अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

कबाड़ ना बन जाए ज़िन्दगी!

Written By: AjitGupta - Feb• 07•21

मेरी मिक्सी के एक जार में मामूली सी खराबी आ गयी, बेटी-दामाद घर आए हुए थे, वे बोले कि मैं नयी मिक्सी आर्डर कर देता हूँ। मैंने कहा कि इतनी सी खराबी और नयी! एक बार रिपेयर-शॉप पर जाओ, दस मिनट में ठीक हो जाएगी। खैर, मेरे कहने पर वे शॉप पर गये और मात्र २०₹ में और पाँच मिनट में जार ठीक हो गया। आप गुस्सा मत होइए कि मैं क्या पुराण लेकर बैठ गयी हूँ! हमारा जीवन भी अब कुछ इसी तरह का हो गया है। छोटी-छोटी शरीर की टूट-फूट होती है और सब कहने लगते हैं कि बुढ़ापे में अब यह सब होगा ही। नया चोला बदलना ही है! डॉक्टर भी यही कह देता है कि अब उम्र हो गयी है। मैं कहती ही रह जाती हूँ कि एक बार देख तो लो क्या पता खराबी छोटी सी ही हो। लेकिन कोई नहीं सुनता! पुराने को फेंकना ही है, लेकिन कब फेंकना है, यह निश्चित तो करना ही होगा! छोटा सा पेच ढीला हो जाए और पूरी मशीन को ही अत्तू कर दो, यह कैसे सम्भव होगा! मशीन तो बदल जाती है लेकिन शरीर कैसे बदले? उसकी तो उम्र होती है, वह बिना पेच के खड़खड़ाते हुए चलेगा लेकिन चलेगा! हम या तो पेच की खराबी ढूँढ ले या फिर रोज़ की खड़खड़!पुरानी मशीन मानकर ना घर के लोग और ना ही डॉक्टर आपकी चिन्ता करेंगे लेकिन आपको स्वयं चिन्ता करनी होगी। आपको छोटी-मोटी टूट को ढूँढना पड़ेगा और ज़िन्दगी को राहत देनी होगी। बुढ़ापे में केवल आपका स्वास्थ्य ही आपका मित्र है। अच्छी खासी मशीन कबाड़ में फेंक दी जाए, इससे पहले आप स्वयं की चिन्ता कर लीजिए। क्योंकि परिवार में भी हर कोई नयी और चमचमाती मशीनों को ही रखना चाहते हैं, पुरानी कबाड़ में ही फेंकने को तैयार रहते हैं। पुराना जमाना था जब आख़िरी दम तक पुरानी से काम लिया जाता था लेकिन अब नहीं। तो सावधान हो जाइए। आपकी मशीन कोई कबाड़ में ना फेंक दे! ध्यान दें लीजिए अपनी ओर! बस छोटी-छोटी सावधानी आपको घर में बनाये रखेगी नहीं तो कबाड़ की दुकान तो है ही। अब घर भी छोटे हैं तो घर की किसी कोठरी में भी जगह नहीं मिलेगी।

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