अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

अमेरिका में भारतीयों का खानपान

Written By: AjitGupta - Sep• 11•14

भारत के प्रत्‍येक शहर में एक ऐसा चौक या गली जरूर होगी जहाँ चाट खाते हुए लोग मिल जाएंगे। अभी तो प्‍लेटों का जमाना आ गया है लेकिन अभी कुछ दिन पूर्व तक पत्ते पर चटपटी चाट खाने का आनन्‍द ही कुछ और था, उस पर लगी चटनी को अंगुलियों से चाटने का या फिर पत्ते को जीभ से चाटने का स्‍वर्गीय आनन्‍द ही कुछ और रहा है। चाट में खट्टा-मीठा-तीखा सारे ही स्‍वाद हैं। भारत में किसी ने गोपगप्‍पे नहीं खाये तो फिर क्‍या खाया? पहले तीखे और खट्टे पानी के साथ पानी-पूरी फिर दही और मीठी चटनी के साथ। जो खुशी और तृप्ति लोगों के चेहरे पर दिखायी देती है ऐसी तृप्ति दुनिया के किसी कोने में आपको दिखायी नहीं देगी। भारत के भोजन में षडरस होते हैं, मधुर, अम्‍ल, लवण, कटु, तिक्‍त और कषाय। हमारी जीभ इन छओं रसों की आदि है। उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम सभी जगह के खाने में छ रस जरूर होंगे। अब देखिए अपना साधारण सा भोजन – दाल, चावल, सब्‍जी, रोटी, चटनी, पापड़, अचार और मिष्‍ठान्‍न। इस भोजन में सभी कुछ है। हमारी मसालदानी में भी नमक, मिर्च, धनिया, हल्‍दी आदि अलग स्‍वाद के मसाले रहते हैं। बिना चटपटा खाए हमारा पेट नहीं भरता। इसलिए भोजन में कुछ चटपटा नहीं हुआ तो अन्‍त में चूरण-चटनी ही खा लेंगे लेकिन खाएंगे जरूर। लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं है। वहाँ सम्‍पूर्ण विश्‍व के देशों के नागरिक रहते हैं लेकिन फिर भी अमेरिका के स्‍वाद की प्रमुखता तो रहेगी ही। यहाँ प्रत्‍येक देश का नागरिक सारे ही स्‍वाद चखना भी चाहता है। इसलिए वह प्रतिदिन नये प्रयोग करता है। अमेरिका में अच्‍छी बात यह भी है कि यहाँ सारे ही देशों के रेस्‍ट्रा हैं, आपको उन देशों के स्‍वाद के लिए भटकना नहीं पड़ता है। भारत और अन्‍य देशों के खाने में जो मूल अन्‍तर है वह षडरस के अतिरिक्‍त एक और है – हमारे यहाँ थाली-कटोरी में भोजन परोसा जाता है। कटोरियों में सूखी सब्‍जी और झोल की सब्‍जी का भेद रहता है। रोटी रहती है या चावल रहता है। चावल खाने वाले लोग भी कटोरियों में अलग-अलग सब्जियां रखते हैं। लेकिन विश्‍व के शेष देशों में थाली के स्‍थान पर प्‍लेट होती है और कटोरी के स्‍थान पर कटोरे होते हैं, जो सूप आदि पीने के काम आते हैं। रोटी बहुत सारे देशों में खायी जाती है लेकिन भारत की तरह नहीं। अधिकतर देशों की रोटी मेदा की होती है और वह काफी बड़ी होती है। इसी रोटी के अन्‍दर सब्‍जी और चावल को लपेट दिया जाता है। चूंकि वहाँ झोल की सब्‍जी नहीं होती इसलिए साथ में पेय पदार्थ का चलन है। इसी कारण हमारी नौजवान पीढ़ी सोफ्‍ट ड्रीक्‍ंस को अपने भोजन में स्‍थान देने लगी है।

