़ें वहां भी नाक बहने वाली ही थी, बस गड़रियों की नयी खेप राजनैतिक सौदेबाजी करने के नये पैतरों के साथ उपस्थित थी। एक सबसे खतरनाक गड़रिया जो पहले से ही देश में जड़े जमाए बैठा था, वह नये कलेवर के साथ आ गया और उसका दायरा बढ़ गया। यह गड़रिया झूठ को सच और सच को झूठ बताकर समाचारों की मण्डी लगाने लगा, इसके प्रभाव में अच्छी-अच्छी भेड़ें आ गयी, मानो उनके लिये ये गड़रिये भगवान बन गये। शेष गड़रियों की दुकानें समय-समय पर ही खुलती लेकिन इनकी दुकान चौबीसों घण्टे खुली रहती, भेड़े आती, चरती और इनके ही खेत में मींगनी करके बहुमूल्य खाद देती। ऐसे ही अनेक गड़रिये इस देश में फल-फूल रहे हैं।

राजनेता क्या करता है? अभी तक यह होता आया है कि जिसके पास जितने गड़रिये, उसे ही सत्ता का सिंहासन मिल जाता था। मोदीजी ने कहा कि नहीं हम भेड़ों को ही जागृत करेंगे, कुछ भेड़ों ने मिमियांकर उनका समर्थन भी कर दिया लेकिन जैसे ही चुनाव आते गड़रिये लामबन्द हो जाते और अपनी-अपनी भेड़ों को हांककर ले जाते। मोदीजी ने सारी भेड़ों के लिये व्यवस्थाएं देनी शुरू की लेकिन भेड़ों को अच्छा रहना और अच्छा खाने की समझ नहीं थी, वे तो केवल गड़रिये की बंसी की आवाज ही पहचानती थी, बस जैसे ही बंसी बजती और भेड़े नरम-नरम घास छोड़कर भाग जातीं। अब तो यह हालात हो गये हैं कि नये-नये गड़रिये पैदा हो रहे हैं, कोई कहता है कि मेरे पास इतनी लाख भेड़े हैं तो कोई कहता है कि मेरे पास इतनी हजार भेड़े हैं, मुझे सुविधा दो, मुझे विशेष अधिकार दो, बस मेरी सारी भेड़ें तुम्हारे ही कुएं में आकर गिरेंगी। गड़रियों का गठबंधन बन रहा है। आपके गड़रियों का भी गठबंधन बना लीजिये, भेड़ों के भरोसे मत रहिये, ये खुद की भी नहीं होती। ये तो बस गड़रिये की ही होती हैं। भेड़ों के अधिकारों की बात मत करिये, क्योंकि इनको तो खुद ही नहीं पता कि इनके अधिकार क्या हैं! दुनिया में ऐसा कोई प्राणी है जो खुद के ही खुलाफ तख्ती लेकर खड़ा हो जाए! इसलिये गड़रियों को एकत्र कीजिए और जरूरत पड़ने पर नये पैदा कीजिये।

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