सफलता का मंत्र यदि बाजार में बिकता तो शायद हम सभी खरीद लेते लेकिन यह बाजार में नहीं हमारे अन्दर की बुनावट में ही निहित होता है। हमारे जीवन का आग्रह किसी एक बिन्दु पर दृढ़ होता जाता है जिसे हम कई बार जुनून की संज्ञा भी देते हैं, तब ही व्यक्ति उस क्षेत्र में सफल हो पाता है। विश्व में न जाने कितने वैज्ञानिक, कितने चिकित्सक, कितने इंजीनियर, कितने कलाकार सफलता के झण्डे गाड़ते रहते हैं लेकिन फिर भी वे विश्व पटल पर दृष्टिगोचर नहीं होते हैं। लेकिन कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिन्हें हम, भारतीय-चौसठ कलाओं के दायरे में रखते हैं और इनमें निष्णात व्यक्ति समाज के सम्मुख सफल व्यक्ति माना जाता है। नृत्य, गायन, लेखन, चित्रकारी आदि कुछ ऐसे ही विषय हैं जिनकी सफलता की कहानी सारा विश्व कहता है। माइकल जेक्सन नृत्य में प्रवीण हुए और उन्हें सारे विश्व ने स्वीकार किया, लता मंगेशकर जैसे गायक गायन के क्षेत्र में, अमिताभ बच्चन जैसे कलाकार अभिनय के क्षेत्र में, प्रेमचन्द जैसे लेखक लेखन के क्षेत्र में, सचिन तेंदुलकर जैसे खिलाड़ी खेल क्षेत्र में विश्व के समक्ष स्थापित हैं। इनके संघर्ष की गाथा को पढ़कर प्रेरणा मिलती है, हमें भी आगे बढ़ने का हौसला मिलता है। अधिकांश सफल व्यक्तित्वों ने अपनी यात्रा शून्य से प्रारम्भ की और वे अपने जुनून के कारण क्षितिज तक जा पहुँचे। लेकिन कुछ ऐसे भी व्यक्तित्व होते हैं जो क्षितिज तक तो नहीं पहुँच पाते लेकिन अपने आसपास चर्चित जरूर रहते हैं। उन्हें भी समाज सफल व्यक्तित्व में ही गिनता है। युवा पीढ़ी के समक्ष जब भी प्रेरणा देने की बात आती है तो इन्हीं आसपास के सफल व्यक्तित्व के बारे में जानकारी दी जाती है।
हमारे समाज में दो प्रकार के लोग हैं। एक है जो ऐसे सफल व्यक्तित्वों को प्रेरणास्रोत मानते हैं, उनका सम्मान करते हैं। दूसरे ऐसे लोग हैं जो सफल व्यक्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं, वे हमेशा आलोचना का शिकार ही उन्हें बनाते हैं। एक टीवी का एंकर, आईपीएल क्रिकेट की एंकरिंग करने लगा, तब एक टिप्पणी आयी कि यह क्या जानता है क्रिकेट के बारे में? अब हम कितना जानते हैं उस एंकर के बारे में? उसमें कितनी प्रतिभा है? यह हम नहीं जानते, लेकिन उसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न लगा देते हैं। आपके आसपास का कोई युवा अचानक ही सफल व्यक्ति बनकर आपके समक्ष उपस्थित होता है तब ऐसे ही नकारात्मक लोग कहते हैं कि अरे कल तक तो इसे नाक पौछना नहीं आता था और आज कैसे यहाँ तक पहुँच गया! अब उनसे पूछिए कि सभी बचपन में नाक पहुँचने की कला से अनभिज्ञ थे। ऐसे तो नहीं हो सकता कि पैदा होते ही बालक रोने के स्थान पर गायन प्रारम्भ कर दे! श्रीकृष्ण जो चौसठ कलाओं में निपुण थे, उनका बाल्यकाल भी माखन चोरी करते हुए ही व्यतीत हुआ था। आइन्सटीन को तो बुद्धू बच्चा कहा जाता था।