हमारा पोता एक दिन बोला कि मुझे कसेडिया खाना है, यह क्‍या होता है, हमारा प्रश्‍न था। जब रेस्‍ट्रा में गए और जो सामने था वह था – मेदा की रोटी, उसमें राजमा और चावल। सभी कुछ लपेटा हुआ। ऐसे ही एक टोटिया होता है, जो मेक्सिकन रोटी है। उसमें भी रोटी के अन्‍दर सब्जियों लपेटी हुई है। ऐसे ही रेप है, जो हमारे यहाँ भी प्रचलित हो गया है। पिजा क्‍या है? एक रोटी है जिसमें सब्‍जी ऊपर डाली गयी है। बर्गर और सेण्‍डविच में सब्‍जी अन्‍दर भरी है। लेकिन कहीं भी कटोरी में सब्‍जी नहीं है और साथ में गर्मागर्म फुल्‍के। हमारे यहाँ रोटी भी कितने किस्‍म की होती है? गैंहूं, बाजरा, ज्‍वार, जौ-चना और भी स्‍थानीय धान। लेकिन वहाँ अधिकांशतया: मैदा की ही रोटी होती है।

पापड़ और चिप्‍स का चलन वहाँ भी है लेकिन बिल्‍कुल अलग हटके। अधिकतर चाइनीज और वियतनामी लोग बड़े-बड़े पेकेट में पापड़ जैसे टुकड़े खरीदते हैं जिसमें मसाला लगा होता है। लेकिन उनका स्‍वाद इतना अलग होता है कि वह हमारे जीभ को पसन्‍द नहीं आता। क्‍योंकि पापड़ या चिप्‍स में मसाले का अर्थ हमारे यहाँ नमक मिर्च और खटाई से ही रहता है। अचार क्‍या होता है शायद भारत के अतिरिक्‍त अन्‍य देश जानते नहीं है, लेकिन यहाँ चटनियां बहुत स्‍वाद की होती हैं। एक दिन एक किसान-बाजार ( farmers market ) में एक काउण्‍टर तो चटनियों का ही था। वह वही पापड़ जैसा खाद्य पदार्थ के साथ हमें चखा रहा था, बड़े ही प्रेम से डिब्‍बे खोलता और हमें चखाता। हमने भी एकाध ले ही लिया लेकिन जितने शौक से अपनी चटनी खायी जाती है, उतनी नहीं खायी गयी। हमारे यहाँ चटनी का मतलब होता है जिसे चाट-चाटकर खाया जाये। चाट भी वही होती है जिसे पत्ते पर लेकर और चाटकर खाया जाए। लेकिन यहाँ अंगुली से कोई नहीं चाटता इन चटनियों को। ना ही कोई चटखारा लगाता है। यहाँ भी मसाले बहुत प्रकार के हैं लेकिन उनके स्‍वाद से भारतीय अधिकतर परिचित नहीं होते हैं। ये सारे ही मसाले बहुत ही हल्‍की खुशबू और स्‍वाद वाले होते हैं। हमारे यहाँ जितने सुगंधदार और तीखे नहीं होते हैं। हींग का छौंक तो शायद ही कोई लगाता हो।

किसी अमेरिकन रेस्‍ट्रा में जब आप जाएंगे तो वहाँ प्रत्‍येक टेबल पर एक बड़ा सा जग होगा या बड़े-बड़े गिलास होंगे जिनमें बीयर या वाइन होगी। कई जगह तो गिलास की जगह बरनियों ने ले ली है। बड़ी सी बरनी में पानी भी और पेय पदार्थ भी। साथ में मूंगफली होंगी। वे धीरे-धीरे बात करेंगे और बीयर या वाइन का सिप लेते रहेंगे। साथ में मूंगफली चलती रहेगी। हम एक रेस्‍ट्रा में गए, उसमें दो हॉल थे, जो अन्‍दर का हॉल था हम उसमें बैठे। हमें बीयर आदि कुछ लेना नहीं था तो सीधे ही पिजा मंगाया और पेय पदार्थ में लेमिनेट और कोक मंगा लिया। वहाँ आप कोई भी पेय पदार्थ लो, एक बड़ा सा गिलास आएगा। आपको लगेगा कि आप पंजाब में आ गए हैं। और फिर उस गिलास को कितनी ही बार आप भरवा सकते हैं या स्‍वयं जाकर भर सकते हैं। लेकिन वह एक ही इतना बड़ा होता है कि दोबारा तो लेने की हिम्‍मत ही नहीं रहती। उस रेस्‍ट्रा में सभी कुछ वीगन था, अर्थात मिल्‍क प्राडक्‍ट से रहित। पिजा भी अलग प्रकार की थी, उसके अन्‍दर भरपूर पालक था और काफी स्‍वादिष्‍ट भी था। जब हम खाना खाकर बाहर आए तब हमारी नजर एक बड़े से लकड़ी के ड्रम पर पड़ी। उसमें मूंगफली भरी थी। तब देखा कि प्रत्‍येक अमेरिकी अपनी टेबल पर बीयर का बड़ा सा जग लेकर और साथ में मूंगफली का कटोरा लेकर बैठा है। उसकी टेबल पर मूंगफली के छिलकों का ढेर है। हमने तो लिहाज में एक दो मूंगफली उठा ली, जैसे कभी हवाईजहाज में टॉफियां लेते थे। जब उन मूंगफलियों को चखा तो पता लगा कि बड़ी स्‍वादिष्‍ट हैं। लेकिन वापस जाकर मुठ्ठी भरने का मन नहीं माना। लेकिन उसके बाद हमने जहाँ भी मूंगफली खायी, सभी जगह बहुत बड़े आकार की और बहुत ही स्‍वादिष्‍ट मूंगफली मिली।

