अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

कम्‍बोडिया हिन्‍दी सम्‍मेलन – खट्टे-मीठे अनुभव

Written By: AjitGupta - Jul• 03•13

हिन्‍दी सम्‍मेलन के संयोजक का फेसबुक पर निमंत्रण मिला। कहीं बाहर जाने का मन हो रहा था और यदि पर्यटन के साथ साहित्‍य का साथ हो जाए तो ऐसा लगता है जैसे सोने पर सुहागा। क्‍योंकि कुछ लोगों के मनोरंजन का अर्थ होता है नाचना, गाना और खाना। लेकिन हम लोगों के मनोरंजन का अर्थ होता है बौद्धिक चर्चा। जब तक मानसिक खुराक नहीं मिले लगता है कुछ नहीं मिला। फिर जानना था आज के थाईलैण्‍ड को जो कल तक भारत का श्‍याम देश था और जानना था कम्‍बोडिया को जो कल तक भारत का कम्‍बौज देश था। इसलिए बिना विलम्‍ब के हाँ कर दी गयी। राजस्‍थान के संयोजक से पूछा कि कैसा रहता है? वे बोले की अच्‍छा ही करते हैं, तब सारी दुविधा भी समाप्‍त हो गयी। धीरे-धीरे प्रतिभागियों की सूची आने लगी और संतोष बढ़ता ही गया कि अच्‍छे व्‍यक्ति साथ हैं। यात्रा के बारे में ज्‍यादा पूछताछ नहीं की गयी, क्‍योंकि साहित्‍यकारों की यात्रा में भला क्‍या असुविधा हो सकती है? पासपोर्ट भेज दिया गया और वांछित पैसे भी। यात्रा के दो दिन पूर्व पासपोर्ट जयपुर आ गया, तब राजस्‍थान के संयोजक जी से पूछा कि पासपोर्ट में वीजा लग गया है क्‍या? उन्‍होंने बताया कि नहीं। बैंकाक में अराइवल वीजा ही लेना है। अब लगा कि यात्रा कठिन होने वाली है, संयोजक और एजेण्‍ट ने होमवर्क नहीं किया है। दिल्‍ली से शाम 6-30 की फ्‍लाइट थी और इस इंडिगो की फ्‍लाइट में भोजन वगैरह कुछ भी नहीं दिया जाता है। हमने अपने साथ खाना पैक करा लिया। एयरपोर्ट पर दिल्‍ली के संयोजक मिले और उन्‍होंने किताबों से भरे दो बैग हमारी अटेचियों में भर दिए, लगा कि वजन ज्‍यादा हो जाएगा लेकिन नहीं हुआ। तब यह संतोष रहा कि आते समय कुछ खरीदारी की जा सकती है।

नियत समय पर फ्‍लाइट में बैठ गए, हम बैंकाक की तरफ उड़ चले। मेरे साथ ही दिल्‍ली से आयी संगीता गुप्‍ता थी। लेकिन परिचय नहीं था। उन्‍होंने भोजन खरीदा, हम कुछ नहीं बोले। क्‍योंकि अनजान व्‍यक्ति को खाने के लिए पूछना आजकल खतरे से बाहर नहीं रहता है। लेकिन कुछ ही देर बाद मैंने पूछ लिया कि आप कहाँ से हैं? मालूम पड़ा कि वे भी हमारे साथ ही हिन्‍दी सम्‍मेलन में जा रही हैं और दिल्‍ली में ही प्रशासनिक अधिकारी हैं। हम सब अपने परांठे निकाल ही रहे थे कि हमारे साथियों की तरफ से पेकेट बंटने शुरू हो गए। अरे सभी लोगों के लिए व्‍यवस्‍था कर दी थी, हमारे ही सहयात्रियों ने। बड़ा अच्‍छा  लगा। लेकिन हमारे पास भोजन था तो हमनें उसकी आवश्‍यकता नहीं पड़ी। चार घण्‍टे की फ्‍लाइट बातचीत में पलक झपकते ही समाप्‍त हो गयी। रात 11-30 बजे हम बैंकाक में थे। भारत से बैंकाक का समय 1-30 घण्‍टे आगे था। लेकिन कठिनाइयों का दौर अब शुरू होने वाला था। अराइवल वीजा के लिए लम्‍बी लाइन लगी थी और हमें 1000 थाई भाथ जमा कराने थे। केवल एक काउण्‍टर खुला था और यात्रियों की भारी भीड़ थी। दो-तीन घण्‍टे का समय उस सब में लग गया। खैर जैसे-तैसे करके सब एक स्‍थान पर एकत्र हुए और बस की तलाश करने लगे। बस खोजने के बाद पता लगा कि बस बाहर खड़ी है और वो हम सबको ले जाने के लिए तैयार है। इससे पूर्व हमें बताया गया था कि दूसरा दल कलकत्ता से आने वाला है, उनका इंतजार करने के बाद ही हम वहाँ से प्रस्‍थान कर सकेंगे। लेकिन उनके हमारे साथ एकत्र होने से पूर्व ही बस को रवाना कर दिया गया। हमें थाईलैण्‍ड के दूसरे शहर पटाया में जाना था। वहाँ जाने के लिए बस से दो घण्‍टे का समय लगा। खैर हम सुबह पाँच बजे पटाया के एक होटल में पहुंचे। कमरे मिलने में विलम्‍ब नहीं हुआ और हम जाते ही पलंग पर ढेर हो गए। लेकिन सुबह हो चली थी और नींद नहीं आयी। हमने सोचा कि बिस्‍तर पर पड़े रहने से अच्‍छा है कि स्‍नान वगैरह ही कर लिया जाए। वहाँ होटलों में सुबह 6 बजे ही नाश्‍ता लग जाता है। हम लोग भी तैयार होकर आठ बजे तक नाश्‍ता करने पहुँच गए।

