अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

अमेरिका के बाजार : ग्राहक जाए बारबार

Written By: AjitGupta - Aug• 30•14

अमेरिका में शॉपिंग का अपना ही मजा है, आप 8 बाय 10 की दुकान से निकलकर सीधे ही आकाश के तारामण्‍डल में पहुँच जाते हैं। चारों तरफ एक से बढ़कर एक सुन्‍दर और अपरिचित सामान बिखरा पड़ा है। किसी काउण्‍टर पर वियतनामियों की भीड़ है तो कहीं चाइनीज है, कहीं यूरोपियन्‍स तो कहीं अमेरिकी और कहीं भारतीय। दुनिया में जितने भी प्रकार के लोग हैं उन सबके स्‍वाद, उन सबका पहनावा और उन सबकी आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए बड़े-बड़े मॉल हैं। बाजार से पहचान करने में समय लगता है, कौन सा सामान कहाँ मिलेगा, इसके लिए भारतीयों को परिश्रम करना पड़ता है। ऐसे ही किसी भी मॉल में घुसने से आपका मनोरथ सधता नहीं है। आप दुकान दर दुकान घूमते रहिए लेकिन जैसे ही सामान के आकर्षण से बंधकर आप उसके पास जाएंगे तब लगेगा कि यह हमारे काम का नहीं। या फिर उसका स्‍वाद ले लिया तब तो निश्चित ही समझ जाएंगे कि यह हमारे लिए नहीं बना है। इसलिए कुछ परिश्रम की आवश्‍यकता होती है और कुछ अनुभव की। पूरे शहर में बीच-बीच में गोलाकार बाजार मिलेंगे, जिसमें मॉल भी होंगे, रेस्‍ट्रा भी होंगे और अन्‍य दुकाने भी होंगी। बीच का सारा स्‍थान पार्किंग के लिए होगा। लेकिन भारत जैसा बापूबाजार नहीं होगा। जहाँ लाइन से छोटी-छोटी दुकाने हैं और बाहर पगडण्‍डी है। वहाँ सभी कुछ विशाल है। अधिकांश डाउन-टाउन में अर्थात शहर में भारत जैसे बाजार रहते हैं लेकिन उनकी दुकानें भी विशाल होती हैं और पूर्णतया वातानुकूलित। इन्‍हें यहाँ ऑपन मॉल कहते हैं। जितने भी डाउन-टाउन हैं, वे सभी खूबसूरत हैं।

इन मॉल्‍स में अधिकतर दुनियाभर की कम्‍पनियों के आउटलेट या शो-रूम होते हैं। आप सामान कहीं से भी खरीदिए, उसी कम्‍पनी की किसी भी दुकान पर आप उसे वापस या बदल कर सकते हैं। हैं ना मजेदार बात। भारत में जैसे ही बिल चुकाया माल आपका और दुकानदार पराया। लेकिन यहाँ व्‍यापार का तरीका एकदम अलग है, उपभोक्‍ता को जितनी सुविधा दे सको दो, उसी की खरीददारी पर बाजार चलता है। आप कहीं से भी कुछ भी खरीदिए, आपको पसन्‍द नहीं आया तो आप निश्चित अवधि में जो एक माह-तीन माह या छ माह भी हो सकती है, वापस कर सकते हैं, बिना पैसे कटे। अनेक बार तो लोग यूज करके भी वापस कर देते हैं, लेकिन उनके दिमाग पर सल भी नहीं पड़ता। हमारा मिक्‍सर टूट गया था, उसके स्‍थान पर दूसरा आने में तीन सप्‍ताह का समय था। अब इन तीन सप्‍ताह बिना मिक्‍सर के क्‍या किया जाए? दूसरा खरीद लिया और जब पहले वाला आया तो दूसरे को वापस कर दिया। बस उपभोक्‍ता खुश रहना चाहिए। कुछ लोग इस सुविधा का नाजायज फायदा भी उठाते हैं लेकिन ऐसा करने वाले कितने हैं? बाजार को इससे फर्क नहीं पड़ता। लेकिन ऐसी सुविधा देने से बिक्री बेहिसाब बढ़ जाती है।

