अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

लिखना, पढ़ना और टिपियाना

Written By: AjitGupta - Dec• 02•12

 

फेसबुक पर कुछ लोग सारा दिन कुछ न कुछ लिखते ही रहते हैं, उनमें से कुछ बेहद मनोरंजक होते हैं और कुछ जानकारीपरक और कुछ खतरनाक किस्‍म के। कुछ लोगों की चुटकियां पढ़ने में आनन्‍द आता है और कुछ लोगों की चुटकियां पढ़ने में कान के कीड़े भी झड़ने लगते हैं। वैसे यह मुहावरा सुनने के अर्थ में प्रयोग होता है लेकिन यदि पढ़ने के अर्थ में कहेंगे तो शायद कि आँखों के सामने तारे नजर आ जाते है या कुछ ऐसे ही। राजनेताओं और राजनैतिक दलों के बारे में ऐसी-ऐसी जानकारी दी जाती है, जिनका कभी आधार होता है और कभी नहीं भी होता। लेकिन हम उन्‍हें भी पढ़ते हैं। ऐसे ही ब्‍लागजगत में भी कई प्रकार के आलेख देखे जाते हैं। सभी पाठक अपनी पसन्‍द से लेख को पढ़ते हैं। कोई उनपर टिप्‍पणी करता है और कोई नहीं करता है। फेसबुक और ब्‍लाग पर इतना लिखा जा रहा है कि सभी को पढ़ना सम्‍भव नहीं होता है। फेसबुक और ब्‍लाग पर हम जिनके भी मित्र है या फोलोवर हैं, उन्‍हीं की पोस्‍ट हमें पढ़ने को मिलती है लेकिन उनमें भी सारी ही पोस्‍ट हम नहीं पढ़ पाते हैं। किसी लेखक विशेष का भी कभी कोई आलेख हमें पसन्‍द आता है और कभी नहीं आता है। किसी को गद्य में रुचि होती है किसी को पद्य में। इसलिए हम अपनी रुचि से ही टिप्‍पणी करते हैं।

टिप्‍पणियों में लेन-देन मेरी समझ से परे हैं। मैं यदि किसी पोस्‍ट को पढ़ती हूँ और उसपर सहमती और असहमती प्रगट करने के लिए अपनी टिप्‍पणी लिखती हूँ इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि आप भी मजबूर हैं, मेरी पोस्‍ट पर टिप्‍पणी करने के लिए। सभी लोग स्‍वतंत्र हैं, जिसे जो पसन्‍द होगा, बस वही पढेगा। वैसे अभी ब्‍लाग पर लेखन कम हुआ है और इसी कारण अच्‍छे से अच्‍छे लिख्‍खाड़ की पोस्‍ट पर भी टिप्‍पणियां कम हुई हैं। लेकिन टिप्‍पणियों के अनुपात में विजिटरर्स की संख्‍या कई गुना ज्‍यादा होती है। इसलिए हमारी पोस्‍ट पढ़ी जा रही है, इसी से संतुष्टि मिल जाती है। कई पाठक ऐसे होते हैं जो असहमत होने पर टिप्‍पणी नहीं करते, हमें लगता है कि फला व्‍यक्ति ने हमारी पोस्‍ट नहीं पढ़ी। मौन भी असहमती का परिचायक बन जाता है। लेकिन यदि विरोधी विचार आएंगे नहीं तो हमें समझ कैसे आएगा कि दुनिया में कितने प्रकार के विचार प्रवाहमान हैं? लेकिन कुछ लोग विरोध के विचारों को व्‍यक्तिगत लेते हैं और दुश्‍मनी सी कर लेते हैं, मेरे विचार से यह उचित नहीं है। सारे ही विचार, एकसमान नहीं हो सकते, बहुत सारे विचारों में विरोधाभास होता ही है।

