दुर्भाग्य से आपको किसी डॉक्टर के पास जाना पड़ जाए, तो आपकी हालत तीन दिन पुराने खिले फूल सी हो जाती है। दिल की धड़कन, भैंस के गले में बंधी घण्टी की तरह हो जाती है, जो अपने आप बजती ही रहती है। इस पर डॉक्टर आपकी बात सुनने के स्थान पर आप से कहे कि “आप चुप रहिए, बस मुझे सुनिए” तो आपको कैसा लगेगा? भगवान और माँ के बाद डॉक्टर का ही स्थान होता है, जहाँ व्यक्ति अपने मन की सारी ही व्यथा निर्भीक बता देता है। लेकिन अभी आपका एक लक्षण भी नहीं सुना कि उसने आपको चुप करा दिया और बोले कि मुझे सुनिए और एक सूची पकड़ा दे कि ये सारे परीक्षण आपको कराने हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही वाकया हो गया। हमारे शहर में हृदय रोग का एक शिविर लगा, मुझे भी लगा कि दिल मजबूत है या नहीं, इसका परीक्षण करा लेना चाहिए। वैसे भी पुरुष लोग ताने मारते रहते हैं कि स्त्रियों में दिल होता तो उनके न हृदय रोग होता। बस हमने भी करवा डाला अपना परीक्षण। रिपोर्ट हाथ में आते ही हाथ के तोते उड़ गए। हमारे इतना बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रोल आएगा, यह तो सपने में भी नहीं सोचा था। जिन्दगी हो गयी सोच समझकर भोजन करते हुए और प्रभु ने हमें ही फटका दे दिया? खैर अब डॉक्टर की खोज की गयी। एक परिचित मिल गए, उनके घर जा पहुँचे। हमने बहुत सारे लक्षण मन में रट रखे थे कि सारे ही बताने हैं, कही कोई चूक न जाएं। लेकिन उन्होंने बोलने का अवसर ही नहीं दिया। भोजन से पहले एक प्लेट सलाद खाओ, मैंने कहा हम तो यही करते आए हैं। लेकिन उन्होंने हम तो—- पर ही हमें रोक दिया। और बोले कि नहीं मैं जो बोलता हूँ, बस उसे सुनो। मेरी मित्र ने मुझे सलाह दी थी कि इस परीक्षण को दोबारा करा लो, लेकिन मैंने सोचा था कि जब डॉक्टर के पास जा ही रहे हैं तो हो सकता है कि हमारी बात सुनने के बाद वे ही बोले की वापस जाँच करा लो। लेकिन हमें दुख देखना था और शायद समाज के दुख से वाकिफ भी होना था तो प्रभु का ही यह खेल था। एक दवा लिखकर वापस सात दिन बाद अस्पताल में ही मिलने का आदेश दे दिया।
खैर सात दिनों तक दवा लेने के बाद, हम अस्पताल पहुँचे, सोचा था आज तो पूछ ही लेंगे कि दवा का क्या असर है। लेकिन हमारी तकदीर भी कुछ खराब चल रही थी। हमारी गले में बंधी भैंस वाली घण्टी फिर बज गयी और इस बार उन्होंने उच्च रक्तचाप बता दिया। मैंने कहा कि मुझे आजतक उच्च रक्तचाप नहीं हुआ, अलबत्ता निम्न जरूर हो जाता है। इसबार अपने डॉक्टर पति की भी दुहाई दी कि ये ही हमेशा मेरा रक्तचाप नापते रहे हैं। अब वे बोले कि मुझमें और इसमें कुछ तो अन्तर है ही ना। झट से एक गोली और टिका दी। साथ ही जितनी जाँचे हो सकती हैं, वे सारी ही लिख मारी। अब हम अस्पताल के एक कक्ष से दूसरे कक्ष में चक्कर काटते रहे। कभी एक्सरे कराया जा रहा है तो कभी ईसीजी। सोनोग्राफी वाले की दुकान बन्द हो गयी थी और उसने तीन दिन बाद का समय दे दिया। इन कक्षों में कहीं भी विनम्रता नहीं थी, बस दुत्कार ही भरी थी। कारण भी था कि बेचारे सुबह से शाम तक हजारों रोगियों की लगातार जाँच ही करे जा रहे हैं। उन्हें भी पता है कि इनमें से अधिकांश की बेकार में ही जाँच हो रही है। वास्तविक रोगी तो गिने चुने ही हैं। लेकिन रोगी को चुप कराकर तो सारी जाँचों के माध्यम से ही निदान होगा ना? दो-तीन घण्टे की मशक्कत के बाद हमने हाथ खड़े कर दिए। पतिदेव से कहा कि आज के बाद सरकारी अस्पताल कभी नहीं आएंगे। अब जो भी जाँच बची हैं, उन्हें पैसे देकर ही कराएंगे। हम दोनों में समझौता हो गया और हमने उस मेडीकल कॉलेज वाले अस्पताल को अलविदा बोल दिया।
