अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

समाज भेड़िये पैदा कर रहा है और समाज के ठेकेदार जनता से सुरक्षा-कर वसूल रहे हैं

Written By: AjitGupta - Apr• 20•13

एक घना और फलदार वृक्ष था, उसमें सैंकड़ों पक्षी अपना बसेरा बनाए हुए थे। उसमें इतने फल लगते थे कि उन सभी पक्षियों का पेट भर जाता था। पास में ही एक नदी बहती थी, वृक्ष की जड़े उसी नदी से पानी लेती थी और पेड़ को हरा-भरा रखती थी। नदी जिस शहर से होकर गुजरती थी, वहाँ एक रसायन उत्‍पाद करने वाला कारखाना था। उस कारखाने का रसायन युक्‍त पानी उसी नदी में आकर मिलता था। शहर की अन्‍य सारी गन्‍दगी भी उसी नदी में समाती थी। पेड़ उसी नदी का पानी लेने को मजबूर था। धीरे-धीरे उस पेड़ पर उन रसायनों का असर होने लगा और पेड़ सूखता चला गया। अब उसमें फल लगने बन्‍द हो गये औऱ जब फल नहीं है और पेड़ हरा-भरा भी नहीं है तब भला पक्षी वहाँ क्‍यों बसेरा करने लगे? एक दिन विशाल हरा-भरा पेड़ सूख कर मृतप्राय हो गया।

इसी पेड़ की तरह ही हमारे देश की स्थिति है। इतने विशाल और हरे-भरे देश को जहरीले वातावरण ने इस प्रकार दूषित किया है कि अब यह मृतप्राय हो चला है। किसी भी देश की नींव होता है वहाँ का समाज। समाज से ही राजनेता आते हैं और समाज से ही प्रशासनिक अधिकारी। यदि समाज ही दूषित हो जाए या सम्‍पूर्ण रूप से सड़ जाए तो फिर उस सड़ी व्‍यवस्‍था से दूषित व्‍यक्ति ही पैदा होंगे। आज हमारे देश की यही स्थिति है। दिल्‍ली की मासूम कली के साथ हुई दरिंदगी, मन-मस्तिष्‍क में हाहाकार मचाए हुए है। लग रहा है कि अब इस देश की कलम में भी ताकत नहीं रही। हमने भेड़िये पैदा करने प्रारम्‍भ कर दिए हैं। कल्‍पना कीजिए उस जंगल की, जहाँ भेड़ियों की संख्‍या बढ़ रही हो और अन्‍य प्राणियों की संख्‍या घट रही हो, तब अन्‍य प्राणियों का क्‍या हाल होगा? मैं बार-बार कह रही हूँ कि आज समाज के हजारों ठेकेदार बने घूम रहे हैं लेकिन ये ठेकेदार केवल भेड़िये पैदा कर रहे हैं, मनुष्‍य नहीं। जनता को आज राजनेता से अधिक इन समाज के ठेकेदारों के पास जाना चाहिए, जहाँ उनके भक्‍तगण लाखों की संख्‍या में उनके पास जाते हैं। उनसे प्रश्‍न करना चाहिए कि आप कैसे समाज के हितरक्षक बनकर घूम रहे हैं, जो समाज की इस सडांध को समाप्‍त नहीं कर सकता? जितने भी सम्‍प्रदाय इस देश में हैं, उनके हजारों साधु-संन्‍यासी, मौलवी, फादर, मुनि, सामाजिक कार्यकर्ता आदि आदि हैं और फिर भी ऐसी दरिंदगी इस देश में है? इस देश का समाज जितना टेक्‍स सरकार को नहीं देता, उतना दान इन धार्मिक संस्‍थाओं को देता है फिर भी समाज सुरक्षित नहीं है। ये जितने भी ठेकेदार हैं, वे जहरीली नदी बन गए हैं और हरे-भरे वृक्ष रूपी परिवारों को लील रहे हैं। ये प्रत्‍येक व्‍यक्ति का धन चूस रहे हैं और स्‍वयं का जीवन सुरक्षित कर रहे हैं लेकिन आम जनता असुरक्षित होती जा रही है। इसी दूषित समाज से राजनेता जन्‍म लेते हैं और इसी दूषित समाज से प्रशासनिक अधिकारी जन्‍म लेते हैं। इन्‍हें पैदा करते समय केवल एक ही दृष्टिकोण रहता है कि ये किस प्रकार आम आदमी का शोषण कर सके। जैसे भेड़िये को जन्‍म के साथ ही सिखाया जाता है कि कैसे शिकार किया जाता है वैसे ही आज प्रत्‍येक व्‍यक्ति को सिखाया जा रहा है कि किस प्रकार आम आदमी का शिकार किया जाता है। कोई धार्मिक तरीके से शिकार करना बताता है तो कोई राजनैतिक तरीके से। कोई मनोरंजन के नाम पर भेड़ियों के व्‍यभिचार को बढ़ाते हैं तो कोई प्रशासन के नाम पर इनके दांत पैने करते हैं। चारों तरफ एक मिलीभगत है, इन भेड़ियों की। पहले शिकार के लिए हाका किया जाता था लेकिन अब भेड़िये हाका कर रहे हैं और चारों तरफ से आम जनता को घेरकर उसे नौंच-नौचकर खा रहे हैं। क्‍या इसी व्‍यवस्‍था के सहारे हम हमारी नयी पीढ़ी को सुरक्षा दे पाएंगे? कदापि नहीं। अब तो आम आदमी को अपनी सुरक्षा स्‍वयं ही करनी होगी और उसे हरपल सतर्क रहना होगा कि कहीं कोई भेड़िया आपकी मासूम कली की ताक में तो नहीं बैठा है। आज ये भेड़िये कलियों को कुचल रहे हैं, हो सकता है कल नन्‍हें मासूमों का भी नम्‍बर लग जाए। क्‍योंकि इन नर-पिशाचों की हवस इतनी बढ़ गयी है कि अब वह कोई भी मार्ग इसके लिए चुन सकते हैं। इसलिए आम और लाचार जनता कहलाने वाले हम लोगों को अब अपनी सुरक्षा स्‍वयं करनी होगी और इन समाज के ठेकेदारों को दान के नाम पर जो सुरक्षा-कर देते हैं, वह बन्‍द करना होगा। हर आदमी लाखों की संख्‍या में इन धार्मिक स्‍थलों और इन बाबाओं के यहाँ लाइन लगाकर खड़ा है, उसे वहाँ जाना बन्‍द करना होगा और अपने परिवार की सुरक्षा का जिम्‍मा लेना होगा। नहीं तो हमारा देश भी उसी फलदार वृक्ष की तरह सूख जाएगा और उस वृक्ष पर बसेरा किए पक्षी किसी दूसरे देश में अपना ठिकाना ढूंढ लेंगे।