ब्‍लाग और फेसबुक ऐसे माध्‍यम हैं, जिनमें त्‍वरित रूप से विचारों का आदान-प्रदान होता है। मुझे यहाँ लिखना पुस्‍तक लिखने से भी अधिक रूचिकर प्रतीत होता है। पुस्‍तक लिखने पर भी आपको दूसरों की टिप्‍पणियां प्राप्‍त होने में इतनी शीघ्रता नहीं होती जितनी यहाँ रहती है। यहाँ विचारों के अनेक पक्ष उपस्थित रहते हैं। इसी से हम सीख पाते हैं कि हमारा विचार ही दुनिया में एकमात्र मान्‍य नहीं हैं। ऐसा होना भी नहीं चाहिए, दुनिया में जितने विचार होंगे, दुनिया उतनी ही तीव्रता से प्रगति करेगी। पक्ष और विपक्ष के कारण ही चिन्‍तन बढ़ता है। भारतीय दर्शन तो शास्‍त्रार्थ पर ही निर्भर रहा है। मुझे उभय भारती और शंकराचार्य का शास्‍त्रार्थ का उदाहरण सबसे अधिक उपयोगी लगता हैं। उभयभारती को धर्म के पक्ष का ज्ञान नहीं और शंकराचार्य को गृहस्‍थ पक्ष का ज्ञान नहीं। उभय भारती सिद्ध कर देती है कि ज्ञान को किसी सीमा में नहीं बांधा जा सकता। समस्‍त ज्ञान का अपना महत्‍व है। इसलिए किसी का भी यह मानना कि मेरा ज्ञान ही उत्तम ज्ञान है, अहंकार मात्र है। आज वर्तमान काल में शिक्षित होना और अशिक्षित होने का भी यही दम्‍भ है। नौकरीपेशा होना और गृह‍स्‍थ होने का भी यही दम्‍भ है। गृहस्‍थ महिला हमेशा कहती हैं कि हम कुछ नहीं करती। अशिक्षित व्‍यक्ति हमेशा कहता है कि मुझे कुछ नहीं आता। वे क्षुद्र भाव से घिरे रहते हैं और शिक्षित तथा नौकरीपेशा लोग अहंकार-भाव से घिरे रहते हैं। इसलिए प्रत्‍येक प्राणी का ज्ञान उपयोगी है। हम चींटी से भी सीखते हैं और हाथी से भी। हम गाँव के व्‍यक्ति से भी सीखते हैं और विदेश में रह रहे व्‍यक्ति से भी। इसलिए मेरे लिए सभी विचारों के लिए सम्‍मान भाव है। हाँ कुतर्क और छिद्रान्‍वेषण के लिए सम्‍मान नहीं है। मैं इसी दृष्टिकोण से सभी को पढ़ती हूँ, मुझे जो उपयोगी लगता है, उसे अवश्‍य पढ़ती हूँ, क्‍योंकि उससे मेरा ज्ञान बढ़ता है। मैं इसलिए उस पोस्‍ट को नहीं छोड़ती हूँ कि फला व्‍यक्ति तो मेरी पोस्‍ट पढ़ता ही नहीं। मुझे मेरी चिन्‍ता है, मैं केवल टीप-टीप खेलने के लिए यहाँ अपना समय बर्बाद नहीं करती। आप में से बहुत सारे लोग मेरी बात से सहमत होंगे और बहुतों का अलग दृष्टिकोण होगा। आइए विचार करे और अपने ज्ञान को बढाएं।

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22 Comments

  1. मैं तो लिखता कम टिपियाता ज़्यादा हूँ.. दोनों माध्यम अलग अलग विशेषताएं रखते हैं.. अपनी अपनी सीमाएं हैं दोनों की.. फेसबुक पर आप मुझसे नहीं जुडी हैं!!

  2. जो टीप टीप खेलते हैं वो अक्सर बिना पढे ही टीप कर चले जाते हैं …. स्वयं के ज्ञान की वृद्धि के लिए पढ़ना ज़रूरी है …. बिना पढे किसी विचार पर सहमति या असहमति कोई कैसे निर्धारित कर सकता है । विचारणीय पोस्ट ॥

  3. Kajal Kumar says:

    पढ़ना ज़रूरी है. कुछ कहना न कहना वाक़ई महत्‍व नहीं रखता.