लेकिन कहीं और तो जाना ही था। तब ध्यान आया कि हृदय रोग का जो हमने शिविर लगाया था, उन्हीं डॉक्टर के पास चलते हैं। वे बिना बायपास और बिना स्टन्ट के चिकित्सा करते हैं। अब उनके सामने हम हाजिर थे। वे भी रिपोर्ट देखकर बोले कि आपको सिटी कोरोनरी एंजीयोग्राफी करवा लेनी चाहिए जिससे ब्लोकेज का पता लग जाए और हम चिकित्सा प्रारम्भ कर सकें। परिवार और मित्रों के सलाह मशविरे के बाद यह तय रहा कि इस परीक्षण में कोई खतरा नहीं है तो करवा लेनी चाहिए। उस सम्बंधी चिकित्सक से समय लिया गया और उन्होंने कहा कि रक्त की एक जाँच की आवश्यकता है। हमें लगा कि इस जाँच के साथ एक बार सारी जाँचे ही वापस करा लेनी चाहिए। इसबार हमने दूसरी जगह जाँच कराई। शाम को रिपोर्ट आनी थी और दूसरे दिन सुबह हमें एंजीयोग्राफी करानी थी। जैसे ही शाम को हमारे हाथ में रिपोर्ट आयी, हम तो सन्न रह गए। उसमें सारी रिपोर्ट ही एकदम सही थी, हम अचानक ही स्वस्थ हो उठे। हमारी तो बल्ले बल्ले हो गयी थी। कल तक हृदय रोग के सारे लक्षण ही हम में दिखायी दे रहे थे, अचानक ही वे सब डर के मारे पर्दे के पीछे चले गए। हमारा उत्साह बढ़ गया था। फिर बैठी सलाहकार समिति और यह निर्णय रहा कि आप स्वस्थ हैं और ना दवा की आवश्यकता है और ना ही किसी अन्य परीक्षण की। हमने ज्यूरी का कहना माना और रात को चैन की नींद सो गए।
सवाल बहुत सारे हैं, लेकिन हल हमारे हाथ नहीं हैं। प्रयोगशालाओं पर पड़ते बोझ के कारण परीक्षण ठीक नहीं होते। सारे ही चिकित्सकों में होड़ लगी है कि ज्यादा से ज्यादा परीक्षण करा लिए जाएं। लक्षणों पर कोई ध्यान नहीं देता, क्योंकि रोगी की बात सुनने में समय जाया होता है। बेचारा रोगी एक परीक्षण से दूसरे परीक्षण से गुजरता हुआ कोई न कोई बीमारी पाल ही लेता है। यदि केवल आवश्यक परीक्षण ही कराएंगे तो प्रयोगशालाओं पर अनावश्यक भीड़ नहीं होगी और समस्त परीक्षण कसौटी पर खरे उतरेंगे। पेरामेडिकल स्टाफ का व्यवहार भी विनम्रता पूर्वक होगा। इसलिए आज डॉक्टर को अपना व्यवहार बदलना होगा। इस संदर्भ में ढेर सारी बाते आपके और हमारे मन में रहती हैं, इसलिए ही विमर्श के लिए मैंने यहाँ लिखा है। मेरे अनुभव से यदि सीख सकें तो यही कि स्वस्थ बने रहने के लिए आवश्यक व्यायाम आदि करते रहें और चिकित्सकों के चंगुल में आने से बचते रहें।
ये अच्छा हुआ कि आप स्वस्थ निकलीं। 🙂
डाक्टरों की भी समस्या तो समझिये। उनको अपना मशीनों का खर्चा निकालना होता है। 🙂
आप स्वस्थ हैं- बस ऐसी ही बनी रहें,डाक्टर के जाने की ज़हमत उठाने की ज़रूरत ही क्या !
हमें तो एलोपैथी की दवाएं सूट ही नहीं करतीं कहीं की कसर कहीं निकाल लेती हैं .
अच्छा ही हुआ आपने फिर से जांचें करवा लीं…..
सब जगह व्यावसायिक सोच है….
I myself am a big sufferer of ‘Medical DOCTORS -Diagnostic Centres TRAP’.Since I have been in Delhi,I have witnessed and suffered extreme commercialization in the medical field.Now,I try to visit and consult only those doctors who are known to me and are trustworthy.Sometimes you feel like defaming those doctors and lab people who have cheated you or tried to cheat you.There has to be some strong policies and action against such practitioners who overlook the major symptoms and just go by lab reports or recommend tests which are unnecessary.
शालू लगता है सारा सिस्टम ही सड गया है, बस सभी पेसे के पीछे भाग रहे हैं।
एक और जांच करवा लेना सही होता है , गलत टेस्टिंग से कई बार गलतफहमियां हो जाती है !
आप स्वस्थ ही रहें , शुभकामनायें !
“बेचारा रोगी एक परीक्षण से दूसरे परीक्षण से गुजरता हुआ कोई न कोई बीमारी पाल ही लेता है” बिलकुल सही आँकलन.
बधाई आपको …
भगवान बचाए डाक्टरों से …. बस राम जी की कृपया बनी रहे.