You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

18 Comments

  1. समझ में नहीं आता,दिन-पर -दिन अधिकाधिक दरिन्दे बने जा रहे इन आदमियों का कैसे क्या करें !

  2. दरिंदगी की हद हो गयी है , कब कहाँ से कोई भेड़िया निकल आए पता ही नहीं चलता … अब तो स्थिति ऐसी हो गयी है कि बाड़ खेत को खा रही है …

  3. मन दहला देने वाला परिदृश्य प्रस्तुत कर रहा है आज के दौर का समाज । अपनी सुरक्षा का जिम्मा आप ही उठाना होगा | किसी से कोई आशा करना ही बेकार है ,

  4. लगता है आज चहुं ओर ही जंगल राज हो गया है पर क्या जंगल में इतनी दरिंदगी है? जंगल में तो सिर्फ़ जरूरत के अनुसार ही शोषण होता है. यहां मनुष्यों की दुनियां में तो सारी सीमाएं पार हो चली हैं.

    रामराम.

  5. जिसके मन में यह विचार आएगा वह ऐसा घृणित काम कैसे करेगा ….
    त्वरित न्याय और मृत्युदण्ड ही कारगर उपाय …

  6. आम आदमी को अपनी सुरक्षा के लिये जागरुक रहना होगा। लेकिन अबोध बच्चियां कैसे सजग रहेंगी? बहुत दर्दनाक है यह सब।

  7. धार्मिक स्थलों और बाबाओं के यहाँ जाने से ये सब हो रहा है?

