अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

ज्यादा बाराती नहीं चलेंगे

Written By: AjitGupta - Dec• 08•16

हमें आपकी लड़की पसन्द है, विवाह की तिथि निश्चित कीजिये, लेकिन एक शर्त है विवाह हमारे शहर में ही होगा। वर पक्ष का स्वर सुनाई देता है। राम-कृष्ण-शिव को अपना आदर्श मानने वाले समाज में यह परिवर्तन कैसे आ गया! स्वंयवर की परम्परा रही है भारत में। कन्या स्वंयवर रचाती थी और अपनी पसन्द के वर को वरण कर जयमाल उसके गले में डालती थी। इसके बाद ही वर जयमाल वधु के गले में डालता था। यहीं से प्रारम्भ हुआ बारात का प्रचलन। हमारी परम्परा में कन्या वर का चयन करती है लेकिन वर्तमान में वर, वधु का चयन कर रहा है और उसे ही आदेशित कर रहा है कि मेरे शहर में आकर विवाह सम्पन्न करो। विवाह में वर पक्ष के सैकड़ों और कभी-कभी हजारों बाराती कन्या के द्वार पर बारात लेकर आते हैं। कन्या पक्ष के लिये इतना बड़ा खर्च करना कठिन हो जाता है लेकिन विवाह की पहली शर्त तो यही है। न जाने किसने प्रारम्भ की थी यह परम्परा लेकिन अब तो रिवाज ही बन गया है।
कल याने 9 दिसम्बर की अनेक शादियां हैं, मेरे पास भी कई निमंत्रण हैं, लेकिन आश्चर्य का विषय यह है कि इस बार बारात का एक भी निमंत्रण नहीं है। सभी लोग संगीत में निमंत्रित कर रहे हैं, बारात में तो केवल घर वाले ही रहेंगे। सुखद परिवर्तन है। परिवर्तन का कारण बना है – नोट बंदी और कालाधन। कन्या पक्ष को अपनी बात कहने का अवसर मिला है, उन्होंने दृढ़ता से कहा है कि ज्यादा बाराती नहीं चलेंगे।
शादियों में पहले कन्या पक्ष को सहयोग करने के लिये समाज आर्थिक सहयोग करता था और समाज के लोग एक निश्चित राशि कन्या को देते थे, जिसे किसी मुखिया द्वारा लिखा जाता था, लेकिन अब लिफाफे में बंद राशि का प्रचलन चल गया है। नोटबंदी पर इस प्रथा में भी बदलाव आएगा और एक निश्चित राशि ही देने की परम्परा पुन: बनेगी। अभी लोहा गर्म है इसलिये चोट अभी ही करनी चाहिये, परम्पाराएं बदलने का सुनहरा अवसर है, बस कन्या पक्ष को दृढ़ रहने की आवश्यकता है।

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