अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह

Written By: AjitGupta - Jun• 27•19

आपको चेहरे पर यह मायूसी! आपका चेहरा गमगीन! आपका चेहरा मुरझाया हुआ! आप तो मक्कारी के लिये जाने जाते हैं, आप तो आँख मारने के लिये पहचाने जाते हैं, आप तो नुक्कड़ के लौण्ड़ों-लपाड़ों जैसी हरकत के लिये जाने जाते हैं! फिर भला यह मक्कारी कहाँ गायब है? आपके चारों तरफ जो घेरा था, वह भी तो नदारद है! भला आप करें भी तो क्या करें! आपने एक नवीन गालीबाज को अखाड़े का उस्ताद बनाकर उतारा, लेकिन उसने तो आपके चेहरे से मक्कारी का नूर ही छीन लिया! पहले तो आप खुश हुए कि चेले ने शुरूआत गाली देकर ही की है, मणि, दिग्गी जैसे शातिर पास नहीं हैं तो क्या? नए उदय हो रहे हैं! भला भारत में विषधरों की कहाँ कमी हैं! लेकिन अभी आपको खुश होने को दो पल भी नहीं मिले थे कि इस नये दंगलबाज ने तो आपकी ही खटिया खड़ी कर दी। सीधे ही मी-लार्ड को चैलेंज कर दिया! हिम्मत हो तो हाथ लगाओ मेरे आकाओं पर? अरे बाबू मोशाय, सिपाही को ही उकसा रहा है कि चोर को पकड़कर दिखा! जैसे-तैसे करके जमानत पर छूटा हूँ और यह नासमझ चैलेन्ज दे रहा है! 
पूरे चुनाव में मैंने विकास की कोई बात नहीं की, बस गाली देकर ही काम चलाया, चोर-चोर कहकर ही जनता का ध्यान बंटाया लेकिन यह मूर्खाधिराज काम गिनाने बैठ गया, कि हमने यह किया, हमने वो किया! यदि हमने किया होता तो ये आते क्या! यह मोदी तो चाहता ही यह है कि हम सीधे काम की बात पर आ जाएं और फिर आंकड़ों का खेल शुरू हो जाए! मुझे तो याद भी नहीं कि मैंने कौन सी डिग्री ली थी! क्योंकि मेरे मुँह से तो गाली के अतिरिक्त कुछ निकलता ही नहीं! गणित तो मेरे सपने में भी नहीं आती। लोग कहते रहे कि मोदी 50 करोड़ लोगों की रसोई और तिजोरी तक पहुँच गया है, अब मेरी गणित अच्छी होती तो समझ आता कि 50 करोड़ का मतलब क्या होता है! मेरे लिये तो काला अक्षर भैंस बराबर हो गया था। मुझे समझ ही नहीं आया कि कितने लोगों को गाली और चोर-चोर के खेल से भ्रमित कर लूंगा! मैं समझता रहा कि बस एक ही सम्प्रदाय है जो मेरी कस्ती को पार लगा देगी, लेकिन यह भूल गया था कि कि ऐसे कट्टरपंथी वोट अधिक से अधिक 10 करोड़ होंगे, मेरे चेले चपाटे कितने होंगे? 50 करोड़ में से मैं कितने काट लूंगा? 10 या 20! बाकि 30 तो मोदी के पास ही रहेंगे ना! गणित किसी की भी ठीक नहीं थी क्या? मनमोहन सिंह तो अर्थशास्त्री है, फिर उसने क्यों नहीं बताया? खैर वह तो मौन रहता है, मेरे कहने पर ही बोल पाता है, उसको क्या भला-बुरा कहूँ! मेरी बहन तो करोड़ो का खेल खेलती है, फिर उसने सावधान क्यों नहीं किया? जमीन हड़पने में और जमीनी हकीकत देखने में अन्तर होता है, अब मैं समझ पा रहा हूँ। त्याग-पत्र तो पहले ही दे चुका हूँ लेकिन दूसरा कोई तैयार नहीं हो रहा। तैयार होते ही चुपचाप कहीं निकल लूंगा, वैसे भी फिर माँ के पल्लू से लगकर बैठने का अवसर शायद ना मिले। मैं चुपचाप अपने ही नेता के शब्दों से निकले तीरों को झेल रहा था और कल्पना कर रहा था कि कितने बाण सामने से आएंगे? मैं छिपा रहा, बचता रहा, लेकिन उस जयन्त सिन्हा ने तो सीधे ही पूछ लिया कि अब अध्यक्ष रहे हैं या नहीं। लोगों ने भी कह दिया कि नहीं! मैं दम साध कर बैठा था कि अखाड़े का सबसे दबंग पहलवान आकर मुझे कैसी-कैसी पटकनी देगा लेकिन मुझे थोड़ी राहत मिली जब उसने कह दिया कि जमानत एनजॉय करो! सहिष्णुता, लिंचिंग आदि समस्याओं से मुझे धैला भर भी फर्क नहीं पड़ता, आपातकाल भी मेरी चिन्ता का विषय नहीं है बस चिन्ता एक ही है कि पासपोर्ट जब्त ना हो जाए. इस अधीर बने हुए नये नेता के कारण। पासपोर्ट में तो कितने राज छिपे हैं, तब क्या होगा! न्यायालय कह दे कि हमें चैलेंज कर रहे हैं तो लाओ फाइल, अब न्याय करते हैं। वैसे भी न्याय करने का इन्हें शौक चर्राया था, तो हम ही कर देते हैं। फिर भला जज भी हमारी आस में कब तक बैठे रहेंगे? वे भी तो अपने आकाओं का बदलाव कर सकते हैं ना! इसलिये मैं आज लुटा-पिटा सा बैठा हूँ, मेरे सामने प्रलय आ गयी है। अब आप कह लो कि – एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह! कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे! जो कभी अपनी महफिल हुआ करती थी, आज परायी क्यों हैं? मेरे चेहरे पर अब नूर नहीं बेचैनी ही रहेगी। मुझे माफ करना।

You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

Leave a Reply