    • AjitGupta says:

      संजय जी, यह मैंने कब कहा कि धार्मिक स्‍थलों पर जाने से यह हो रहा है? मेरा कहने का तात्‍पर्य तो इतना ही है कि हम सरकार के टेक्‍स के साथ सामाजिक और धार्मिक संस्‍थाओं को भी टेक्‍स देते हैं, उनपर आस्‍था रखते हैं लेकिन वे लोग समाज सुधार के नाम पर केवल स्‍वयं का सुधार करते हैं इसलिए वहाँ लाइन लगाकर खड़े होने से अच्‍छा है कि स्‍वयं की सुरक्षा के बारे में सोचे।

  8. आज जरूरत है समाज में पल रहे कामी भेड़ियों को मारने की।

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
    साझा करने के लिए आभार…!

  9. बहुत बुरा हाल है, जाने कब था फलदार वृक्ष जैसा हमारा देश, अभी तो बस उसकी शिराओं में फैला जहर ही नज़र आ रहा है .

  10. Kiran Mala Jain says:

    हमें ख़ुद जागृत होना होगा,समाज को समझाना होगा ,सब मिल कर ,सामाजिक संस्थाये ,आदि मिल कर यह निर्णय ले कि यह सरकार की नहीं हमारी समस्या है ,हमारी बच्चियों का शिकार हो रहा है ,और शिकारी भी हमारे आसपास ही कहीं है हमारे ही घर ,मोहल्ले ,ओफिस,स्कूल ,पड़ोस ,आदि जगहों पर ,हमें उसे पहचानना है ।हमें हमारी बच्चियों को सिखाना पड़ेगा कि उन्हे डरना या शर्माना नहीं है,दबना भी नहीं है बस इतना करना है कि जब भी उन्हे लगे कि कोइ उनके साथ गंदी हरकत करने की कोशिश कर रहा है तो उसके बारे में तुरन्त बतायें ,समाजिक संस्थाओं को कुछ ऐसे दल अपने अपने मोहल्लों में बनाने चाहिये जो ऐसे लोगों को identify करे जो dirty minds है और उनकी हरकतों पर नज़र रखे ।अगर हर कालोनीॅ में ऐसी सजगता टोली बनजाए तो शायद हमारी बहन बेटियाँ सुरक्षित रह सकती है।

  11. सामजिक प्रदूषण पर कोई रोक नहीं 🙁

  12. हद ही भी कोई हद है या नहीं … समझ से परे है …
    बदलाव की बात हर कोई करता है पर फिर भी बदलाव क्यों नहीं आता … ये ओर भी ज्यादा समझ से परे है ….

  13. CA ARUN DAGA says:

    चारों तरफ एक मिलीभगत है, इन भेड़ियों की,स्थिति ऐसी हो गयी है कि बाड़ खेत को खा रही है …

  14. Hanuman prasad gupta says:

    bhedio ki sankhya badti ja rahi ha

  15. सटीक बात अ़जित जी,

    इन बाबा लोगों की सारी दुकानदारी दान के नाम पर लोगों से ज़्यादा से ज़्यादा माल झटकने की होती है…कुछ महीने पहले ऐसा ही एक बाबा अपनी संस्था के लिए आयकर में छूट का झूठा सर्टिफिकेट गढ़ने के आरोप में धरा गया था…लेकिन पैसे के दम पर साफ़ बच निकला…
    इनकी सारी चिंता कॉरपोरेट की तरह अपने साम्राज्य को बढ़ाने की है…अब ऐसे में समाज में नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए इनसे कोई अपेक्षा रखना बेमायने है…

    जय हिंद…

  16. किसी भी राष्ट्र समाज में महिला की स्थिति वहां की civility नागर बोध के स्तर को दर्शाती है .हम एक मनोरोगी समाज बन रहें हैं तेज़ी से .सरकंडे की नै फसल लेने के लिए पुरानी को जलाना पड़ता है हमारी अब वही नियती है .
    अब तो इस तालाब का पानी बदल दो …

  17. shobhana says:

    येभी सच है की जो कुछ लिखा जाता है ये भेड़िये वो भाषा ही नहीं जानते

Leave a Reply