ऐसे नकारात्मक लोग स्वयं का कितना नुकसान करते हैं, शायद उन्हें समझ नहीं आता। वे सारा दिन इसी दुख से जले जाते हैं कि फला व्यक्ति का समाज में कैसे नाम हो गया? वे अपने अन्दर नकारात्मकता का जहर भर लेते हैं। जहाँ कही भी बैठेंगे, ऐसे सफल लोगों के बारे में नकारात्मक चर्चा ही करेंगे। जो वाक्य मैंने सुने हैं वे हैं – “रामदेव आठवी जमात पास है”, “अन्ना हजारे ड्राइवर था”, “सोनिया गांधी वेट्रेस थी” आदि आदि। सफल व्यक्तित्वों के लिए उनका सबसे क्षुद्र बिन्दु समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। प्रस्तुत ही नहीं किया जाता, उसी बिन्दु को लेकर मखौल उड़ाया जाता है। वह व्यक्ति निश्चित रूप से आहत होता होगा, लेकिन उससे अधिक ऐसे नकारात्मक लोग अपने अन्दर विस्तार ले रहे जहर से रोगग्रस्त होते रहते हैं। यदि हम किसी सफल व्यक्तित्व के बारे में जानकर प्रसन्नता का अनुभव करते हैं, तब हमारे अन्दर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है, हम उसके गुणों एवं कृतित्व को अपने अन्दर धारण करने का प्रयास करते हैं लेकिन जब हम ईर्ष्या के वशीभूत हो केवल निन्दा करने में ही लगे रहते हैं तब अपने विकास के सारे मार्ग बन्द कर लेते हैं। इसलिए किसी की उपलब्धि पर प्रसन्न होना सीखिए ना कि खिन्न। उसके संघर्ष की गाथा को जानने का प्रयास कीजिए तब विदित होगा कि कितने संघर्षों के बाद सफलता प्राप्त हुई है। सफलता कभी भी हाथ पर हाथ धरे, बैठे रहने से नहीं प्राप्त होती है, उसके लिए तो बस परिश्रम का ही मार्ग निहित है।
इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है, लेकिन आप सभी के विचार भी आमन्त्रित हैं। आपके अनुभव समाज को नयी दिशा देंगे, इसलिए अपने अनुभव सांझा कीजिए।
नकारात्मक विचार अक्सर खूबसूरत माहौल को खराब करते हैं , और उन्हें इसमें शांति भी महसूस होती है !
मैंने बहुत कम लोगों को पछतावा करते देखा है !
आभार एक आवश्यक लेख के लिए !
( आपका इस पोस्ट का लिंक ठीक कार्य नहीं कर रहा है, कृपया चेक करलें !)
आभार सतीश जी, मैंने ठीक कर दिया है, एक बार आप भी जांच ले।
इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा सकता यह ठीक लिखा आपने.