मुझे पर्स खरीदना था, बेटे ने निश्‍चय कर रखा था कि इसी कम्‍पनी का माँ को पर्स दिलाना है। जब इतना मंहगा पर्स लेना हो तो पसन्‍द भी आना ही चाहिए नहीं तो कम्‍पनी के लेवल से तो काम नहीं चलने वाला है ना। ना-नुकर करके एक खरीद लिया, घर जाकर पुत्रवधु ने कहा कि जब मम्‍मी को पसन्‍द नहीं आ रहा था तो क्‍यों लिया? चलो दूसरा देखते हैं। लेकिन इसका क्‍या होगा? अरे इसकी आप चिन्‍ता ना करें। फिर बाजार के चक्‍कर और फिर नया पर्स। बच्‍चों ने कहा कि पहले वाला वापस हो जाएगा। हमने वहाँ जितनी भी शापिंग की, बस बेटे ने कहा कि जो भी आपको पसन्‍द आ रहा हो, वह उठा लीजिए। घर जाकर तय करेंगे कि क्‍या रखना है और क्‍या वापस करना है।

थोक में सामान लेने के लिए अपने यहाँ मण्‍डी या कटले में जाना होता है, लेकिन उसके लिए यहाँ कोस्‍टको है। कोस्‍को की सदस्‍यता लीजिए और विशाल मॉल में पहुंच जाइए। सभी कुछ थोक में मिल जाएगा। सब्‍जी से लेकर दवा और फर्नीचर तक। सबसे सस्‍ता वहीं मिलेगा। यहां भी वही रिर्टन पॉलिसी है। एक बार हम कोस्‍को से एक फल लेकर आए, दो-तीन दिन बाद समाचारों में था कि फला-फला बेच के इस फल में बीमारी के लक्षण पाए गए हैं तो आप उसे काम में ना लें और वापस करा लें। हमारे तो लगभग समाप्‍त ही हो गए थे लेकिन वे स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति इतने जागरूक हैं। ग्राहक को शिकायत का मौका वे नहीं देते। कभी नहीं कहते कि क्‍यों वापस कर रहे हैं, इसमें क्‍या खराबी है आदि आदि। बहुत ही विनम्रता के साथ सहज भाव से वापस ले लेते हैं जैसे आपकी ही दुकान हो। भारत में जब आप किसी भी दुकान पर प्रवेश करते हैं तब आपको कभी-कभी कुछ सिन्‍धी दुकानदार बातचीत की मुद्रा में मिलेंगे। वे संवाद स्‍थापित करने का प्रयास करते हैं लेकिन उनका संवाद अधिकतर आत्‍मीय नहीं होता है लेकिन वहाँ आप कहीं भी जाएं, वे आत्‍मीय संवाद स्‍थापित करते हैं। आपकी कोई भी जानकारी को पूर्णतया बताते हैं चाहे इसमें कितना भी समय क्‍यों ना लगे। वहाँ के नागरिक भी धैर्य के साथ अपनी बारी का इंतजार करते हैं।

अब आते हैं मंहगे और सस्‍ते पर। अमेरिका का बाजार एक तरफ हमारे लिए बहुत मंहगा है तो दूसरी तरफ उनके लिए बहुत सस्‍ता। वहाँ गए भारतीयों का प्रारम्भिक वेतन लगभग 5000 डॉलर है और मध्‍यम श्रेणी के व्‍यक्ति का 10 से 15 हजार डॉलर। जब आप किसी भी इण्डियन स्‍टोर पर रसोई का सामान खरीदने जाएंगे तब अमूमन बिल 100 से 200 डॉलर का आता है। जिसमें आपके एक सप्‍ताह का सामान -दूध, दही, सब्‍जी, फल, आटा आदि सभी कुंछ होते हैं। इसलिए जब बिल उन्‍हें देना है तो मंहगा नहीं है लेकिन यदि बिल भारतीय रूपये वाले को देना है तो फिर मंहगा है। किसी भी रेस्‍ट्रा में खाना खाने जाइए, अमूमन 20 डॉलर प्रति व्‍यक्ति का बिल आता है। कई ऐसे ठिकाने भी हैं जहाँ 2 डॉलर में परांठा मिल जाता है तो काम 5 से 10 डॉलर में ही चल जाता है। एक अच्‍छी शर्ट 20 से 40 डॉलर के बीच मिल जाती है। इसलिए मंहगा कुछ नहीं है बस आपकी मुद्रा का कसूर है। यही रूपया यदि 30 पर आ जाए तो आप क्‍या कहेंगे?

