अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

चुनाव का दंगल लेकर आए हैं – बने रहिए हमारे साथ

Written By: AjitGupta - Nov• 15•13

चुनावी दंगल चल रहे हैं, सारे ही पहलवान ताल ठोककर मैदान में हैं। मीडिया बारी बारी से सभी को उकसाने का श्रम कर रहा है। जैसे ही कोई पहलवान कमजोर पड़ता है, मीडिया उसके पक्ष में खड़ी हो जाती है, और वह फूल कर कुप्‍पा हो जाता है। मीडिया के स्‍वर तेज होते जाते हैं – भाई साहब आइए देखिए, ऐसा अद्भुत नजारा आपने पहले नहीं देखा होगा, बहिनजी आप भी आइए, रसोई में क्‍या रखा है? हम आपको यहाँ सारी ही चटपटी खबरे दिखाएंगे। डोडियाखेड़ा को पीपली लाइव बनाने वाली मीडिया का ध्‍यान अब सोने की खुदाई से हट गया है। अब वह महात्‍माओं के चक्‍कर में नहीं फंसेगी। बस उसके पास एक ही महात्‍मा की खबर है, उसके सारे ही खानदान को लपेट लिया है। रिपोर्टरों से कह दिया गया है कि सावधान! कोई खबर नहीं छूटनी चाहिए। अभी बाजार गर्म है, इसलिए रिपोर्टरों की भर्ती तेजी से की जा रही है, युद्धस्‍तर पर कार्य चल रहा है। इसलिए सभी की छुट्टियां भी रद्द कर दी गयी हैं। पैनल डिस्‍कशन में भी नए-नए चेहरे दिखाई पड़ने लगे हैं। सभी को टीवी पर आने का अवसर मिलने लगा है, शायद यही लोकतंत्र की जीत है। लेकिन कुछ जमे हुए विवेचनकारी है, उनके बिना चैनलों का विरेचन पूरा नहीं होता। वे आपको हर मर्ज की दवा देते दिखाई देंगे। पहलवानों के बीच दंगल तो गाँव-गाँव और शहर-शहर में हो रहा है लेकिन टीवी पर भी मेंडे लड़ाने का खेल बदस्‍तूर जारी है। राजनैतिक दलों के शागिर्दों को टीवी पर जगह दी जाती है, सारे ही दल उपस्थित रहते हैं। टीवी एंकर के हाथ में चाबुक रहता है, वह घड़ी-घड़ी चाबुक फटकारता है और एक मेंडे को लाल कपड़ा दिखाकर दूसरे मेंड़े से भिड़ जाने को उकसाता है। दोनों जब लहुलुहान हो जाते हैं तब मदारीनुमा एंकर तीसरे मेंडे को मैदान में उतारता है। एंकर का ध्‍यान इस बात की ओर बराबर रहता है कि कोई भी मेंडा जीतने ना पाए, जैसे ही एक मेंडा अपने दावपेच लगाकर सींग को मारने की तैयारी करता है, मदारी झट से चाबुक फटकार देता है और फिर लाल कपड़ा दिखा देता है। अन्‍त तक सारे मेंडे फुफकारते ही रहते हैं लेकिन कोई किसी को पस्‍त नहीं कर पाता, क्‍योंकि एंकरनुमा मदारी उसे ऐसा करने नहीं देता।

