अजित गुप्ता का कोना

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चतुर्थ खण्‍ड – स्‍वामी विवेकानन्‍द कन्‍याकुमारी स्थित श्रीपाद शिला पर

Written By: AjitGupta - Sep• 28•12

सेतुपति से मिलने से पूर्व मद्रास के मन्‍मथ बाबू के साथ स्‍वामी रामेश्‍वरम् की यात्रा के लिए निकले लेकिन मन्‍मथ बाबू को सरकारी काम से नागरकोइल तक जाना था। नागरकोइल पहुंचकर मन्‍मथबाबू ने स्‍वामीजी को कहा कि यहाँ से कन्‍याकुमारी मात्र 12मील है। स्‍वामीजी ने कन्‍याकुमारी जाने का निश्‍चय किया। उन्‍हें लगा कि माँ मुझे पुकार रही है और वे पैदल ही चल पड़े। माता जगदम्‍बा ने शिव को पाने के लिए कन्‍या रूप में यहीं श्रीपाद शिला पर तपस्‍या की थी और अपने चरण चिह्न छोड़े थे। वहाँ एक मन्दिर भी बना था लेकिन समुद्र के वेग से वह टूट गया। श्रीपाद शिला तक जाने का मार्ग दुर्गम होने के कारण भक्‍तों ने समुद्र किनारे ही माँ का मन्दिर बनवा दिया था। स्‍वामी पहले मन्दिर में ही गए। उन्‍हें स्‍मरण आया कि मैं सर्वप्रथम काली मन्दिर में माँ के समक्ष गया था और आज फिर माँ के समक्ष खड़ा हूँ। स्‍वामी भाव विह्वल हो गए, उनके आँख से आँसू झरने लगे। उनके मन ने कहा कि यहाँ माँ की चरण वन्‍दना करने आया है तो श्रीपाद के दर्शन भी तो कर।

स्‍वामी कन्‍याकुमारी में समुद्र के समक्ष खड़े थे। वे सामने श्रीपाद चट्टान को देख रहे थे। अनेक नाविक अपनी नावें लेकर उनके पास आए और उन्‍हें चट्टान तक ले जाने के लिए तैयार हुए। लेकिन स्‍वामी के पास पैसे नहीं थे। कोई भी नाविक नि:शुल्‍क उन्‍हें ले जाना नहीं चाहता था। समुद्र में व्‍हेल और शार्क मछली थी और चट्टान तक जाना खतरे से खाली नहीं था। लेकिन स्‍वामी ने समुद्र में छलांग लगा दी। सारे ही नाविक धक्‍क रह गए। उन्‍हें अब केवल उस क्षण का  इंतजार था जब समुद्र से रक्‍त बहता हुआ दिखायी देगा। किसी का साहस नहीं हुआ कि वे उन्‍हें बचाने के लिए समुद्र में कूद पड़े। लेकिन स्‍वामी उस चट्टान पर पहुँच गए। वे वहाँ ध्‍यान लगाकर बैठ गए। दूसरे दिन भी स्‍वामी वहीं थे। एक-दो सद् गृहस्‍थ नाविकों को लेकर उनके लिए फल आदि लेकर चट्टान में पहुंच गए। स्‍वामी ध्‍यान में मग्‍न थे। नागरिकों ने उनसे निवेदन किया कि आप कुछ फल आदि ग्रहण कर लें। लेकिन स्‍वामी ने उन्‍हें मना कर दिया। कहा कि तुम इन्‍हें यहाँ छोड़ जाओ अगर ईच्‍छा होगी तो मैं ग्रहण कर लूंगा। आखिर तीन दिन तक स्‍वामी वहीं रहें। उन्‍हें आभास हुआ कि माँ ने राष्‍ट्र का कार्य करने की आज्ञा प्रदान की है। उन्‍होंने भारतीय संस्‍कृति के क्षमतावान स्‍वरूप को साक्षात देखा। उन्‍होंने देखा कि भारतमाता की नाड़ियों में दौड़ने वाला रक्‍त और कुछ नहीं केवल धर्म था, अध्‍यात्‍म ही उसका प्राण था। उन्‍होंने यह भी देखा कि भारत अपनी अस्मिता खो चुका है। उसे पुन: जगाया जाए, उसे पुन: जीवंत किया जाए और उसे पुन: स्‍थापित किया जाए। धर्म भारत के पतन का कारण नहीं था, पतन का कारण था उसकी अवहेलना। मुमुक्षु संन्‍यासी एक सुधारक, एक राष्‍ट्रनिर्माता, विश्‍वशिल्‍पी में परिणत हो गया था। उन्‍होंने देखा कि दोष धर्म का नहीं समाज का है इसलिए संन्‍यास और सेवा – ये युगल विचार ही भारत का उद्धार कर सकते हैं। हाँ वे अमेरिका जाएंगे, करोड़ों भारतवासियों का प्रतिनिधि बनकर वे अमेरिका जाएंगे। इतने वर्षों के चिन्‍तन के बाद उन्‍हें मार्ग मिल गया था।