नाश्‍ते में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों की थे, अब कठिनाई यह थी कि क्‍या खाया जाए और क्‍या नहीं? हमें ब्रेड ही निरापद लगी। ब्रेड, दूध और फल बस ये ही नाश्‍ते में समझ आने लगा था। चाय पीने वालों के लिए कुछ कठिनाई थी कि ठण्‍डे दूध की चाय पीना ही उनके लिए बाध्‍यता थी। फलों में तरबूज, पाइन-एपल, आम, पपीता आदि थे। आम केवल थाईलैण्‍ड में ही थे, आगे आम नहीं थे। एक जगह शायद वियतनाम में पका कटहल भी था जो वाकयी में स्‍वादिष्‍ट था। नाश्‍ता करने के बाद हमें सूचित किया गया कि अब आप आराम कीजिए और लंच के समय हम यहाँ से चलेंगे। तब शहर का भ्रमण भी कराया जाएगा। तीन-चार घण्‍टे की नींद पूरी करके हम सब दिन में एक बजे के लगभग भोजन के लिए इण्डियन रेस्‍ट्रा में पहुंचे, वहाँ भारतीय खाना खाया और फिर पटाया घूमने के लिए निकल पड़े। बस से ही हमें समुद्र दिखा दिया गया, समुद्र का किनारा – जाम्पिया बीच, बेहद खूबसूरत था लेकिन हम उसे छू नहीं पाए। वैसे हमारे होटल के नजदीक ही था लेकिन रात को जाने की हिम्‍मत नहीं बची और समुद्र में नहाने का ख्‍वाब धरा रह गया। वहाँ हमें एक शो दिखाया गया, जिसकी फोटो लेना मना थी। खूबसूरत लड़ककियों का नृत्‍य था। लेकिन बाद में पता लगा कि ये लड़कियां नहीं थी। यौन-परिवर्तन कराकर लड़कियां बनी थी। वहाँ इस बात का बड़ा प्रचलन है। नृत्‍य में तो ऐसी खासियत नहीं थी लेकिन उनकी वेशभूषा और सर के मुकुट आकर्षक थे। बस आनन्‍द तब आया जब वे डोला रे डोला मन डोला पर नृत्‍य करने लगीं। लेकिन इस समय का उपयोग समुद्र किनारे घूमने में किया जाता तो शायद बेहतर होता। इस शो के 600 भाथ मूल्‍य था जो भारतीय मुद्रा में 1200 रू होता है। लेकिन यह भी एक अनुभव था कि वहाँ यौन परिवर्तन कराने का चलन है। वहाँ नाइट मार्केट चलता है, अर्थात सारी रात बाजार में चहलकदमी रहती है। पटाया मसाज सेंटर के रूप में विकसित हो गया है इसलिए वहाँ मसाज सेंटर की ही बहुतायत थी। भारत में जिन कामों को वर्जित माना जाता है, वहाँ आम स्‍वीकार्य कार्य हैं। इसलिए रात को हमने घूमना उचित नहीं समझा और नींद पूरी कर लेना ही ठीक लगा।     क्रमश्:

 

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18 Comments

  1. सतीश सक्सेना says:

    बधाई ..बढ़िया समय कटा होगा !

  2. अब आगे की रिपोर्ट्स का इंतजार है. शुभकामनाएं.

    रामराम.

  3. shikha varshney says:

    बढ़िया अनुभव रहे .

  4. रोचक प्रस्तुतीकरण …. आगे का इंतजार है ….

  5. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन दिल और दिमाग लगाओ भले बन जाओ – ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है … सादर आभार !

  6. Kajal Kumar says:

    अच्‍छा लगा जी पढ़ कर

  7. आगे की प्रतीक्षा..

  8. एक साँस में पढ़ गये.. आगे की यात्रा वृत्तांत का इंतजार है

  9. रोचक, आगे की प्रतीक्षा।

  10. बेहतरीन अगली कड़ी का इंतजार होगा

  11. आगे की कहानी सुनने का इंतजार है।

  12. आगे की रिपोर्ट्स का इंतजार

  13. सम्मलेन में क्या हुआ , अगली रिपोर्ट का इन्तजार रहेगा !

  14. t s daral says:

    हाय ! ऐसे आयोजक / संयोजक कहाँ छुपे रहते हैं !
    आपने यह नहीं बताया कि क्या अकेले ही गए थे।
    अब तो इंतजार रहेगा बैंकाक घूमने का।

    • AjitGupta says:

      दराल जी, हम दोनों ही गए थे और पूरे देश से 82 प्रतिभागी थे।

  15. वाह, पढ़ने में आनन्द आ रहा है।

  16. अच्छा लगा पढ़कर ….

  17. girish pankaj says:

    वाह, बेहद जीवंत वर्णन किया है आपने.

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