एक उत्कृष्ट प्रेरक रचना के लिए बधाई।
यह सह है कि किसी की अचानक सफलता को उसके साथी और जानकार सरलता से पचा नहीं पाते और उसके सर्वश्रेष्ठ हितैषी आलोचक के रूप में उभर आते हैं।
आदरणीया अजित जी, जो यहाँ कहूँगा मैं अपने अनुभव से कहूँगा …
1] कॉलेज की पढ़ाई एम् ए तक करने के बाद कमाई के बारे में सोचा तो सुनने को मिला व्यवसाय में बिना झूठ बोले सफल नहीं हुआ जा सकता। व्यवसाय मतलब ‘थोड़ा झूठ थोड़ी बेईमानी’. जिसने यह बात बतायी वह अपनी समझ से काफी अच्छी कमाई कर रहा था। लेकिन मुझे कभी ऎसी सफलता नहीं सुहाई जो किसी को नुकसान पहुँचाकर या धोखे में रखकर मिलती हो। और मैंने वह नहीं किया। ………… लेकिन ‘पैसे’ से सफल हुए साथियों की नक़ल करने का हामी मैं आज भी नहीं हूँ।
2] मेरे छोटे भाई ने कुछ साल पहले एक बार मुझसे प्रश्न किया – आप एक दिन में कितना कमा लेते हैं? मैंने कहा – “यदि पूरे दस घंटे काम करूँ तो मुश्किल से पाँच सौ रुपये”. वह मुस्कुराया, बोला – “और मैं पाँच सौ रुपये एक घंटे में कमा लेता हूँ।”
पत्नी को बुरा लगा। लेकिन मुझे नहीं। क्योंकि जो सफलता का पैमाना ‘पैसे’ से मानता है, वह जरूर अपने मन की शान्ति खो बैठेगा।
3] लेकिन मैं तब जरूर ‘निदारस’ का आनंद लूँगा जब किसी विचारोत्तेजक लेख पर विचारात्मक टिप्पणी देने के बजाय नामी ब्लोगर (यथा समीर लाल जी) केवल ‘उम्दा’ जैसे कमेंट करके चलते बनें। मुझे उनके कद वाले व्यक्तित्वों की पोपुलरटी से कोई गिला-शिकायत नहीं लेकिन यह प्रसिद्धि तभी न्यायसंगत मानी जानी चाहिए जब पढ़े गए लेखों पर यथोचित प्रतिक्रिया भी मिलती रहे। जो प्रवाहमान है वही उपयोगी है और शुद्ध भी। उसे ही सफल माना भी जाना चाहिए।
अब लीजिये — ‘लिटिल टी’ उर्फ़ ‘सचिन जी’ को … जब तक वे क्रिकेटर के रूप में एक बड़े समुदाय का मनोरंजन करते रहे नज़रों में सफल माने गए। उन्हें उसकी कीमत भी मिलती रही। यह उनकी तरफ से कोई समाज सेवा जैसी चीज़ नहीं थी। राष्ट्रीय भावना हर उस कर्म के साथ उफान में रहेगी ही जिसमें देश का नाम जुड़ जाया करता है। मेरे कर्म से यदि देश का नाम जोड़कर माना-समझा जा रहा है तो स्वभाविक है कि मेरा कर्म करने का ढंग बदला हुआ होगा। मेरे टाइपिंग करने को यदि देश लाइव देखने में लगा हो तो मैं अपने हुनर को निराले ढंग से पेश करने की सोचूँगा। स्पीड और एक्यूरेसी पर अधिक ध्यान जाएगा।
क्योंकि टीवी मनोरंजन को मीडिया द्वारा प्रभावी बनाया गया है, इसलिए ऐसा है। अन्यथा ‘लिटिल टी’ और ‘बिग बी’ की वर्तमान प्रसिद्धि के मूल को भी देखकर अपने आदर्श बनाने पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है। बड़ी-बड़ी कम्पनियों का ‘रंगीन पानी बेचकर’ बने धनाड्य कभी भी देश के आदर्श नहीं हो सकते। इसके पीछे न ही उनके बड़े कद से ईर्ष्या है और न ही अपने छोटे कद से शिकायत।
और ‘सोनिया’ जैसे देश के कर्णधार यदि त्यागमूलक आवरण ओढ़े होते तो जरूर उन्हें पूजनीय माना जा सकता था। जो देश की रीढ़ मज़बूत करने की बजाय उसे दीमक सा चाट रहा हो तो ऎसी सफलता के प्रेरक हमें अपनी भावी पीढ़ी के सामने नहीं रखने।
भारत में ‘शिक्षा’ से अधिक ‘चरित्र’ को महत्व मिलता रहा है। ‘मूल्यों’ की पढाई किसी पाठशाला या विश्वविद्यालय में नहीं होती, वह तो किसी भी अनपढ़, अभावग्रस्त सुदामा वृत्ति वाले व्यक्ति के घर में भी हो सकती है। इसके लिए धन व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती।
फिलहाल इतना ही … मुझे यह लेख बहुत सारगर्भित लगा। साधुवाद।
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यह सह है = यह सही है …
ऐसे नकारात्मक लोग स्वयं का कितना नुकसान करते हैं, शायद उन्हें समझ नहीं आता। वे सारा दिन इसी दुख से जले जाते हैं कि फला व्यक्ति का समाज में कैसे नाम हो गया? वे अपने अन्दर नकारात्मकता का जहर भर लेते हैं। जहाँ कही भी बैठेंगे, ऐसे सफल लोगों के बारे में नकारात्मक चर्चा ही करेंगे।
हाँ अजीत जी ! और ऐसे लोग अपना ही नुक्सान करते हैं. नकारात्मकता उनके स्वभाव का हिस्सा बनकर एक मानसिक बीमारी सी बन जाती है और धीरे धीरे उनके अंदर के गुणों को भी समाप्त कर देती है .