  4. उत्कृष्ट ।।

    आजादी टिप्पणी की, फिर करना क्यूँ खेल ।

    तथ्य समाहित हों अगर, तभी भेजिए मेल ।

    तभी भेजिए मेल, उठा पढ़ने की जहमत ।

    अगर लगे उत्कृष्ट, यथोचित दीजे अभिमत ।

    रविकर की कुंडली, श्रेष्ठ रचना की आदी ।

    छाप लिंक-लिक्खाड़, टीप की दे आजादी ।।

  5. AjitGupta says:

    सलिल भाई, आज ही फेसबुक की खबर लेती हूं।

  6. t s daral says:

    शायद विजिट करना और पढना एक नहीं है। अक्सर लोग क्लिक करके निकल जाते हैं। आधे से कम टिप्पणियां ऐसी होती हैं जो पोस्ट पढ़कर की जाती हैं। यह सच है कि पसंद न आने पर या असहमति होने पर लोग कन्नी काट जाते हैं। स्पष्ट बोलना सबके बस की बात नहीं। लेकिन व्यक्तिगत आरोपों से दूर रहना चाहिये।

  7. प्रिय ब्लॉगर मित्र,

    हमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।

    शुभकामनाओं सहित,
    ITB टीम

    पुनश्च:

    1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।

    2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला। [यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।

  8. मन में सीखने का ध्येय बना रहे, राह निकल आती है।

  9. ठीक ही तो है, जहां असहमति केवल कलह का कारण बने वहाँ उससे बचना ही बेहतर| हाँ, कई बार विषय ऐसा होता है की असहमति दर्शन कर्तव्य बन जाता है| उसी प्रकार से कई प्रसन्नमना टिप्पणियाँ सराहना करती हैं और कई विषय को आगे बढ़ती हैं| मुझे तो अच्छा उद्देश्यपूर्ण लेखन पसंद है, भले ही लेखक से मेरा टिप्पणी आदान-प्रदान हो या न हो!

  10. लिखना, पढ़ना और टिपियाना अपने में मजेदार हैं। टिप्पणियां कम हुई हैं लेकिन लाइक करना बढ़ा है। फ़ेसबुक ज्यादा तुरन्ता माध्यम है। लेकिन उसकी सीमायें हैं। ये पोस्ट आप फ़ेसबुक पर नहीं लिख पातीं लेकिन इसका विचार फ़ेसबुक पर आ सकता है। आलोचना वाली बात जहां तक है नेट का माध्यम कुछ ऐसा है कि लोग खिलाफ़ बात आसानी से सुन नहीं पाते। 🙂

  11. टिप्पणियों के बारे में आपकी राय से सहमत हूँ ..

  12. मैं तो हर सप्ताह निर्णय लेता हूँ कि अबसे सिर्फ़ ’वाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति’ वाला कमेंट किया करूंगा लेकिन जब मौका आता है भूल जाता हूँ:)
    मेरी राय में अधिकतर लोग असहमति जताते हुये तो संकोच करते ही हैं, असहमति को स्वीकार करने में और भी ज्यादा determined रहते हैं जबकि सार्थक असहमति वाली टिप्पणियाँ पोस्त को समृद्ध ही करती हैं।

  13. अक्सर लोग असहमति जताने से कन्नी काट लेते हैं , इस माध्यम में स्पष्ट राय रखना इतना आसान भी नहीं .
    टिप्पणी लेखन विशेष पर प्रतिक्रिया बताती है , वह भी महत्वपूर्ण है मगर पढना सबसे ज्यादा जरुरी है !

    • सही कहा है आपने ब्लोगियों को चिरकुट पसंद हैं समालोचक नहीं .अब बाहर तो शब्द ही होते हैं आदमी की मंशा आप नहीं भांप सकते .हम सदाशयता से ही टिपण्णी करतें हैं आलोचनात्मक भी .ज्ञान बघारने के लिए नहीं फिर भी कई मर्तबा उसे अन्यथा ले लिया जाता है .फोलो अप नहीं है टिप्पणियों का .एक तरफ़ा लोग संवाद बंद कर देते हैं .हाँ अगर आपके ब्लॉग पे कोई नियमित आ रहा है तो शालीनता का तकाजा है आप महानता का अपना लबादा उतार फैंके कभी तो उसकी भी हौसला अफजाई करें अगर वह गलत राय दे रहा है आप प्रति राय दे उसे ठीक करें .

      मौजू मुद्दे उठाए हैं आपने .

  14. kshama says:

    Kharab sehat ke karan baith nahi patee to na likhtee hun na padhtee…kuchh der baad phir koshish karungee.