कन्‍याकुमारी से वे रामनाड के राजा भास्‍कर सेतुपति से मिलने गए। सेतुपति ने उन्‍हें अमेरिका जाने के लिए दस सहस्‍त्र रूपए देने का वचन दिया लेकिन स्‍वामीजी ने कहा कि उपयुक्‍त अवसर आने पर अपने निश्‍चय की सूचना दूंगा। लेकिन स्‍वामीजी के जाने के बाद उनके सभासदों ने सेतुपति के कान भर दिये कि राजन् आप यह क्‍या कर रहे हैं? कहीं यह संन्‍यासी ना होकर जासूस या और कुछ हुआ तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। जो आपकी दया को एक क्षण में ठुकराकर चले गया, उसके मन में क्‍या है, कौन जानता है। आखिर सेतु‍पति का मन बदल गया और उन्‍होंने निश्‍चय कर लिया कि मैं स्‍वामी को एक पैसा भी नहीं दूंगा। वे वहाँ से पाण्‍डीचेरी गए, वहाँ पर उन्‍हें पेरूमल अलसिंगा मिले। अलसिंगा ने स्‍वामीजी को मद्रास आने का निमंत्रण दिया। स्‍वामीजी मद्रास गए। अलसिंगा ने उनके व्‍याख्‍यान कई स्‍थानों पर कराए। सभी का मानना था कि स्‍वामीजी को शिकागो को आयोजित धर्मसंसद में हिन्‍दुओं का प्रतिनिधि बनकर जाना चाहिए। लेकिन स्‍वामीजी को लग रहा था कि माँ का स्‍पष्‍ट आदेश उन्‍हें नहीं मिला है कि वे अमेरिका जाएं। लेकिन सेतु‍‍पति के आश्‍वासन और उनके शिष्‍यों के कहने पर उन्‍होंने निश्‍चय किया कि अमेरिका जाएंगे। उनके शिष्‍यों ने इस निमित्त धन संग्रह करना प्रारम्‍भ किया। वे सेतुपति के पास जब गए तब सेतुपति ने स्‍पष्‍ट मना कर दिया। स्‍वामीजी का मन क्षुब्‍ध हो गया। उन्‍हें लगा कि शायद माँ की इच्‍छा नहीं है। उन्‍होंने अपने शिष्‍यों से कहा कि धन गरीब जनता में बांट दो।

स्‍वामीजी का मन स्थिर नहीं था, वे माँ के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी उन्‍हें हैदराबाद से निमंत्रण आया। वे समझ नहीं माए कि माँ क्‍या चाहती है? वे हैदराबाद गए। स्‍टेशन पर पाँच सौ लोगों की भीड़ उनके स्‍वागत के लिए जमा थी। उन्‍हें शोभा-यात्रा के रूप में बाबू मधुसूदन चट्टोपाध्‍याय के बंगले तक लाया गया। उन्‍हें लग रहा था कि माँ कह उन्‍हें स्‍वप्‍न दिखा रही है कि देख अपने देश में कितना सम्‍मान, यश तुझे प्राप्‍त होने वाला है, लेकिन उनका मन माँ से कह रहे थे कि मैं यश और धन के लिए अमेरिका नहीं जा रहा हूँ। स्‍वामीजी मद्रास वापस आ गए। उनकी सफलता से उत्‍साहित उनके शिष्‍यों ने पुन: चन्‍दा एकत्र करना प्रारम्‍भ किया। एक दिन स्‍वामीजी को अद्धसुप्‍तावस्‍था में दिखायी दिया कि वे सागरतट पर हैं। उन्‍होंने देखा कि ठाकुर समुद्र में जा रहे हैं और उन्‍हें भी हाथ के इशारे से बुला रहे हैं। उन्‍हें ठाकुर का स्‍वर सुनायी दिया – आजा मेरे पीछे आजा। अब स्‍वामी प्रसन्‍न थे, ठाकुर उनके साथ थे। लेकिन दूसरे ही दिन उनके स्‍वप्‍न में आया कि उनकी माता भुवनेश्‍वरी देवी का निधन हो गया है। वे अशान्‍त हो गए। उनके शिष्‍यों ने एक तार कलकत्ता भेजा वस्‍तुस्थिति जानने के लिए।