अमेरिका में गैंहू से एलर्जी का प्रतिशत बहुत अधिक है और उसके अन्‍दर पाये जाने वाले ग्‍लूटन को वे मोटापे का भी कारण मानते हैं इसलिए वहाँ ग्‍लूटन फ्री सामान आसानी से मिल जाता है। पूरी दुकाने ग्‍लूटन फ्री सामान की हैं, रेस्‍ट्रा भी हैं। वहाँ भी ऑरगेनिक सामान के प्रति जागरूकता बढ़ रही है इसलिए ऑरगेनिक खाद्य पदार्थ भी आसानी से मिल जाते हैं बस वे मंहगे हैं। अमूमन उनकी कीमत भी दो से चार गुना तक मंहगी है। लेकिन यदि लिखा है ऑरगेनिक तो फिर विश्‍वसनीय ही है।

भोजन में वहाँ सलाद का भरपूर प्रयोग होता है। सलाद के लिए विभिन्‍न प्रकार के पालक एवं अन्‍य पत्तियां मिलती हैं। रेस्‍ट्रा में भी सलाद का आर्डर करने पर आपकी पसन्‍द का सलाद मिल जाता है। सलाद में जहाँ भारत में नीम्‍बू और नमक ही प्रमुखता से डाला जाता है वहाँ इसके लिए विभिन्‍न प्रकार की ड्रेसिंग होती है, जिसमें मुख्‍य रूप से जैतून का तैल और विनेगर होता है। कई रेस्‍ट्रा तो सलाद के लिए ही जाने जाते हैं। एक बार हम एक रेस्‍ट्रा में गए, हम 15-20 लोग थे। छोटी सी पार्टी थी, सोचा एक प्‍लेट सलाद भी मंगवा लेते हैं। अब वहाँ बताना पड़ता है कि क्‍या डालना है और क्‍या नहीं। क्‍योंकि वहाँ सलाद में भी मांसाहार का प्रयोग बहुतायत में होता है। बेटे ने उसे निर्देशित कर दिया कि नो नोनवेज और नो एग। अब यह नहीं बताया कि इसके स्‍थान पर और क्‍या डाल दे। अब जो प्‍लेट हमारे सामने थी वह कुछ पालक की पत्तियां और उसपर चार संतरे की फांके। हम देख रहे थे और बस हँस रहे थे। पालक और अन्‍य सलाद की पत्तियों का वहाँ इतना प्रयोग होता है कि आप कल्‍पना नहीं कर सकते। हमने पिजा मंगाया, उसमें प्रमुख रूप से पालक था, बर्गर में पालक था। हम तो दाल-पालक बना लेते हैं और हम भी पालक खाते हैं, बड़ी शान से कह देते हैं।