  15. अपने बहुत ही अच्छा विषय उठाया है। किसी भी पोस्ट को पूरा पढ़कर जो टिप्पणी की जाती है उसी में लेखन और विषय से मिल रहे सन्देश की सार्थकता होती है। सिर्फ इसा लिए टिप्पणी करना की जितने अधिक ब्लोग्स पर हम जायेंगे उतने ही लोग हमारे ब्लॉग पर आयेंगे इसमें जरा भी सा भी संदेह नहीं है क्योंकि कई बार ढेरों टिप्पणी वाली पोस्ट को कई बार मैं सही अर्थों में समझ नहीं पति हूँ हो सकता है की ये मेरी अपनी कमी हो और मेरे बौद्धिक स्तर से ऊँचे स्तर की हों। फिर भी किसी पोस्ट को पढ़ा जाना और उसके विषय की सार्थकता को स्वीकार करने में ही उसके उद्देश्य को पूरा करता है। मैं अपनी सीमाओं में रहते हुए जो भी अगर पढ़ती हूँ तो पूरी तरह से और उस पर टिप्पणी करती भी हूँ।

  16. पोस्ट लिखने और कमेंट करने, दोनो का अपना महत्व है। बात विचारों के अभिव्यक्ति की है। मैं भी इस बात से दुःखी रहता हूँ कि लोग आलोचना नहीं करते। आलोचना करने पर लोग नाराज भी होते देखे गये हैं। ब्लॉग जगत या अपने फेसबुक के मित्रों में अधिकांश कवि हृदय हैं..कवि दिल से बड़े भाउक हुआ करते हैं..आलोचना हुई नहीं कि अत्यधिक दुःखी हो जाते हैं। एक दूसरी पक्ष भी है..किसी प्रसिद्ध आलोचक की आलोचना से लेखक सहमत नहीं हुआ तो आलोचक महोदय भी बुरा मान जाते हैं! जबकि उन्हें भी बुरा नहीं मानना चाहिए। यह जरूरी थोड़ी न है कि आलोचक की हर आलोचना सहिये हो। उन्होने अपने विचार रखे लेखक ने अपने..फिर झगड़ा काहे का..? यह तो दूसरे पाठक तय करें कि कौन सही है। लोग फिर इसे मान सम्मान से जोड़कर झगड़ने लगते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। अब मैं भी आलोचना उन्हीं के ब्लॉग में करता हूँ जिन्हें.जानता हूँ ये बुरा नहीं मानेंगे।

    बढ़िया लगा आपका आलेख।

    • AjitGupta says:

      देवेन्‍द्र जी, मझे लगता है कि अभी ब्‍लाग का लेखक परिपक्‍व नहीं हुआ है, वह आलोचना को समझ नहीं पा रहा है। आलोचना हमेशा लेखक के लिए अनेक आयाम देती है, विचार देती है। लेकिन कभी-कभी तो वर्तनी की गल्‍ती बताने पर भी लोग नाराज हो जाते हैं। यही कारण है कि आलोचना के अभाव में लेखन का स्‍तर बढ़ नहीं पा रहा है। कल तक हम साहित्‍य में जिन नामों की चर्चा करते थे और वे नाम आज भी प्रासंगिक लगते हैं लेकिन आज ऐसे नामों का अभाव दिखायी देता है। आपने सही दिशा निर्देश दिया इसके लिए आभार।

  17. मैं सीमित पोस्टें ही पढ़ पाती हूँ ,क्योंकि ठीक से समझना चाहती हूँ -टिप्पणी जैसा मुझे लगता है अधिकतर दे ती हूँ , कभी-कभी रह भी जाती है.पर अदले-बदले में कोई विश्वास नहीं रखती.

  18. kavita rawat says:

    मैं भी खूब सारे ब्लॉग पढना चाहती हूँ लेकिन समय का बड़ा रोना है …जब भी समय मिलता है एक ब्लॉग से दुसरे ब्लॉग पर जितना समय मिलता है उतना ही पढ़ती हूँ ….जो मन में आता है वह लिख देती हूँ ब्लॉग पर …टिप्‍पणियों पर आपके विचारों से सहमत हूँ …
    बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति

  19. कल फ़ेसबुक पर जाना हुआ और देखा कि एक ब्लॉगर मित्र ने अपनी माताजी के दुखद देहांत की सूचना दे रखी है। बेहद दुख हुआ और ये देखकर और भी तकलीफ़ हुई कि अब तक सात लोगों ने उस स्टेटस को लाईक कर रखा है।
    फ़ेसबुक और ब्लॉग पर प्रतिक्रियाओं का ये भी एक स्तर है।

  20. aapaki baaton kahun ya anubhaw se sahamat

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