@सफलता कभी भी हाथ पर हाथ धरे, बैठे रहने से नहीं प्राप्त होती है, उसके लिए तो बस परिश्रम का ही मार्ग निहित है।
इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता, किसी भी सफलता के पीछे कठिन परिश्रम होता है,
आलोचन करना बहुत आसन है, पर इस परिश्रम के गुण को आत्मसात कर आगे बढ़ना ज्यादा दुष्कर लगता है उन्हें।
प्रतुल जी, आपकी लम्बी टिप्पणी अच्छी लगी। आपकी बात से सहमत हूँ कि पैसे की बहुलता कभी भी सफलता का मापदण्ड नहीं हो सकता। लेकिन कला-क्षेत्र में प्रसिद्धि कलाकार की कहानी जरूर कहता है। हाँ यह भी ज्ञातव्य है कि आज के मीडिया की भूमिका भी सहयोग प्रदान करती है। लेकिन मीडिया का सहयोग भी तभी मिलता है जब आप सफल हो जाते हैं। कोई भी व्यक्ति जो शून्य से निकलकर महान बना है, उसकी जीवनी को यदि जानेंगे तो विशेषताएं अवश्य मिलेगी।
कुछ प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति संघर्षों से शीघ्र ही टूट जाते हैं, और निराशा में डूब जाते हैं। यदि वे उनके समकक्ष व्यक्तियों की जीवनी को देखते तो शायद उन्हें प्रेरणा मिलती। आपने एक बात कि ओर भी संकेत किया है कि आदर्श मानना। आज हम अपना आदर्श किसी को भी मान लेते हैं, इस परम्परा की मैं भी विरोधी हूँ। आप यदि अभिनय के क्षेत्र में हैं तभी शाहरूख, अमिताभ आदि को अपना आदर्श माने, नहीं तो आपका आदर्श वही होना चाहिए जो आपका मार्ग हो। जैसे एक इंजिनीयर का आदर्श आइंस्टीन होना चाहिए।
व्यक्तित्व के नकारात्मक पहलू पर एक सकारात्मक आलेख. बहुत बार ऐसी कुंठा तब भी पनप सकती है जब अपने को असफल मानने वाला एक सामान्य व्यक्ति किसी कारणवश सफल व्यक्ति को अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगे. ऐसी स्थिति में कोई साधारण गायक लता मंगेशकर के प्रति कटु हो जायेगा, किसी अल्प-परिचित नेता की बहू सोनिया गाँधी के प्रति, और आर्थिक रूप से सामान्य व्यक्ति बड़े व्यवसायी की समृद्धि के प्रति. कई बार निहित स्वार्थ साधने वाले गुटों द्वारा बड़े लोगों के खिलाफ संगठनात्मक रूप से सच्ची-झूठी बात करके असंतोष भड़काने और उससे लाभ उठाने का कार्य भी किया जाता है. नेहरु जी को मुस्लमान, गाँधी जी को क्रांतिकारियों का शत्रु या स्वामी विवेकानंद को मांसाहार का समर्थक बताकर उन्हें आदर्श मानने वाले बड़े समुदाय का राष्ट्रनायकों के प्रति मोहभंग करने के षड्यंत्र इसके उदहारण हैं. लेकिन कई बार सफल या प्रसिद्ध लोगों की सफलता पर उठाये गए प्रश्न सही भी होते हैं और चिंतन की नई दिशा दिखा सकते हैं.