इसके विपरीत आप भारतीय रेस्‍ट्रा में चले जाइए। अहा क्‍या नजारा रहता है! शुक्रवार और शनिवार को तो पैर रखने की जगह नहीं और शेष दिन भी कुछ कम नहीं। लोग बाहर तक लाईन लगाकर खड़े रहते हैं। भीड़ तो सारे ही रेस्‍ट्रा में रहती है लेकिन भारतीयों की बात ही कुछ अलग है। अन्‍य प्राणी चुपचाप या धीरे-धीरे बोलकर अपना मन बहलाते हैं लेकिन भारत के शोर से कान को पकाकर गए लोग वहाँ भी और बहरा होने की प्रेक्टिस करते हैं। रेस्‍ट्रा के अन्‍दर और बाहर इतना शोर होता है कि आप ढंग से बात नहीं कर सकते। दक्षिण भारतीय रेस्‍ट्रा में तो हद ही है। यदि पूरे रेस्‍ट्रा में दो बच्‍चे भी हैं तो समझ लीजिए आज कोहराम पूरा है। जब तक भोजन नहीं आता तब तक बच्‍चे वैसे धूम-धड़ाका करते हैं और भोजन आने के बाद उनकी माँ और उनमें खाने के लिए नूराकुश्‍ती होती है। कैसे भी बच्‍चा खाना खा ले बस इसी का प्रयास रहता है, फिर चाहे वह मोबाइल से खेलते हुए खाना खाए या टेबलेट को लेकर टेबल पर नाचे। आप सकून से बैठकर बात नहीं कर सकते, बस ऐसा लगता है कि भारतीय जीमण में आए हैं जहाँ हजारों लोग प्‍लेट पकडकर धक्‍का-मुक्‍की करके खाना खा रहे हों। जैसे-तैसे करके आपको पेट भरकर बाहर निकलना होता है क्‍योंकि जब आप उठेंगे तब ही तो दूसरे का सीट मिलेगी। रेस्‍ट्रा में जाते ही आप सीधे ही किसी भी टेबल पर नहीं बैठ सकते। पहले काउण्‍टर पर बताना होगा कि आप कितने लोग हैं, फिर वह आपको आपके नम्‍बर के हिसाब से सीट देगा, तब तक आप बाहर लगे सोफे पर या कुर्सियों पर बैठकर इंतजार करें। खाली रेस्‍ट्रा में भी आपको पूछना तो अनिवार्य है ही।

