अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

राजतंत्र की भेड़ें

Written By: AjitGupta - Jan• 29•21

जी हाँ हम राजतंत्र की भेड़े हैं, गडरियाँ हमें अपनी मर्जी से हांकता है। विगत 6 सालों से देश में लोकतंत्र को स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं लेकिन हर बार राजतंत्र किसी ना किसी रूप में हम भेड़ों को घेरकर अपनी ओर ले जाता है। सदियों से हम राजतंत्र के अधीन रहे हैं याने राज वंश के अधीन। स्वतंत्रता के बाद हमें लोकतंत्र मिला लेकिन वह भी शीघ्र ही राजतंत्र में परिवर्तित हो गया। हम कभी लोकतंत्र के झूले पर झूलते हैं तो कभी राजतंत्र का झूला हमें अपने पलड़े में बैठा लेता है। चूंकि सामान्य व्यक्ति भेड़ों के समान होता है और वह हर पल किसी नेतृत्व का मुँह देखता है। हमारी बुद्धि जितनी भेड़ों के समकक्ष होगी उतनी ही नकारात्मक होती जाती है। हम विकास के स्थान पर विनाश को पसन्द करने लगते हैं। हमें प्रत्येक नकारात्मक संदेश अपने दिल के नजदीक लगता है और हम जिस ईष्ट को पूजते हैं, एक नकारात्मक संदेश से उसी पर वार कर बैठते हैं और दूसरे ईष्ट को अपना लेते हैं।सोशल मीडिया ने इन भेड़ों को भी उजागर कर दिया है। ये भेड़ें केवल पिछलग्गू हैं, जैसा किसी ने कह दिया बस उसे ही मान लिया। हमारे देश में इतनी जाति के लोग रहते हैं और प्रत्येक प्रांत में सभी जाति और सम्प्रदाय के लोग हैं। लेकिन कुछ मुठ्ठी भर लोगों के मन में राजा बनने का ख्वाब जागा और उन्होंने अपनी भेड़ें एकत्र करना शुरू किया। अपने खेत में थोड़ा चारा डाला और अपने पाले में बैठा लिया। बस उपद्रव शुरू। सभी को राजा बनना है, और राजा बनने के लिये कटना भेड़ों को ही है! यह भी तय है कि कोई भेड़ राजा नहीं बन सकती लेकिन वे तो भेड़ें हैं और भेड़े तो पिछलग्गू ही होती हैं!राजा को पता है कि मेरी भेड़े पूरी दुनिया में फैली हैं, एक कुएं में नहीं समा सकती लेकिन फिर भी जिद है कि मुझे मेरी भेड़ों के लिये अलग देश चाहिये। यहीं से लोकतंत्र पर आक्रमण शुरू होता है। हम सोचते हैं कि चारों ओर बस हमारे ही लोग होंगे, अपने ही अपने लोग तो कोई दुख नहीं होगा! लेकिन ये लोग भूल जाते हैं कि हम परिवार में भी एकजुट नहीं रह पाते, भाई-भाई ही सबसे बड़े दुश्मन होते हैं तो एक देश में कैसे खुश हो जाएंगे?एक परिवार को हम बचा नहीं पाते हैं और एक देश की मांग कर बैठते हैं! पाकिस्तान इसी मांग पर बना था, आज वहाँ के क्या हाल हैं? लेकिन जिसमें भी गड़रिये के गुण हैं वे भेड़ों को हांकने लगता है और लोकतंत्र को राजतंत्र में बदलने लगता है। प्रजा कहती है कि हमें तो बस राजकुमार ही चाहिये फिर वह कितना ही अबोध क्यों ना हो! देश में कितने राजकुमार पैदा हो चुके हैं, उनकी नेतृत्व क्षमता भी दुनिया देख रही है लेकिन फिर भी भेड़े कह रही हैं कि नहीं हमें हमारा राजकुमार ही चाहिये। इसलिये मुझे लगने लगा है कि लोकतंत्र की उम्र अधिक नहीं है। किसी ना किसी प्रकार का राजतंत्र स्थापित होकर ही रहेगा क्योंकि हम अधिकांश भेड़ें हैं और हमें एक गड़रिये की ही जरूरत हर वक्त रहती है। हम भेड़े बस यूँ ही कटती रहेंगी और गड़रियां हमें ऐसे ही उकसाता रहेगा। जैसे पहले देश में 565 राजवंश थे, कमोबेश उतने राजा तो भेड़ों को एकत्र करने में आज भी जुटे हैं। शायद यह अच्छा भी हो, क्योंकि हमें तब भेड़ बनकर केवल मिमियाना ही है। देखते हैं कि लोकतंत्र के पर्व से शुरू हुआ ताण्डव लोकतंत्र को कब तक समाप्त कर पाता है! पुराना युग कब लौटकर वापस आएगा जब हम पुन: राज दरबार में हाथ जोड़े खडे रहेंगे! माई बाप जो कुछ हैं बस आप हैं हम तो आपके खेत में बैठकर मींगनी कर देंगी जिससे आपको भरपूर खाद मिल सकेंगा और आप को भरपूर ऊन और मांस दे देंगी। बस राजा शान से रहना चाहिये हमारा क्या है, हम तो कैसे भी जी लेंगे! गड़रियों को भेड़े चाहिये और भेड़ों को गड़रियां, बस इसे ही राजतंत्र कहते हैं, लोकतंत्र तो सभी को बराबर अधिकार देता है, ऐसे में कुछ भी सम्भव नहीं है।

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