अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

झाड़ू-फटके से बचने को काम की तलाश!

Written By: AjitGupta - Feb• 01•21

शर्माजी की पत्नी बगुले की तरह एक टांग पर खड़े होकर घर के काम कर-कर के तपस्या कर रही थी, उसकी एक नजर पतिदेव पर भी थी कि अब यह नौकरी से सेवानिवृत्त होने वाले हैं तो इनके हाथ में  भी झाड़ू-फटका पकड़ा सकूंगी जिससे मेरे काम का बोझ कम हो सकेगा। लेकिन वह सोचती ही रह गयी और शर्मा जी किसी संस्था में जाकर बैठ गये। समाज सेवी बन गये थे वे, पत्नी उन्हें परिवारसेवी बनाती उससे पहले ही वे समाजसेवी बन चुके थे।

देश के हर कोने में संस्थाएं खुलने लगी और शर्माजी जैसे लोग परिवार से छूटकर समाज के काम में व्यस्त हो गये। पत्नियाँ हाथ मलते ही रह गयी।

देश में सबकुछ ठीक चल रहा था, पतियों को घर से  बाहर निकलने के सौ बहाने मिल चुके थे। बड़े गर्व से कहते भी थे कि हम तो समाजसेवी हैं लेकिन अचानक ही उल्कापात हो गया। देश क्या दुनिया ही सात तालों में बन्द हो गयी। सभी को घर बैठना था और पत्नियों के काम में हाथ बँटाना था। नौकर-चाकर सभी तालाबन्दी का शिकार थे तो घर का काम कराना ही पड़ेगा। लेकिन हमारे देश के खालिस मर्द फिर भी निठल्ले बैठे रहे और बोर होते रहे।

घर का काम नहीं करना तो लोगों की आँखों में खटकने भी लगे, लोगों के क्या खुद की आँखों में भी खटकने लगे! उन्हें लगा कि जल्दी ही किसी काम का बहाना नहीं मिला तो घर के काम हाथ में ना आ जाएं! कभी इधर फोन तो कभी उधर फोन, अरे कोई संस्था तो खोलो, हम कहीं जाकर मुँह तो छिपाएं लेकिन कोरोना है कि कुछ खोलने ही ना दे। कोरोना मानो कसम खाकर आया हो कि इन कामचोरों को घर का काम कराकर ही रहूँगा।

अंग्रेजों ने इतने क्लब बनाये थे, जहाँ शान से लोग जाकर ताश पीटते थे, दारू पीते थे, अब वे भी बन्द हो गये थे। काम भी गया और शान भी गयी! पत्नी के हाथ का झाड़ू-फटका उनकी ओर टिकटिकी लगाए लगातार देखता रहता कि कब इनके गले पड़ूं लेकिन शर्माजी बचने की तरकीब निकाल ही नहीं पाते।

काम से बचने के और भी तरीके थे जैसे मन्दिर जाना और भक्त बनना। हाय री किस्मत मन्दिर भी बन्द हो गये! अब घर में ही पूजा पाठ कर लो, लेकिन घर में पूजा-पाठ का आनन्द नहीं। एकाध घण्टे में ही समाप्त और फिर झाड़ू-फटका की नजर! सर्दियों में बुरा हाल था, मटर आ गयी, इसे ही छील लो। मोगरी को चूंट लो। पालक साफ कर लो। नहीं, यह बहुत कठिन काम है! हमें काम चाहिये, काम। बस हर घर से यही आवाज आने लगी कि बिना काम के बोर हो जाते हैं! झाड़ू-फटका इंतजार कर रहा है और ये बोर हो रहे हैं! आश्चर्य है!

काम से बचने को काम चाहिये! परिवार की जिम्मेदारी से बचने को बाहर का काम चाहिये! शर्माजी कुछ तो शर्म कर लो। कोरोना में हर आदमी घर के काम पर लगने लगा है और आप काम की तलाश बाहर कर रहे हैं! कोरोना से सबक नहीं सीखा, अब भगवान कौन सा अस्त्र प्रयोग में लाएगा?

कुछ लोग अपना कम्प्यूटर खोल कर भी बैठ गये, पहले ज्योतिष का काम भी कम्प्यूटर पर कर लेते थे लेकिन अब ज्योतिष बहुत बड़ी रिस्क हो गयी। सारी दुनिया के ज्योतिष चुप होकर बैठ गये।

शादी-ब्याह भी कम हो गये या फिर उनमें भी संख्या सीमित हो गयी तो वहाँ की पटेलाई का धंधा चौपट हो गया! अब शादी में फूफा को बुलाने का नम्बर ही ना लगे तो रूसना-मटकना दूर की कौड़ी हो गयी। यहाँ भी काम चौपट!

मरण-मौत तक में जा नहीं पाते शर्माजी! कोरोना का डर सर पर चढ़कर जो  बोलता है! अब यह काम भी नहीं। बेचारे शर्माजी करे तो क्या करे? घर में आते-जाते समय चुपके से झांक लेते हैं कि कहीं झाड़ू-फटका उनकी ओर टकटकी लगाए देख तो नहीं रहा! लेकिन शर्माजी ने अभी हार नहीं मानी है, लगे हैं काम की तलाश में। शायद कोई काम मिल ही जाए तो इस निगोड़े झाड़ू-फटके की आँख से बच जाऊँ! देखते हैं किस शर्माजी को काम मिलता है और किसे झाड़ू-फटका अपनी चपेट में लेता है!

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