मद्रास में एक तांत्रिक था- गोविन्‍द चेट्टी। मन्‍मथ बाबू, अलसिंगा आदि स्‍वामीजी को उस तांत्रिक के पास लेकर गए। तांत्रिक पहले तो चुप रहा, जब स्‍वामीजी वापस जाने लगे तब वह बोला कि रुको। उसने बोलना प्रारम्‍भ किया कि तुम नरेन्‍द्रनाथ दत्त हो, तुम्‍हारे पिता का नाम विश्‍नाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्‍वरी है। तुम्‍हारी माता एकदम स्‍वस्‍थ है। आसुरी शक्तियां तुम्‍हें भ्रमित कर रही हैं। मैं देख रहा हूँ कि तुम शीघ्र ही समुद्र पार जाओगे धर्म प्रचार के लिए। सभी आश्‍वास्‍त हो गए और एक-दो दिन में ही कलकत्ता से भी तार आ गया कि भुवनेश्‍वरी देवी स्‍वस्‍थ हैं। अब स्‍वामीजी यात्रा के लिए मानसिक रूप से तैयार थे। लेकिन उन्‍हें लगा कि श्रीमाँ का आशीर्वाद और आज्ञा अवश्‍य लेनी है। इसके लिए कलकत्ता जाने का उनके पास समय नहीं था, उन्‍होंने वहीं से उन्‍हें पत्र लिखा और माँ ने अपना आशीर्वाद स्‍वामीजी को दिया।

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9 Comments

  1. G.N.SHAW says:

    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति |आप का लिंक बदल गया है , नए लिंक की जानकारी मिली |

  2. सच हुयी भविष्यवाणी, समुद्र पार भारतीय संस्कृति का परचम फहरा कर आये नरेन्द्र..

  3. बहुत सारी नई जानकारी मिली .धन्यवाद .

  4. उनका व्यक्तित्व हमेशा से ही ओजस्वी रहा होगा ….. प्रभावित करती हैं उनसे जुड़ी बातें ….

  5. जब किसी निर्णय पर पहुँचना मुश्किल हो रहा हो तो असली फैसला अंतर्प्रेरणा से ही होता है, बाह्य कारण उस फैसले के क्रियान्वयन में सहायक ही होते हैं| ऐसा ही कुछ नरेन्द्र क साथ हुआ होगा, जब दुविधा की स्थिति में गोविन्द चेट्टी से उनकी मुलाक़ात हुई| रोचक, प्रेरक|

  6. AjitGupta says:

    संजय जी, विवेकानन्‍दजी के जीवन में गोविन्‍द चेट्टी कई घटनाएं हैं। यह प्रदर्शित करती हैं कि उस समय लोग अपनी अन्‍त:चेतना से ज्ञान प्राप्‍त करते थे। विवेकान्‍द ने भी अपनी अन्‍त:चेतना को जागृत किया था।

  7. हमारे देश तब कितने ज्ञानी लोग हुआ करते थे जो इस तरह की अचूक भविष्यवाणियां बिना किसी प्रतिदान की आशा के करते थे । विवेकाननंद जी ने तो शिकागो जाकर अंतरराष्ट्रीय धर्म परिषद में अपनाऔर भारत का झंडा गाड ही दिया । आपका आभार िस विषय पर लिखने के लिये ।

  8. anjalisahai says:

    aaj kanayakumari pr script likhne ke liye net par search kr

    rahee thee,achanak aap ka blog mil gaya jismen vivekanand pr bahut see janakari milee, maza aa gaya……thanks
    Anjali sahai

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