अन्‍त में एक बात और आवश्‍यक बात। भारतीय जीवन पद्धति के रूप में हमारे यहाँ आयुर्वेद और प्राकृतिक कई प्रकार की जीवन पद्धति है। लेकिन हमने उसे बिसरा दिया है। अमेरिका में पग-पग पर भारतीय जीवन पद्धति को अपनाते, उसकी चर्चा करते लोग मिल जाएंगे। आयुर्वेद वहाँ पर सम्‍मान की बात है, पंचकर्म करवाना सबसे मंहगा कार्य है, जो यहाँ मुफ्‍त में भी कोई नहीं कराता। आयुर्वेद से बनी औषधियां और कास्‍मेटिक्‍स की बड़ी-बड़ी कम्‍पनियां हैं जो मंहगे दामों पर इनकी बिक्री करती है, अवेदा ( Aveda ) उनमें से एक है। सेनोजे के पास ही एक पहाड़ी पर एक छोटा सा हनुमान मंन्दिर है, हम वहाँ दर्शन करने चले गए। वहाँ अमेरिकी नागरिकों की बहुत चहल-पहल थी। हम भी घूमते हुए पूरे परिसर को देखने निकल गए। रेस्‍ट्रा की तलाश भी थी। एक हॉल के पास गए तो वहाँ एक बोर्ड लगा था – आयुर्वेद कॉलेज का। हम आश्‍चर्यचकित थे, फिर देखा कि सारा ही माहौल भारतीय था, पेन्टिंग भी भारतीय मीरां, कृष्‍ण आदि की लगी थीं। वहाँ काफी अमेरिकी खाना खा रहे थे। हमने मालूम किया तो बोले कि भोजन के लिए 24 घण्‍टे पहले बुकिंग करानी होती है। ये सारे एक केम्‍प में आए हैं, इसलिए इनके लिए ही भोजन है। आप केन्‍टीन में जाकर कुछ ले सकते हैं। हम केन्‍टीन गए, वहाँ एक महिला मिल गयी। केन्‍टीन में आइसक्रीम के अतिरिक्‍त कुछ नहीं था लेकिन उस महिला से जो जानकारी प्राप्‍त हुई वह आश्‍चर्यचकित करने वाली थी। बस हम उसका नाम पूछना भूल गए। उसने बताया कि भारत से बाबा हरि दास सन् 1971 में यहाँ आए थे और वे 1952 से ही मौन व्रत में थे। उन्‍होंने आकर इस पहाड़ी को (mount madona ) जो 355 एकड़ में फैली है, को खरीदा और हम सबने मिलकर इसे बनाया। वह महिला बता रही थी कि हम उस समय बच्‍चे थे लेकिन हम प्रारम्‍भ से ही बाबाजी के साथ लग गए थे और अपने हाथों से ही हमने सड़क आदि सभी कुछ बनाया। अब बाबा 90 वर्ष से भी अधिक के हो गए हैं इस कारण विगत कुछ महिनों से ही यहाँ नहीं आ पा रहे हैं। वे आयुर्वेद कॉलेज का संचालन करते हैं जिसमें जीवन पद्धति पढ़ायी जाती है। एक फार्मेसी भी है जिसकी औषाधियां सभी जगह मिलती हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि उनके सारे ही फोलोवर अमेरिकी हैं, भारतीय नहीं हैं। लेकिन हमें इक्‍का दुक्‍का भारतीय छात्र दिखायी दिए जो शायद अपनी रिसर्च के सिलसिले से आए थे। वह बता रही थी कि हमें इस बात का डर लगा रहता है कि बाबाजी जैसी निष्‍काम सेवा यहाँ कोई नहीं दे सकता क्‍योंकि यहाँ तो सभी की सोच व्‍यवसायिक है। उसने दुख के साथ कहा कि अब आप लोग यहाँ आए हैं, आपको बिना भोजन के ही यहाँ से जाना पड़ रहा है, यदि बाबाजी यहाँ होते तो ऐसा कभी नहीं होता। हमारी केन्‍टीन में भी केवल शनिवार और रविवार को ही समोसा आदि मिलता है क्‍योंकि उसी दिन काफी भीड़ रहती है। इसलिए मैं भी आपको कुछ नहीं दे पा रही हूँ। लेकिन अमेरिकी खुश हैं कि वे भारतीय जीवन पद्धति का लाभ ले रहे हैं। जब उसे मालूम पड़ा कि हम उदयपुर से हैं तो बहुत खुश हुई। कहा कि उदयपुर बहुत सुन्‍दर शहर है और मैं वहाँ जाकर आयी हूँ।

इस कथा का अन्‍त हो ही नहीं सकता। एक महामॉल और याद आ गयी। बेटे को अपने बगीचे के लिए तराशे हुए पत्‍थर खरीदने थे। हमें भी साथ ले गया। हमने भी अपना मकान बनवाया है, एक-एक चीज को बाजार जाकर खरीदा है। हमें पता है कि कितनी दुकानों के चक्‍कर हमने लगाए हैं। नींव के पत्‍थर, ईंट, सीमेन्‍ट, चूना, बजरी, कंक्रीट आदि सभी के लिए आपको अलग अलग ठिकानों के चक्‍कर काटने पड़ते हैं। जब मकान की दीवारे उठ जाती हैं तो लोहा, लकड़ी, नल और बिजली की फिटिंग के लिए बाजार नापने की प्रक्रिया जारी रहती है। सेनेट्री का सामान, बिजली के बल्‍ब, लेम्‍प और भी न जाने क्‍या-क्‍या। घर बनकर तैयार है तो फर्नीचर, पर्दे, बर्तन, फ्रिज, एसी आदि तमाम तामझाम। समझ आ रहा है ना कि कितनी दुकानों के चक्‍कर काटने पर घर तैयार होता है। बगीचा तैयार करना हो तो फिर गमले और पौधे से लेकर खाद तक के लिए भागमभाग। पचासों दुकानों का चक्‍कर अमेरिका ने एक ही मॉल में समा दिया है। सुई से लेकर हथौड़ा तक एक ही छत के नीचे। घर बनाने का ही सामान उपलब्‍ध नहीं है, बनाने की मशीने भी वहाँ हैं। इतने होने पर भी यदि कोई सामान उपलब्‍ध नहीं है तो वेबसाइट पर जाइए और पसन्‍द कीजिए। बस एकाध दिन में आपका सामान हाजिर है।

