अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

डर पर पहला प्रहार

Written By: AjitGupta - Jul• 31•19

मैं एक बार महिलाओं के बीच बुलाई जाती हूँ, महिलाएं मुस्लिम थीं। वे अनपढ़ लेकिन कामगार भी थीं। महिलाएं कहने लगी कि हम तलाक-तलाक-तलाक से कब निजात पाएंगे? मेरे पास उत्तर नहीं था लेकिन समझ आने लगा था कि महिलाओं की यह तड़प एक दिन क्रान्ति का सूत्रपात अवश्य करेगी। मैं मूलत: चिकित्सक भी रही हूँ, देखती थी महिलाओं की आँखों में निराशा, उदासी और कहीं-कहीं मानसिक अवसाद। उनके अन्दर डर बढ़ता जा रहा था, वे आवाज नहीं उठा पा रही थीं। जब पहली बार शाहबानो ने आवाज उठाई थी तब राजीव गाँधी को कठमुल्लों ने अपने वोटों की ताकत से डरा दिया था और बेचारी शाहबानो बेचारी बनकर ही रह गयी थी। कैसा समाज है जहाँ पुरुष की चिन्ता की जा रही है लेकिन महिला की आवाज दबा दी जाती है। पुरुष को अल्लाह से बड़ा बना दिया जाता है और औरत गुलाम से बदतर बना दी जाती है। कल फिर संसद में देखा कि लोगों के मन में डर बसा है, कहीं इन पुरुषों के खिलाफ हम बोल गये तो हमें वोट नहीं मिलेंगे। कर दो महिला के प्रति अन्याय, हमारा क्या जाता है! आश्चर्य होता है ऐसे लोगों पर, जो महिला पर होने वाले अत्याचार को अनदेखा कर देते हैं! ऐसे समूह को समाज नहीं कहा जा सकता यह गिरोह मात्र हैं।

लेकिन देश-दुनिया ने जिस डर को हवा दी, उसी डर को मोदी ने नहीं माना। वह महिला के सामने ढाल  बनकर खड़ा हो गया। उसके अपने लोगों ने भी साथ छोड़ने की धमकी दी, परायों ने तो खुली बगावत कर ही दी। वोट ना मिले, सत्ता ना रहे लेकिन भयमुक्त समाज रहना चाहिये। वह राजा ही क्या जिसकी प्रजा भयमुक्त ना हो। भययुक्त करना तो राक्षसों का काम है, मानव तो सदा से भयमुक्त करता आ रहा है। 70 साल से देश का राजा भययुक्त था, वह खुद डरा हुआ था तो भला प्रजा को क्या भयमुक्त रख पाता।

कल मेरी आँखे भी मन थी, लग रहा था कि एक पिशाच जो हम सबकी ओर तेजी से बढ़ रहा था, थम गया है। हो सकता है कि यह पिशाच फिर अपना प्रभाव स्थापित करने के लिये और कोई क्रूरता करे लेकिन अब इस पिशाच के सामने एक महामानव खड़ा हो गया है। इस पिशाच का एक और अड्डा है, जहाँ इसने महिलाओं के साथ बच्चों को भी कैद कर रखा है। जन्नत कहते रहे हैं हम उसको और किताबों में कश्मीर नाम दर्ज है। इस डर को खत्म करने महामानव ने प्रण ले लिया है, इसबार कश्मीर को इस डर से मुक्त कराना है। एक बार कश्मीर से डर विदा हो गया तो मानो डर के पैर उखड़ जाएंगे। फिर पूरा देश भयमुक्त होगा।

यह प्रश्न किसी सम्प्रदाय का नहीं है, यह डर भी किसी विशेष वर्ग का नहीं है। क्योंकि जब शैतान डर को साथ लेकर मानवों को डराने लगता है तब सबसे पहला वार महिला और बच्चों पर ही करता है। इसलिये कल केवल मुस्लिम महिला आजाद नहीं हुई हैं, अपितु दुनिया की सारी महिलाएं भयमुक्त होने लगी हैं। उन्हें एक ऐसा महापुरुष दिखायी देने लगा है जो कह रहा है कि मैं दुनिया को अभय दूंगा।

कल का दिन हम सबके लिये दीवाली मनाने का दिन था, यह डर एक मजहब से दूसरे धर्म तक अपने पैर पसार रहा था। लोग कहने लगे थे कि हिन्दुओं को  भी महिला को बच्चे जनने की मशीन बना दो, उसे पर्दे में रखो, उसे पुरुष की अनुगामिनी बना दो। जहाँ-जहाँ भी शारीरिक  बल दिखाकर डर को समाज में स्थापित किया जाएगा वहाँ-वहाँ कमजोर पर पहला प्रहार होगा।

इसलिये आज का दिन अभय का दिन है। किसी राजनेता ने हिम्मत जुटाई और डर के सामने तनकर खड़ा हो गया। वह जानता है कि यह डर कैसे सम्पूर्ण मानवता को लील जाएगा इसलिये इसके पैर उखाड़ने ही होंगे। आज कोई खुश हो ना हो, लेकिन मैं खुश हूँ, मैंने उन 100 महिलाओं की आँखों में जो खौफ देखा था, बगावत देखी थी, उन्हें अभय का वरदान मिला है। मानो हम सबको अभय का वरदान मिल गया है। राखी का धागा फिर से बाहर निकल आया है, मोदी की कलाई पर सज गया है। महिला कह रही है कि तुम भाई के रूप में आए हो हमारी जिन्दगी में, हमारी रक्षा करने। मोदी ने एक कदम रख दिया है, बस आगे दूसरे कदम के लिये हम तैयार हैं। जैसे ही तीन गज धरती नापेंगे, भयमुक्त समाज का निर्माण हो जाएगा। अभी तो हम सब को बधाइयाँ, डर के आगे जीत की बधाइयाँ, भयमुक्त समाज की नींव की बधाइयाँ।

You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

Leave a Reply