अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

दे थप्पड़ और दे थप्पड़

Written By: AjitGupta - Apr• 12•18

राष्ट्रमण्डल खेलों का जुनून सर चढ़कर बोल रहा है और लिखने के लिये समय नहीं निकाल पा रही हूँ, लगता है बस खेलों की यह चाँदनी चार दिन की है तो जी लो, फिर तो उसी अकेली अँधेरी रात की तरह जिन्दगी है। कल शूटिंग के मुकाबले चल रहे थे, महिला शूटिंग में श्रेयसी सिंह ने स्वर्ण पदक जीता। स्वर्ण पदक मिलता इससे पहले ही खेल बराबरी पर थम गया और अब बारी आयी शूट-ऑफ की। इस समय किसी भी खिलाड़ी के दिल की धड़कने बढ़ ही जाती है लेकिन कौन अपने दीमाग को संतुलित रख पाता है, बस वही जीतता है। आखिर श्रेयसी अपने आप को संतुलित रखने में सफल हो गयी और स्वर्ण पदक पर कब्जा कर लिया। दूसरा गेम पुरुषों के बीच था, भारत के दो खिलाड़ी आगे चल रहे थे लेकिन जैसे-जैसे वे पदक के नजदीक आ रहे थे उनका धैर्य चुकता जा रहा था और मित्तल तो आखिरी क्षणों में संतुलन ही खो बैठे और कांस्य से समझौता करना पड़ा। अधिकतर खेलों में दीमाग का संतुलन रखने में महिला खिलाड़ी पुरुषों से अधिक सफल रहीं।
आम जीवन में हम सुनते आये हैं कि महिला जल्दी धैर्य खो देती हैं जबकि पुरुष हिम्मत बनाए रखता है। लेकिन इन खेलों को देखकर तो ऐसा नहीं लग रहा है। महिला ज्यादा सशक्त दिखायी दे रही हैं। जैसै-जैसे महिलाएं दुनिया के समक्ष आता जाएंगी, उनके बारे में बनायी धारणाएं बालू के ढेर की तरह बिखरती जाएंगी। यहाँ भी तुम्हें धैर्य नहीं खोना है, आधी दुनिया तुमने पार कर ली है बस अब बाकी की आधी दुनिया शीघ्र ही तुम पार कर लोगी फिर यह दुनिया वास्तविक दुनिया बनेगी।
मेरे कार्यस्थल के एक साथी थे, गुटका खा रहे थे तो मैंने टोका, वे बोले की पुरुष हूँ तो कोई ना कोई नशा तो करूंगा ही। कोई गुटका खा रहा है, कोई सिगरेट, कोई शराब तो कोई भांग और अब तो जहरीले नशे भी उपलब्ध हैं। नशा नहीं भी है तो गालियों का सहारा लेते हैं या हिंसा का। तुर्रा यह कि पुरुष हैं। लेकिन सारे ही नशे आपकी मानसिक स्थिति के परिचायक हैं। दुनिया में प्रतिशत देख लो, महिलाएं नशे के लिये कितना नशा करती हैं और पुरुष कितना? एक हास्य कलाकार हैं – अमित टंडन, वे किस्सा सुना रहे थे कि लड़का केवल पैदा होता है, घर वाले भी कहते हैं कि बस तू तो पैदा हो जा, इतना ही बहुत है। लेकिन लड़की को सिखाते हैं कि यह सीख ले और वह सीख ले नहीं तो पता नहीं सामने वाला कैसा मिलेगा! लड़के को कहते है कि देख कहना मान ले नहीं तो काला कुत्ता आ जाएगा। जब लड़का समझने लायक होता है और 7-8 साल का हो जाता है तब काले कुत्ते को देखता है और कहता है कि यह काला कुत्ता था, जिससे मुझे डराया जाता था कि काला कुत्ता आ जाएगा और दे थप्पड़ और दे थप्पड़, कुत्ते को मार देता है। जब लड़की की शादी होती है और 6 महिने निकल जाते हैं तो कहती है यह था वो सामने वाला कि यह सीख ले और वह सीख ले! फिर दे थप्पड़ और दे थप्पड़। दुनिया आँखे खोलो, नशे से बाहर आओ, महिलाओं के साथ रहना सीखो और इस दुनिया को सुन्दर बनाने में अपनी ऊर्जा लगाओ। जीवन को खेल की तरह लो और अपना संतुलन बनाए रखो।

You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

Leave a Reply