ऑनलाइन शापिंग भी अमेरिका की खासियत है। अमेजन, ईबे आदि कई कम्‍पनियां हैं जो ऑनलाइन आपको सबकुछ उपलब्‍ध कराती हैं। आप साइट पर जाकर सामान पसन्‍द कीजिए और बाजार दरों से सस्‍ती कीमत पर आपके घर पर सामान उपस्थित। टूट-फूट की चिन्‍ता मत कीजिए, एक तो उनकी पेकिंग इतनी सुदृढ़ होती है कि टूटने की सम्‍भावना ही नहीं और यदि कभी एकाध कण झर भी गया तो वापसी की गारण्‍टी। रिर्टन पॉलिसी तो है ही। वे ग्राहक पर पूर्ण विश्‍वास करते हैं। वे नहीं कहते कि यह आपने कर दिया होगा। और भी न जाने कितनी खासियतों से भरा है अमेरिका का बाजार। बस आप घूमते जाइए और आनन्‍द लेते जाइए। रेस्‍ट्रा के तो अपने ही खटके हैं लेकिन यह विषय इतना चटपटा है कि अभी शेष बाजार में डालना ठीक नहीं। फिर कभी इस बारे में। अभी यहीं तक।

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7 Comments

  1. अमरीकी बाजार के बारे में जानना अच्छा लगा। यहाँ तो स्मार्ट फोन एक महीने में खराब हो गया और दो महीने से चक्कर काटने पड़ रहे हैं !
    अमेरिका पर हाय तौबा खूब होती है , इन सकारात्मक और अनुकरणीय कार्यों /सुविधाओं को भी बताना चाहिए !

  2. आलेख पढ़कर अच्छा लगा। स्वदेशी व्यवसाय के पैरोकारों को वाकई ग्राहक सेवा, कर-भुगतान, गुणवत्ता आदि के मामलों में इन विश्वस्तरीय शृंखलाओं से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है।

  3. कनाडा में रहकर देखा है ….आपका अवलोकन एकदम सटीक है

  4. shikha varshney says:

    मैंने कई देश देखे हैं पर सबसे अच्छी कस्टमर सर्विस अमरीका में ही है. इसीलिए वहाँ बाजार भी बड़ा है और ग्राहक भी अधिक हैं.

  5. Dr.Kiran mala jain says:

    इतने व्यापारी ,राजनेता ,मीडिया व विविध प्रकार के लोग अमेरिका जाते है पर वहाँ की अच्छी बातें ना तो सीखते है ना ही उनको भारत में शुरू करने की पहल करते है ,वहाँ की सफ़ाई ,अनुशासन ,क़ानून से चलना ऐसी बहुत सी आम ज़िंदगी की बातें है जिन पर चलने से देश की तस्वीर ही बदल सकती है ,पर यहाँ तो रात दिन टी वीं पर राजनीति का पोस्ट मार्टम होता रहता है । हर बंदा दूसरे को बेवक़ूफ़ बनाकर अपना उल्लू सीधा करने में लगा रहता है ।अमेरिका की ऐसी व्यवस्थित ज़िन्दगी देखने के कारण ही तो जो बच्चे हायर एजुकेशन के लिये अमेरिका जाते है वही बस जाते है वापिस आने का नाम ही नहीं लेते ।

  6. rohit says:

    चलो अच्छा है…यहां अमेरिकी कंपनियों के आउटलेट पर जाएंगे तो देर पर उनको ताना देने का मौका तो मिलेगा….

  7. AjitGupta says:

    इस पोस्‍ट को पढ़ने के लिए आप सभी का आभार। अब अमेरिका के रेस्‍ट्रा का जायजा लीजिए – अगली पोस्‍ट में।

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