बेशक हर सफल व्यक्ति के पीछे उसकी मेहनत , लगन और निपुणता छिपी रहती है. इनसे प्रेरणा लेकर और अनुसरण कर दूसरे भी सफलता की राह पकड़ सकते हैं. लेकिन ईर्ष्या , जलन आदि नकारात्मक अवगुण भी लगभग हर इन्सान में होते हैं. यदि इनसे पार पा लिया जाये तो हम सात्विक होकर संत ही न बन जाएँ. इसका सबसे बड़ा उदाहरण फेसबुक पर देखा जा सकता है जहाँ सब स्वयं को बढ़ चढ़ कर शो ऑफ़ करने की कोशिश करते हैं और औरों की सफलता से परेशां होने लगते हैं.
सात्विक सोच को बढ़ावा देती पोस्ट.
वर्तमान ही मानक हो..
नकरातमक भाव निश्चय ही स्वयं के लिए नुकसान देने वाला होता है ….. सफल लोगों के व्यक्तियों के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए …. प्रतुल जी की टिप्पणी बहुत सार्थक विश्लेषण कर रही है ….
डॉक्टर दीदी,
किसी भी सफल व्यक्ति की सफलता के बाद उसके व्यक्तित्व/चरित्र के किसी नकारात्मक पहलू को उभारना उस व्यक्ति की मानसिक कुंठा का परिचायक है. ऐसे लोग चाँद में भी दाग ढूँढते हैं. इंसानी फितरत है कि हम किसी रेखा के सामने बड़ी रेखा खींचकर उसे छोटा बनाने के बजाये, उसे काटकर या मिटाकर छोटा बनाने में यकीन रखते हैं.
मगर एक और पहलू भी है.. कई ऐसे महान लोग भी हुए हैं जिनकी महानता के डंके दुनिया भर में बजाते हैं, लेकिन उनके कई चारित्रिक दोष ऐसे भी होते हैं जो उनकी छवि के विपरीत होती है. एक महान लेखक जिसने नारी चरित्र पर कई उपन्यास लिखे और अमर हो गए, अपनी व्याहता पत्नी को छोडकर दूसरी औरत के साथ जीवन बिताते रहे! यह उनका निजी मामला हो सकता है, मगर उनकी छवि के विपरीत.
लता जी के रफ़ी साहब, शंकर-जयकिशन और बर्मन साहब के साथ हुए झगड़े की बातें, सचिन के देश से अधिक खुद के लिए खेलने का आरोप और भी बहुत सारे उदाहरण हैं. वास्तव में इन महान व्यक्तित्वों ने अपने चारों तरफ प्रसिद्धि का एक ऐसा ‘औरा’ बना लिया होता है कि कई घिनौने दाग छिप जाते हैं और इन्हें दिखाने वाला पागल करार दिया जाता है!!
एक बहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है आपने!
