अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

ना मेल हैं और ना ही फीमेल – संस्‍मरण

Written By: AjitGupta - Mar• 12•10

हम ट्रेन में अपनी आरक्षित बर्थ पर पसर कर इत्मिनान से बैठ चुके थे। यह उस जमाने की बात हैं जब आरक्षण के लिए स्‍टेशन पर जाकर लाइन लगानी पड़ती थी। आरक्षण मिलने पर ऐसा ही जश्‍न मनता था जैसे आज आईपीएल की टिकट के लिए मनाया जा रहा है। हमने भी हमारे मित्र के कर्मचारी के द्वारा आरक्षण कराया था। अभी हमने दो घड़ी चैन के भी नहीं बिताए थे कि टिकट कलेक्‍टर महोदय आ गए। उन्‍होंने हम चारों की और घूरकर देखा। हम दो दम्‍पत्ति साथ में यात्रा कर रहे थे और हमारा टिकट एकसाथ ही बना था। उनका घूरना मुझे कुछ रहस्‍यमय लगा, मैं कुछ समझू इससे पूर्व वे आराम से हमारी बर्थ पर बैठ चुके थे। अचानक जैसे वज्रपात हुआ हो वे उसी अंदाज में हम से बोले कि इस टिकट में तीन पुरुष और एक महिला हैं। आप यहाँ दो पुरुष और दो महिलाएं हैं? अब तक हमारी भी बत्ती जल चुकी थी। हम पलक झपकते ही सारा माजरा समझ गए। हमने टिकट देखी, हमारे नाम के आगे मेल लिखा था। हमने उन महाशय को समझाने का प्रयास किया कि भाई यह मेल गल्‍ती से लिख दिया गया है और यह गल्‍ती हमारे नाम के कारण हुई है लेकिन वे तो आज मुर्गा काटने की फिराक में थे। शायद मुर्गा होता तो कट भी जाता लेकिन मुर्गी कटने को तैयार नहीं थी। मैं अनुभवी थी, घाट-घाट का या यू कहूं कि रेल-रेल का सफर किया था। उन्‍होंने तब तक रसीद बुक निकाल ली और बोले कि पेनल्‍टी सहित नया टिकट लेना पड़ेगा। हम बोले कि पागल हुए हैं क्‍या? हम तो पैसे नहीं देंगे, तुम्‍हारी इच्‍छा हो वो कर लो। वे बोले कि कोई बात नहीं, आप विचार कर लें, मैं जब तक अन्‍य टिकट देख कर आता हूँ। वे शायद सोच रहे होंगे कि यदि अन्‍य जगह मुर्गे हलाल हो गए तो इस मुर्गी को छोड़ दूंगा नहीं तो आज मेरे हाथों से तो बचकर जा नहीं सकती। कोई बात नहीं झटके का नहीं तो हलाली का ही खाएंगे, जल्‍दी क्‍या है? हम निश्चिंत हो गए, सोचा कि शायद समझ चुके हैं। लेकिन वे एक घण्‍टे बाद वापस आ धमके। अब हमने भी धमका दिया कि जाओ जो करना हो वो कर लो।

कुछ ही देर में चित्तौड़ स्‍टेशन आ गया और तब तक रात्रि के 9 बज चुके थे। रेल का सफर करते-करते हमें कुछ नियम-कायदों का ज्ञान हो चुका था। मैंने अपने पतिदेव से कहा कि स्‍टेशन मास्‍टर से जाकर शिकायत करो कि टीटी परेशान कर रहा है। लेकिन स्‍टेशन मास्‍टर ने तो उन्‍हें ही हिदायत दे दी कि अरे साहब 50 रूपए दे दीजिए, मामला शान्‍त हो जाएगा। उन टीटी ने भी आज पैसा वसूलने की दृढ़ प्रतिज्ञा कर रखी थी और चित्तौड़ में तो हम क्षत्राणी बन चुके थे। वे एक पुलिस वाले को ले आए, मैंने उनसे पूछा कि कैसे आए? पुलिस वाला बोला कि सुना है कि डिब्‍बे में कुछ गलत हो रहा है। मैंने उसे हड़काया, सुनी सुनायी बात पर घुसे चले आते हो, बाकि तो कहीं जाते नहीं। वो पता नहीं कैसे वापस उल्‍टे पैर ही मुड़ गया। तब तक हमारा धैर्य समाप्‍त हो चुका था और हमारे अन्‍दर की क्षत्राणी जाग चुकी थी। टीटी महाशय आए और वे बर्थ की आड़ में खडे हो गए। हमारे साथी हमें पैसे देकर मामला रफा-दफा करने की सलाह दे रहे थे, हमने अपने साथियों से कहा कि आप तीनों का आरक्षण दुरस्‍त है तो आप प्रेम से सो जाओ। मैंने बर्थ के नेपथ्‍य से उन टीटी महाशय को भजन सुनाने प्रारम्‍भ किए। मैंने कहा कि भैया तुम्‍हारे चार्ट में मेरे नाम के आगे मेल लिखा है तो वो दुरस्‍त है। यह मेरी स्‍वतंत्रता है कि मैं क्‍या वेशभूषा पहनू। और तुम्‍हारी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं ना मेल हूँ और ना ही फिमेल। मैं कभी मेल लिखा देती हूँ और कभी फिमेल। कपड़े भी कुछ भी पहन लेती हूँ। अब बताओं क्‍या करोगे। रात को नो बजे बाद तुम किसी महिला यात्री को रेल से उतार नहीं सकते तो अब मस्‍त रहो। आज कोई भी मुर्गा नहीं कटते देख बेचारा टीटी बड़ा निराश हुआ और हम चादर ओढ़कर सो गए।

