अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

कुछ तो अच्छा ही हो जाए!

Written By: AjitGupta - Mar• 17•20

सारी दुनिया सदमें में एक साथ आ गयी है, ऐसा अजूबा इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है। विश्व युद्ध भी हुए लेकिन सारी दुनिया एकसाथ चिंतित नहीं हुई। आज हर घर के दरवाजे बन्द होने लगे हैं, सब एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे हैं, पता नहीं कब हाथ पकड़ने का साथ भी छूट जाए! जो घर सारा दिन वीरान पड़े रहते थे, वृद्धजनों की पदचाप ही जहाँ सुनायी पड़ती थी अब गुलजार हो रहे हैं। न जाने कितने लोग एक-दूसरे से पीछा छुड़ाने के लिये घर से बाहर निकल जाते थे। अब वे सब एक छत के नीचे हैं। हम गृहणियां कहती दिखती थी कि घर से बाहर जाओ तो हमें भी काम की समझ आए। पति कहता था कि कहाँ जाऊँ, अरे कहीं भी जाओ, बाजार जाओ, मन्दिर जाओ, किसी दोस्त के जाओ लेकिन जाओ। अब कोई कुछ नहीं कह रहा, सब घर में बन्द हैं। ऐसा लग रहा है कि दो दुश्मनों को एक कमरे में बन्द कर दिया है कि बस तुम हो और यह घर है! अब रूठ लो, झगड़ लो या समझदारी से सुलह कर लो! बस कुछ दिन तुम ही तुम हो एक दूसरे के साथ।

दो चार दिन बाद शायद नौकरानी भी आना बन्द हो जाए फिर? तब एक झाड़ू थामेगा और दूसरा पौछा! एक सब्जी काटेगा तो दूसरा रोटी सेकेगा। मिल-जुलकर काम करने का समय आ गया लगता है! नहीं यह सब्जी अच्छी नहीं है, और कुछ अच्छा सा बनाओ, अब कोई कहता हुआ नहीं देख सकोगे! बच्चे भी कहेंगे कि देखो घर में क्या बचा है, रोटी मिल जाए तो ठीक रहे। पिजा-पाश्ता तो दूर की कोड़ी हो जाएगी! अतिथि देवोभव: की जगह अतिथि तुम मत आना, प्रमुख बात हो जाएगी।

हर आदमी दुश्मन सा लगने लगा है और वह आदमी विदेशी हो तो फिर लगता है जैसे यमराज ही भैंसे पर सवार होकर सामने खड़े हों! जिन विदेशियों का हमेशा स्वागत था, अब डर को मारे पीछा छुड़ाना चाहते हैं। खाँसी – जुकाम तो सबसे बड़ा पाप हो गया है, ऐसा पाप जिसे कोई छूना भी नहीं चाहता। कभी मन करता है कि किसी पेड़ के तने को छूकर देख लें कि कितना स्निग्ध है लेकिन तभी डर निकलकर आ जाता है, नहीं किसी को मत छूना! पता नहीं किसने इसे छुआ होगा! हर चीज में कुँवारेपन की तलाश है।

दुनिया के सामने लड़ने के भी खूब अवसर हैं और प्यार से रहने के भी। लड़कर भी कब तक  रहेंगे, धीरे-धीरे समझौता होने लगेगा और शायद प्यार ही हो जाए! लोग फिर कहेंगे कि यह कोरोना प्यार है! वकील सुपारी लेना भूल जाएंगे। जब पति-पत्नी घर से बाहर के लिये मुक्त होंगे तब साथ होंगे, एक दूसरे का हाथ पकड़कर, गिले-शिकवे भूल कर साथ होंगे। मैं तो अच्छी कल्पना ही कर लेती हूँ कि इस महामारी में शायद कुछ अच्छा हो जाए। हम साथ रहना सीख जाएं। घर में रहना सीख जाएं। एक दूसरे से बात करना सीख जाएं। एक दूसरे का साथ निभाना सीख जाएं। काम में हाथ बँटाना सीख जाएं। इस बुरे समय में कुछ तो अच्छा हो जाए।

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