आ . अजित जी,
दोबारा आया तो आपकी प्रतिक्रियाएँ देखीं … कुछ अनुचित नहीं लगा।
लेकिन भगवान् कृष्ण के सन्दर्भ में कुछ कहना चाहूँगा … ‘कृष्ण लीलाओं की अधिकांश कथाएँ कवि और भक्त की मानसिक क्रीड़ाएं हैं। सत्य से दूर हैं।
‘माखन चोरी लीला, गोपी वस्त्र हरण लीला, गौ-चारण, राधा और गोपियों के साथ रास लीला आदि-आदि भक्त-कवियों ने ‘उज्ज्वल चरित्र’ को अपनी दृष्टि और अपनी सोच के अनुसार धुंधला किया है।
‘वर्णाश्रम’ व्यवस्था के अनुसार उपनयन संस्कार के उपरान्त बालक ‘गुरुकुल’ में रहता था न कि समाज में ये लीलायें करता घूमेगा। संदीपन आश्रम में रहकर विद्या अर्जन करना और 64 कलाओं में निष्णात होना तो संभव है।
भक्त सूरदास जी की आँख से कृष्ण को देखना सुखकर अवश्य है लेकिन सच नहीं। भक्ति की अतिशयता सामाजिक क्लेशों से मुक्त कराती है, मानसिक तनावों से आराम दिलाती है .. लेकिन यह तर्क की कसौटी पर खरी नहीं उतरती।
कोई बहुमुखी व्यक्तित्व हो तो कोई बात नहीं, पर मज़ा तो तब आता है जब कुछ लोग बस PR कला विशेष में पारंगत होने ही के कारण हर दूसरे क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने निकल पड़ते हैं 🙂
तरक्की का कोई छोटा रास्ता नहीं है काम करने का जुनून भी ज़रूरी है ,सही दिशा भी .निंदा केवल निंदा के लिए नहीं होनी चाहिए .सकारात्मक ऊर्जा सृजन है नकारात्मक विध्वंश .शुक्रिया इस
पोस्ट
के लिए ..
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हे सफलता और असफलता की ,,,,,सफल व्यक्ति के तो अवगुण भी नज़रं अंदाज़ कर दिए जाते हें और असफल व्यक्ति के गुण भी ,,,,,,,
I AGREED WITH SATISH BHAI SAHAB. SO NICE POST TO THINK
एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं सारगर्भित आलेख ऐसे लोगों की कमी नहीं पूरे समाज में चाहे कोई सी भी दिशा या विषय उठाकर देख लीजिये मुझे तो बहुत बुरा लगता है जब समाज में ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों के ऊपर कोई किसी तरह का लाल्छन लगाता नज़र आता है माना कि किसी भी व्यक्ति के प्रति सबका अपना एक अलग नज़रिया होता है मगर उसका मतलब यह नहीं कि यूं सारे आम उसका माखौल उड़ाया जाया और समाज के सामने उसे अपने जले कटे शब्दों के सम्बोधन से शर्मिंदा किया जाये। एक आवशयक एवं विचारणीय आलेख हेतु आपका आभार….
ओलम्पिक मेडल विजेता पहलवान ’सुशील कुमार’ ने शराब का विज्ञापन करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया जबकि दूसरे बहुत से अपेक्षाकृत ग्लैमरस खिलाड़ी(अपेक्षाकृत ग्लैमरस खेलों से जुड़े होने के कारण) बिना दिमाग पर बोझ डाले पैसा कमाने में अधिक सफ़ल हैं।
पूर्व ऒल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियन ’पी. गोपीचंद’ ने शीतल पेय का विज्ञापन करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था जबकि …।
इकोनोमिक्स और सोशियोलोजी में जरूरतों की प्राथमिकताओं के बारे में बताया जाता है, ऐसे ही सफ़लता की भी प्रायोरिटीज़ होती हैं, भौतिक, आत्मिक, सामाजिक, ललित कला क्षेत्र में सफ़लता आदि आदि। हो सकता है कोई किसी एक क्षेत्र में सफ़ल हो और दूसरे में नितांत असफ़ल।