भारत में आप जब किसी रेस्‍ट्रा में खाना खाने जाते हैं तो हम खासतौर पर बच्‍चों को तहजीब सिखाते हैं कि देखो होटल चल रहे हैं, अनावश्‍यक कूदना-फांदना नहीं। तमीज से बैठना और शोर मत करना। लेकिन अमेरिका में आकर उल्‍टा लगा, यहाँ रेस्‍ट्रा के अलावा सभी जगहों पर इतना अनुशासन और शान्ति है कि लोग जैसे ही रेस्‍ट्रा परिसर में कदम रखते हैं लगता है वे मुक्‍त हो गए हों। यदि किसी ऑफिस के 8-10 लड़के पार्टी कर रहे हैं तो समझ लीजिए कि आप वहाँ आसानी और चैन से नहीं बैठ सकते। आपको बारबार रूई की याद सताती रहेगी कि काश वह जेब में होती तो कान को थोड़ा राहत देती। एक बात जो हमारे देश से बहुत अलग है – भारत में अभी भी यह माना जाता है कि शराब, सिगरेट आदि दुर्व्‍यसन हैं और इन्‍हें बड़ों के समक्ष लेना अपराध समान है। इसलिए कोई भी पुत्र अपने माता-पिता के सामने शराब पीने की हिम्‍मत नहीं करता। लेकिन यहाँ शराब इतनी प्रचलित है कि भारतीय युवा भी इससे अछूते नहीं रह पाते। वे भी रिलेक्‍स होने का अर्थ वाइन या बीयर पीना ही समझते हैं। इसलिए जब कोई मिलीजुली पार्टी होती है तब वहाँ शराब सर्वमान्‍य होती है। जिनके माता-पिता वहाँ है, ऐसे पुत्र इधर-उधर होते रहते हैं, कभी माता-पिता की टेबल पर और कभी दोस्‍तों की टेबल पर। पुत्रवधुओं का ही यही हाल होता है कि मौका लगे तो एकाध घूंट तो गले के नीचे उतार ही लें। वैसे वातावरण तो ऐसा बनाया जाता है कि जो नहीं पीता है वह पुरातनपंथी है। इसीप्रकार नोनवेज का हाल है, टेबल पर बैठते ही प्रश्‍न आता है कि आप चिकन लेंगे? भारत में अक्‍सर ऐसा नहीं होता है, लेकिन यहाँ अपने परिवार के बच्‍चे भी इस प्रश्‍न को पूछ ही लेते हैं। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वहाँ सभी मांसाहारी हैं, बहुत बड़ा तबका शाकाहारी है। कहीं भी चले जाइए कुछ न कुछ शाकाहारी खाना मिल ही जाएगा। हाँ उसके लिए कुछ प्रयास करना पड़ेगा।

अब आते हैं चीजों के स्‍वाद पर। जो सबसे लाजवाब हैं वे हैं फल। मैं तीन बार अमेरिका जाकर आयी हूँ लेकिन कभी भी पाइन एपल खाने का अवसर नहीं मिला। हमेशा ही लगा कि कौन खरीदकर लाए और फिर काटे और खाये। अपने यहाँ मुम्‍बई वगैरह में तो कटे हुए पाइनएपल मिल जाते हैं। लेकिन इस बार वह भी वापस आने के दिनों में पाइनएपल खरीदकर ले जाए। मुझे लग रहा था कि इसे यहाँ कैसे खाएंगे, देश में तो शक्‍कर मिलाते हैं या जब पका हुआ होता है तो नमक आदि मसाले से खाते हैं। लेकिन मेरी सारी ही आशंकाए धरी रह गयी जब उसका एक टुकड़ा मुँह में डाला। अरे यह पाइनएपल है या गुलाबजामुन! इतना मीठा और इतना रसीला। तब लगा कि पहले इसे क्‍यों नहीं लाए। दूसरे फल भी चाहे वे तरबूज हो या फिर खरबूजा, सेव हो या आडू, सारे ही एक से बढ़कर एक। स्‍ट्राबेरी तो हमेशा ही राज करती है और चेरीज का अपना ही स्‍वाद है। बस सारा दिन फल खाते रहिए, मन नहीं भरेगा। लेकिन इसके विपरीत सब्जियां हैं, तुरई लेने जाइए तो इतनी बड़ी और इतनी मोटी होगी कि उसे छीलना जद्दोजेहद से कम नहीं। लौकी का छिलका भी बहुत कड़ा। फलियां भी बड़ी-बड़ी। प्‍याज भी एकदम बड़ा और लहसुन भी बड़ा। भारतीय स्‍वाद से उन्‍नीस ही पड़ते हैं सब। गैहूं का आटा तो आप कैसा भी ले आइए, यहाँ वाली बात ही नहीं है। लेकिन यदि आप आरगेनिक फूल खरीद रहे हैं तो फिर स्‍वाद बेहतर होता जाएगा। दूध और दही भी डिब्‍बा बन्‍द है तो आपको पसन्‍द मुश्किल से ही आता है। पीने का पानी सभी जगह स्‍वच्‍छ है, आपको ना आरओ की आवश्‍यकता है और ना ही किसी एक्‍वागार्ड की। कहीं घूमने जा रहे हैं तो साथ में बोतल बन्‍द पानी का चलन है लेकिन सभी जगह पीने के नल लगे हैं, वे सभी स्‍वच्‍छ पानी मुहैय्या कराते हैं।