ये ही मदारी कुश्‍ती का लाइव प्रसारण भी करते हैं, उसमें भी यही प्रक्रिया जारी रहती है। किसी भी पहलवान को ना जीतने दो और ना हारने दो। वे कहते हैं कि भला हम कौन है दूध का दूध और पानी का पानी करने वाले? जनता न्‍याय करेगी, वह देखे और चुनाव करे। हमने भ्रम की स्थिति बना दी है, अच्‍छे को बुंरा और बुरे को अच्‍छा बता दिया है, अर्थात सारे ही पहलवान एक से गुणवाले हैं यह हमने सिद्ध कर दिया है। बस अब तो जनता को इस कोहरे में से असली पहलवान को छांटना है। पहलवान को भी समझ आ गया है कि इस एंकर ने मुझे कोहरे में छिपाकर संदेह का लाभ दे दिया है। अब वह भुजाओं में तैल लगाकर जनता के बीच उतरता है, किसी को भुजा दिखाता है, किसी के आगे हाथ जोड़ लेता है और किसी को चुपके से बख्‍शीश दे देता है। जनता भी खुश है कि आज तो आया ऊँट पहाड़ के नीचे। बस वह एक दिन के पहाड़ के नीचे आने से ही खुश हो जाती है। साड़ी, कम्‍बल, दारू आदि बख्‍शीश पाकर और भी धन्‍य हो जाती है और पहलवान को चुन लेती है। लेकिन मदारी यहां भी अपनी नाक घुसेड़ देता है, वह सूंघता हुआ आ ही जाता है कि किसको कितनी बख्‍शीश मिली? मदारी डमरू बजाने लगता है कि साबजान, कद्रदान, देखिए फलां पहलवान बख्‍शीश से खेल को प्रभावित कर रहा है। वह जब तक डमरू बजाता है जब तक की महाबख्‍शीश उसे नहीं मिल जाती।

हम जैसे आम दर्शक सारा दिन रिमोट के सेल खतम करते रहते हैं, बार-बार बकरी के कान मरोड़ने जैसा ही काम करते हैं, लेकिन बकरी को दूध आधा छंटाक ही देना है, चाहे आप कितना ही कान मरोड़ लो। एकबार कान मरोड़ा, तो हैवीवेट पहलवान का दंगल दिखाया गया, दूसरी बार कान मरोड़ा तो मिडिलवेट पहलवान का दंगल था। दंगल नहीं था तो मेंडे लड़ाए जा रहे थे। बस टीवी पर चारो तरफ दंगल ही दंगल था। एकाध जगह हैवीवेट पहलवान का जीरोवेट पहलवान से दंगल भी चल रहा था, मजेदार बात यह थी कि यहां पर ही सबसे ज्‍यादा दर्शक जमे हुए थे। बयानबाज भी यही अपनी राय ज्‍यादा से ज्‍यादा रख रहे थे। छोटा पहलवान बाहे चढ़ाकर आता और बड़े पहलवान के पैरों को जकड़ लेता, बड़ा पहलवान पैरों को जोर से झटकता और छोटा चारों खाने चित्त। छोटे के शागिर्द लपकते और उसे चारों तरफ से घेर लेते। ग्‍लूकोज वगैरह पिलाया जाता, फिर नए दांवपेच सिखाए जाते और फिर उतार देते मैदान पर।

तो भाइयों और बहनों, कुश्‍ती का मौसम है, सर्दी भी गुलाबी सी रंगत लिए आपके समक्ष दस्‍तक दे रही है। मूंगफली की फसल खूब हुई है, अपनी जेब में भरिए और दंगलों का मजा लीजिए। चना-जोर-गरम के दिन गए, क्‍योंकि उसमें प्‍याज-टमाटर पड़ता है तो उसे भूल जाइए। वैसे भी यह गर्मी में अच्‍छा लगता है बस अब तो मूंगफली खाइए और दंगल देखिए। टीवी ने आपके लिए एक नहीं बीसियों न्‍यूज चैनल खोल दिए हैं, आपके सीरियल कम पड़ सकते हैं लेकिन न्‍यूज चैनल आपको कभी निराश नहीं करेंगे। बस लगे रहिए, कुछ दिन और। अभी जोन  लेवल का दंगल है कुछ दिन बाद राष्‍ट्रीय स्‍तर का दंगल लेकर आएंगे तब त्तक आप कहीं मत जाइए, बने रहिए हमारे साथ।

You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

5 Comments

  1. ARUN DAGA says:

    आप कहीं मत जाइए, बने रहिए हमारे साथ। Bashut khub

  2. archna says:

    gajab ka likha Ajit Ji

  3. t s daral says:

    बढ़िया व्यंग लिखा है।
    चुनावों में हम तो दुविधा में फंस गए हैं , किसे वोट दें !

  4. बकरी दूध आधा-छटांक ही देगी 🙂

  5. ajit gupta says:

    कई दिनों से बाहर गयी हूई थी, आज ही आई हूं। आप सभी का आभार।

Leave a Reply to sanjay @ mo sam kaun.....? Cancel reply