आपका लेख केन्द्रित है सफ़लता से ज्यादा सफ़ल लोगों पर अन्य लोगों की प्रतिक्रिया के बारे में, तो दोष देखने वालों को छिद्रान्वेषण में सफ़ल मान लेना चाहिये:)
प्रतुल भाई, अनुराग जी और सलिल भाई की टिप्पणियाँ अच्छी लगीं।
एक लिंक देना चाहूँगा, लगभग यही विषय है –
http://shrut-sugya.blogspot.in/2012/08/blog-post_29.html
संजय जी, सुज्ञजी को मैं पढ़ती रहती हूँ। यह ब्लाग शायद उनका नया है और मैं उसकी फोलोवर नहीं थी, इसलिए मैं अभी तक नहीं पढ़ पा रही थी। अब फोलोवर बन गयी हूँ तो उनकी पोस्ट आने लगेंगी।
मेरे विचार से सफलता का कोई मापदण्ड है ही नहीं, लेकिन फिर भी हमारे आसपास या जग प्रसिद्ध ऐसे व्यक्तित्व बिखरे पड़े हैं जो अपने क्षेत्रों में प्रसिद्ध हुए हैं। बस उनके संघर्ष जब देखते और जानते हैं तब प्रेरणा मिलती है, आलोचना से हताशा ही मिलती है। मेरे आलेख का इतना सा ही अर्थ है। विभिन्न विचार यहाँ आएं इसी की आकांक्षा थी, आपने नवीन विचार दिए, अच्छा लगा।
आदरणीया अजित जी सादर नमस्कार
वड़ी ही सुन्दर पोस्ट दी है आपने सचमुच सफल व्यक्ति की आलोचना करने बाले तो बहुत होते हैं और शायद जिन्हैं हम् आज तक अपना समझ रहैं होते हैं वे भी इसमें हमारे पीछे से शामिल रहते हैं।और प्रत्येक सफल व्यक्ति के आलोचक जरुर होते हैं।उनके पास शायद और कोई काम तो होता नही है वे इसे ही करके अपना काम समझ लेते हैं।लेकिन किसी सफल व्यक्ति को इससे नही घवराना चाहियें।मैरी खुद की घटित एक घटना है।मेरे पड़ोसी जिनका मकान मेरे स्कुल से सटा है जब मेने स्कुल खोला तो उन्है जाने क्या हुआ मेरे सामने तो मेरी ताऱीफ करते लैकिन मेरे पीछे नये नये उपनाम मुझे देकर नवाजते मैं उनकी वाते समझ तो जाता लैकिन कुछ नही कहता था ।एक बार मेरे सामने ही वोले कि मैं तुम्हारे नाम की खोज कर रहा हूँ कि तुम्हैं क्या नाम दूँ कुछ दिनो बाद मेंरे लिए नाम भीढूढ लाऐ और कहने लगेकि तुम्हैं फला नाम से बोला करेंगें मेरा जो नाम उन्हौने ढूढा वो वड़ा ही भद्दा था जवकि वे रिटायर्ढ टीचर हैं मैं उनसे ज्यादा तो कुछ नही कहा हाँ इतना जरुर कहा कि गुरु जी वैसे आप गुरु जी है जो भी नाम देंगे हम स्वीकार कर लेते हैं किन्तु आप प्रयोग करके देख लें कुछ दिनों बाद आप स्वयं ही देखेंगे कि आप हार गये हैं आप जो हमें चिढा़ने के लिए नाम लाए है हम पर इन बातों का कोई प्रभाव नही पडे़गा आप चाहें तो प्रयोग करके देख लें क्योंकि यह पहली बार नही है जो आप नाम रख रहैं हैं मेरे अनेकों लोग नाम रखकर देख चुके हैं आप भी अपनी मंशा पूरी कर के देख लें फिर भी वे नही माने और उसी नाम से मुझे नबाजते रहैं फिर थोड़े दिन तो उन्हौने हद ही कर दी मुहल्ले में सभी लोगों से उस नाम से बुलबाने लगें लैकिन मैने भी हार नही मानी सबका ढीक से उत्तर विना चिढे़ दे देता था ।और कभी कभी उन्ही मास्टर साहव को उल्टा उस नाम से पुकार कर कहता कि मास्साव आज आपने यह नही वोला तो कुछ समय बाद उन्हैं ही वो वुरा लगने लगा और फिर उन्होने भी इसे बोलना वन्द कर दिया साथ ही और लोगो ने भी बन्द कर दिया ।