अमेरिका सूखे मेवे का भण्‍डार है। वहाँ बादाम, अखरोट, काजू आदि इतनी मात्रा में उत्‍पन्‍न होता है कि वह दुनिया को आपूर्ति कर सकता है लेकिन जो सूखे मेवे को स्‍वाद भारत का है या अरब देशों से आए हुओं का है वह स्‍वाद वहाँ पासंग भी नहीं है। किशमिश तो ऐसी है कि खाने का मन ही ना करे। हो सकता है किसी मेवे का स्‍वाद बेहतर हो, इस बात की पड़ताल तो बरसों से रह रहे भारतीय ही बता सकते हैं।

लेकिन इतना तो संतोष है कि अमेरिका में सारे ही भारतीय स्‍वाद मिल जाते हैं। इण्डियन स्‍टोर के बाहर पानीपूरी पिलाती स्‍टाल भी मिल जाएगी तो गन्‍ने का ताजा रस निकलता हुआ भी उपलब्‍ध हो जाएगा। समोसा तो खैर बहुत प्रचलित है वहाँ और इसे सारे ही देशों के लोग बड़े चाव से खाते हैं। दक्षिण भारतीय भोजन तो सभी जगह मिल जाएगा और वह भी बहुत ही स्‍वादिष्‍ट। पंजाबी ढाबों में तरह-तरह के परांठे मिल जाएंगे। वहाँ अक्‍सर रेस्‍ट्राज में एक करी के साथ एक रोटी मिलती है, रोटी मतलब तंदूरी नॉन। यह नॉन साइज में काफी बड़ी होती है और इसे पूरा खाना ही पर्याप्‍त होता है। आप करी या सब्‍जी मंगाएंगे तो एक नॉन साथ में आएगी। थाली सिस्‍टम भी है और बुफे भी, अनलिमिटेड और मनचाहा।

भारत में अक्‍सर दो प्रकार के रेस्‍ट्रा होते हैं, एक बड़े होटलों में और दूसरे केवल रेस्‍ट्रा। वहाँ भी ऐसा है लेकिन बड़े होटलों में वहाँ रेस्‍ट्रा भारतीय व्‍यंजन वाले नहीं होते हैं इसलिए भारतीयों को भारतीय रेस्‍ट़ा से ही संतोष करना पड़ता है। इनकी बनावट अक्‍सर अपने यहाँ के पर्यटकीय क्षेत्रों के भोजनालयों जैसी होती है। इसलिए कभी भव्‍यता देखने का अवसर नहीं मिलता। एकाध बार भारत में ऐसा हुआ कि विदेश से आए हमारे भारतीय मेहमान ही होटल देखकर हतप्रभ होते रहे तब हमें समझ नहीं आ रहा था कि विदेश में तो इतने भव्‍य होटल होते होंगे तो ये हमारे होटलों को इतने प्रभावित होकर क्‍यों देख रहे हैं। लेकिन अमेरिका जाकर बात समझ आती है। होटलों और रेस्‍ट्राज की भव्‍यता भारत जैसी वहाँ नहीं है। सेनफ्रांसिस्‍को और न्‍यूयार्क शहरों में शायद भव्‍यता होगी क्‍योंकि वहाँ की बसावट पुरानी और भव्‍य है। हमारा आग्रह हमेशा यही रहता था कि किसी भव्‍य होटल या रेस्‍ट्रा में खाना खाएं लेकिन भारत जैसी बात कहीं नहीं थी। एक तो वहाँ भारतीय रेस्‍ट्रा में भीड़ इतनी होती थी कि भव्‍यता के लिए जगह ही नहीं बचती थी जबकि अपने यहाँ भीड़ केवल ढाबों पर ही होती है।

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3 Comments

  1. t sdaral says:

    देसी व्यंजन यदि विदेशी रेस्ट्रां मे मिल जायें तो सोने पे सुहागा ही होगा ! हमारा स्वाद और वहां की हाइजीन , दोनों मिलकर तो कहर ढा सकते हैं !
    बेशक रेस्ट्रां मे शोर शराबा बहुत खलता है !

  2. अमरीका के खान पान और उसके ढंग की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। पढ़ने में भी स्वाद आया। हमारे भारतीय खानों का तीखा चटपटा स्वाद शायद कहीं न होगा यहाँ के सिवा !
    रोचक जानकारीपूर्ण आलेख !

  3. आप जो काम लिखते हैं उसमें आप निश्चित रूप से अपनी विशेषज्ञता देख सकते हैं। इस क्षेत्र में आपके जैसे और अधिक भावुक लेखकों की उम्मीद है जो इस बात का डर नहीं करते कि वे कैसे विश्वास करते हैं। हमेशा अपने दिल की सुनो।

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