अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

अण्‍डमान का सुन्‍दर द्वीप हेवलोक

Written By: AjitGupta - Mar• 11•14

गतांक से आगे – portblair 034 portblair 039 portblair 037 portblair 049

एक और दर्शनीय और पर्यटकीय महत्‍व का द्वीप है – हेवलोक। प्रत्‍येक पर्यटक की मंजिल होती है हेवलोक। यहाँ समुद्र तट नाम के साथ नम्‍बरों में भी विभाजित हैं। राधानगर बीच अर्थात‍ 7 नम्‍बर बीच सर्वाधिक खूबसूरत है। इसे एशिया का सातवें नम्‍बर का सर्वाधिक खूबसूरत बीच माना गया है। यहाँ के बीचों पर ठेले वाले नहीं हैं। उन्‍हें बाहर ही रोक लिया गया है, इसलिए गन्‍दगी का नामोनिशान नहीं है। बीच पर आप जाएंगे तो जाहिर सी बात है कि आप समुद्र के निमंत्रण को ठुकरा नहीं पाएंगे और सूरज की साक्षी में ही समुद्र की लहरों के बीच झूलने का आनन्‍द लेने लगेंगे। समुद्र भी किनारे पर ही अधिक उग्र है, थोड़ा सा मध्‍य में जाएंगे तो वहाँ थपेड़े कम लगेंगे। पर्यटक अपने साथ केमरा, मोबाइल आदि लेकर जाते ही हैं, लेकिन यदि आपको समुद्र की लहरों के बीच जाकर आनन्‍द लेना है तब इन कीमती सामानों की चिन्‍ता करने की आवश्‍यकता नहीं है। वहाँ आपके लिए 10 रू घण्‍टे के हिसाब से लॉकर उपलब्‍ध हैं। वस्‍त्र बदलने और साफ पानी से नहाने के लिए भी आपको नि:शुल्‍क और सशुल्‍क दोनों ही व्‍यवस्‍थाएं उपलब्‍ध हैं। बैठने के लिए भी बैंचे प्रचुर मात्रा में हैं। पानी के साथ घण्‍टों अठखेलियां करिए, समय कहाँ व्‍यतीत हो गया पता ही नहीं चलता। आप अपना मन वहीं छोड़ आते हैं और साथ ले आते हैं, जेबों में ठूंसकर ढेर सारी रेत। यहाँ समुद्र भी अपनी गन्‍दगी का निस्‍तारण नहीं करता है। मैंने सेनफ्रांसिस्‍को में देखा कि तटों पर समुद्र की लताएं बिखरी पड़ी रहती हैं, लेकिन यहाँ एकदम साफ-सुथरा, एकदम मनोहारी।

शाम को पांच बजे बाद बीच पर रहने की मनाही है, सारे ही पर्यटक अपने नीड़ में लौट आते हैं। हम भी हमारे होटल में वापस आ गये लेकिन शाम को होटल से लगे हुए बीच नम्‍बर 5 पर टहलते हुए चले गए। वहाँ धूप स्‍नान करने वाली बेंच लगी थी, झूला भी लगा था, दृश्‍य एकदम फिल्‍मी था। बीच होटल से लगा था, इसलिए भीड़भाड़ से दूर था। बस इक्‍का दुक्‍का लोग ही वहाँ थे। हम भी वहाँ प्रकृति को निहारने लगे। तभी एक जोड़ा समुद्र में घुस गया और जैसे पानी पर ही चल रहा हो, उसी अंदाज में दूर तक चले गया। हम आश्‍चर्य चकित थे कि समुद्र में इतनी दूर आसानी से चलकर जाना? हम भी समुद्र में उतर गए, पानी स्थिर था, लहरे नहीं थी। चारों तरफ कोरल थे, हम भी नजदीक जाकर उन कोरल समूहों का जीवन तलाशने लगे थे। कुछ ही देर में वहाँ के निवासी कुछ बच्‍चे वहाँ घूमते हुए आ गए, हमने समुद्र का राज पूछा कि यहाँ इतनी दूर कैसे जा पाते हैं लोग? पता लगा कि समुद्र यहाँ ठहरा हुआ है, काफी दूर जाने पर ही उथल-पुथल है। ज्‍वार-भाटे के समय पानी का उतार चढ़ाव होता रहता है इसकारण तट पर कभी पानी दिखायी देता है और कभी पानी दूर सरक जाता है। लेकिन इतनी शान्‍त जगह दूसरी और नहीं थी। अंधेरा होने तक हम वहीं बैठे रहे, डर तो कुछ नहीं था लेकिन शहरी मन अक्‍सर डर ही जाता है इसलिए वापस अपने होटल के कमरे में आ गए। दूसरे दिन भी वहीं पहुंच गए और आश्‍चर्य से पूछ बैठे कि समुद्र का पानी कहाँ गया? अब पानी काफी पीछे सिमट गया था। हमने वहीं डेरा डाल दिया, कुछ देर बाद पानी वापस आ गया।