आजकल जरा सी बुखार में ही सारे टेस्ट लिख देते हैं. पैथोलॉजी लैब से संथ-गाँठ होती है ड़ा. से .ये दोनों अपनी रोटी ज्यादा से ज्यादा चुपड़ी बनाने के चक्का रमें लगे होते हैं और परेशान होता है, बेचारा मरीज
सदा स्वस्थ रहने की शुभकामनाएं !!
Ajit ji krupya doctors ke naam to bata do,,,,hum bhi sawdhan ho sake
सबकी स्वस्थ रहने की ललक बनी रहे, डॉक्टर के पास न जाना पड़े तो ही अच्छा।
ऐसे डाक्टरों से बागवान बचाए … वैसे अगर डाक्टर क्रोनिक बिमारी का इशारा करे तो दूसरी सलाह जरूर ले लेनी चाहिए … अच्छा हुवा आपने ये सलाह ले ली …
स्वस्थ होने और सभी रिपोर्ट सामान्य आने की बधाई ! एक जोक है पुराना एक व्यक्ति के १०० साल के होने पर पत्रकारों ने उनसे इसका राज पूछा कि बीमार पड़ने पर क्या करते है तो उन्होंने बताया की डाक्टर के पास जाता था वो दवा जाँच लिखता था क्योकि उसे जीना था , जाँच करने वाला वो करता क्योकि उसे जीना था , मेडिकल वाला दवा देता क्योकि उसे जीना था , मै सारी दावा और रिपोर्ट फेक देता था क्योकि मुझे भी जीना था 🙂
अजित जी,
सिर्फ आप ही नहीं कितने ही डॉक्टर की कमाई करने और जांच वाले लोगों से कमीशन मिलाने के चक्कर में कई कई बार जांचें लिख देते हैं . अब सब व्यवसायी बन चुके हैं , भगवन का रूप अभी भी शेष है लेकिन वह तो दिया लेकर खोजने पर ही मिलेंगे . आप स्वस्थ है और स्वस्थ ही रहें मेरी यही कामना है. फिर भी साल में एक बार रूटीन चेक अप करवा लेना अपने स्वास्थ्य के लिए बहुत सही होता है लेकिन सरकारी अस्पताल में नहीं .
सरकारी डॉक्टर :
एक महिला रोगी को देखकर मैंने कहा — बहनजी , दवा खरीद लेंगी ?
महिला बोली — जी खरीदनी होती तो आपके पास क्यों आते !
—- डाकटर के पास न जाते।
डाकटर या डॉक्टर — फैसला आपका ! 🙂
बहुत शुभकामनाएं आपको, आजकल मेडिकल प्रोफ़ेशन का कार्पोरेटाईजेशन हो चुका है, अब इनकी कमाई के हिसाब से शेयर मार्केट में इनके भाव ऊंचे नीचे होते हैं, तब हम यह सोचें कि ये परमार्थ करेंगे, याह हमारी गल्ती है.
आजकल इस पेशे में अधिकतर लोग ऐसे हैं जो हाथ आये शिकार को लौटकर नही जाने देते.
रामराम.
बढ़ती आवादी की वजह से बहुत से बाह्य कारण जिम्मेदार है किन्तु मुख्य वजह इसका लालच की हद तक व्यावसायीकरण है !बस एक बार मुर्गा फंस जाए। हम तो एक रिश्तेदार के लिए मेदांता जैसे अस्पतालों में यह भयावह स्थिति देख चुके है !
खुबसूरत संस्मरण और बेहतरीन जानकारी।
यहाँ तो उलटा है , बीमारी लेकर जाओ तो डॉक्टर कहता है कुछ नहीं है, क्रोसिन खा लो :):).टेस्ट करवाने के लिए बिमारी को बड़ा चढ़ा के बताना पड़ता है.
आप स्वस्थ है जानकार अच्छा लगा ।
आज डॉक्टरी भी एक व्यवसाय हो गया है. महंगी मशीनों की कीमत और खर्चा अनावश्यक टेस्ट के बिना कैसे निकल सकता है. खुशी है कि आप पूर्णतः स्वस्थ हैं.
लेकिन सभी डॉक्टर एक जैसे नहीं होते. मैंने भी एक बार शौकिया अपने सभी टेस्ट कराये तो डॉक्टर ने कहा कि आपको हार्ट प्रॉब्लम है एंजियोप्लास्टी तुरंत करनी होगी.आप का हार्ट केवल २५% काम कर रहा है. एक बहुत नामी अस्पताल में भी फिर से सभी टेस्ट कराके यही सलाह दी गयी. एक अन्य प्रसिद्द डॉक्टर से मिला उन्होंने कहा कि सर्जरी या एंजियोप्लास्टी की अभी कोई ज़रुरत नहीं, मैं दवाओं से ही कोशिश करता हूँ. आज १५ साल हो गए निरंतर दवा खाते हुए और अभी तक सब ठीक है. दवा ज़रूर काफ़ी खानी पड़ती हैं.