हेवलोक से ही एलीफेण्‍टा बीच जाया जाता है, यहाँ जाने के लिए प्राइवेट छोटी नावें हैं। लेकिन अभी कुछ दिन पूर्व ही एक नाव दुर्घटना ग्रस्‍त हो गयी और कई सैलानी मारे गए। तभी से यह बोट बन्‍द है। यहाँ कोरल-साम्राज्‍य देखा जा सकता है। युवा लोग अभी भी पहाड़ लांघकर वहाँ जा सकते हैं। ऐसा ही एक और द्वीप है – बाराटांग। इस द्वीप के पास ही जारवा जनजाति के लोग रहते हैं। उनकी संख्‍या 270 के लगभग है। ये सरकारी संरक्षण प्राप्‍त हैं। ये आम मनुष्‍य से दूरी बनाकर चलते हैं। लेकिन एक घटना घटी जिससे शहरी मनुष्‍यों से इनकी दूरी कम हुई है। एक युवा जारवा घायल हो गया और वह एक नाले के पास पड़ा रहा। उसके साथी भी उसे छोड़कर चले गए, अण्‍डमान निवासियों की दृष्टि उसपर पड़ी और वे उसे चिकित्‍सालय में  ले आए। वहाँ कई महिनों तक उसकी चिकित्‍सा हुई और तब वह जान पाया कि शहरी मनुष्‍य भी उनकी तरह ही हैं। वह वापस अपने द्वीप लौटा और तभी से मैत्रीभाव बढ़ रहा है। लेकिन अभी भी एक जनजाति ऐसी है जिससे मैत्री भाव नहीं है। बाराटांग पर भी कोरल द्वीप को देखने की व्‍यवस्‍था है लेकिन यहाँ भी नाव-दुर्घटना के कारण आवागमन बन्‍द था। इस कारण हमारे दो दिन के कार्यक्रम बदल चुके थे। समुद्र नहीं तो पहाड़ ही सही। एक उल्‍लेखनीय टापू था चिरिया-टापू। यहाँ पलोड वृक्षों से टापू लदा हुआ था। यहाँ का सूर्यास्‍त भी दर्शनीय था। पोर्ट ब्‍लेयर में पर्यटकों को आरा-मिल दिखायी जाती है जहाँ पलौड़ वृक्ष की कटाई होती है, उससे निर्मित कलात्‍मक वस्‍तुयें यहाँ बिक्री के लिए भी उपलब्‍ध हैं। सम्‍पूर्ण अण्‍डमान और निकोबार द्वीप समूहों को समझने के लिए एक म्‍यूजियम भी है, जहाँ चित्रों के माध्‍यम से द्वीप समूहों को समझा जा सकता है। और अन्‍त में अब आप म्‍यूजियम से बाहर निकलेंगे तब एक सरकारी दुकान मिल जाएगी। जहाँ आप कोरल आदि स्‍टोन सही दाम पर खरीद सकते हैं। वापसी वीर सावरकर अन्‍तरराष्‍ट्रीय हवाई अड्डे से है जो कलकत्ता और चैन्‍नई होकर दिल्‍ली आता है। छोटा सा एयर पोर्ट है लेकिन बिना किसी आपाधापी के कार्य सुगमता से हो जाते हैं। हमने भी सारी ही खुशियों को समेटा और वापस उड़ चले दिल्‍ली की ओर।

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9 Comments

  1. यह दृश्य तो मन मोहने वाला है।

  2. t s daral says:

    राधानगर बीच तो वास्तव मे बड़ी सुन्दर है . हम भी घंटों पानी मे नहाये थे . दूसरी बीच मे दूर तक पानी बहुत कम है . सुन्दर यात्रा का मज़ा लिया है आपने , बधाई जी .

  3. ARUN DAGA says:

    आपने ही सारी ही खुशियों को समेटा नहीं, हमने भी…………….

  4. pallavi says:

    सच ऐसे सुंदर प्राकृतिक नज़ारों को छोड़कर आने का मन नहीं करता। यूं भी अपने यहाँ ऐसे साफ सुथरे बीच कम ही है। आपका यह संस्मरण पढ़कर मुझे भी गोआ के सभी बीच की याद आ गयी। जानकारी पूर्ण सुंदर आलेख।

  5. सतीश सक्सेना says:

    जाने का दिल करता है , बधाई आपको !

  6. dnaswa says:

    आपने बहुत ही रोचक और सुन्दर पलों को समेत लिया है इस पोस्ट में … और साथ ही अंडमान जाने कि उत्सुकता बड़ा दी है …

  7. समु्द्र,.पहाड़ ,रमणीय वन और निश्चिंती – स्वर्ग की कल्पना आ जाती है मन में ऍ

  8. बैंकाक घूमने जा रहे एक मित्र को आज ही मैंने सलाह दी थी कि अंडमान जाना चाहिये।

    • AjitGupta says:

      संजय जी, बैंकाक भी हम पिछले साल गए थे। बैंकाक ग्‍लेमर के लिए जाना जाता है। लेकिन अण्‍डमान में केवल प्रकृति है। फिर अण्‍डमान सेलुलर जेल के कारण अपना ऐतिहासिक महत्‍व रखता है जबकि बैंकाक बुद्धिस्‍ट संस्‍कृति को समझने के लिए जाया जाता है।

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