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23 Comments

  1. जी.के. अवधिया says:

    सुन्दर संस्मरण!

    काश लोग "ले दे कर रफा दफा करने" वाली मानसिकता से उबर पाते!

  2. महेन्द्र मिश्र says:

    बहुत रोचक संस्मरण …आभार .

  3. Arvind Mishra says:

    यह हुयी न कोई बात -ग्रेट !

  4. अन्तर सोहिल says:

    हा-हा-हा
    जय हो चित्तौड की क्षत्राणी जी की

    प्रणाम

  5. सतीश सक्सेना says:

    वाह ! मज़ा आ गया आपका संस्मरण सुनकर, उम्मीद है कि लोग आपसे हँसते हुए भी कुछ सीख पायेंगे !

  6. Mithilesh dubey says:

    हाहाहाहा मजेदार वाक्या रहा , महिलाओं से कोई जीत थोड़ी ना सकता है हाहााहाहाहा । बहुत बढ़िया लगा पढ़कर

  7. खुशदीप सहगल says:

    अजित जी,
    ऐसे ही आप ट्रेनों पर छापेमारी करते रहा करें, सारे टीटी दुरूस्त हो जाएंगे…वो वाला टीटी तो अब भूल कर भी किसी महिला को परेशान करने की जुर्रत नहीं करेगा…

    जय हिंद…

  8. बी एस पाबला says:

    वाह! क्या कहने मुर्गी के 🙂
    बेचारा टीटीई!

  9. ताऊ रामपुरिया says:

    यह मेरी स्‍वतंत्रता है कि मैं क्‍या वेशभूषा पहनू। और तुम्‍हारी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं ना मेल हूँ और ना ही फिमेल। मैं कभी मेल लिखा देती हूँ और कभी फिमेल। कपड़े भी कुछ भी पहन लेती हूँ। अब बताओं क्‍या करोगे। रात को नो बजे बाद तुम किसी महिला यात्री को रेल से उतार नहीं सकते तो अब मस्‍त रहो।

    वाह ये हुआ ताऊ लोगों का सही इलाज.

    रामराम.

  10. अक्षिता (पाखी) says:

    बेहतरीन लिखा आपने …खूबसूरत संस्मरण!

    ______________

    "पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".

  11. डॉ टी एस दराल says:

    हा हा हा ! यह भी खूब रही। सही साहस दिखाया आपने ।

  12. M VERMA says:

    मजेदार
    आज कोई भी मुर्गा नहीं कटते देख बेचारा टीटी बड़ा निराश हुआ और हम चादर ओढ़कर सो गए।'
    बेचारे को आपने उसके हक (!) से वंचित कर दिया.

  13. shikha varshney says:

    हा हा हा ..जय हो…बहुत मजेदार और आपको सलाम…वैसे आप ठीक कह रही हैं ..इस तरह कि गलतियों पर बहुत परेशां करते हैं टी टी और यात्री भी बेचारे परेशानियों से बचने के लिए पैसे दे देते हैं…

  14. निर्मला कपिला says:

    हा हा हा हा हा वाह बहुत अच्छा ,रोचक संस्मरण है इन लोगों को ऐसे ही निपटा जाना चाहिये। फिर आपसे तो यही उमीद है जब तक हम लोग रफा दफा करते रहेंगे इनके साहस भी बढते रहेंगे। शुभकामनायें

  15. डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक says:

    संस्मरण रोचक होने के साथ-साथ शिक्षप्रद भी है!

  16. लता 'हया' says:

    शुक्रिया ,
    देर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
    उम्दा पोस्ट .

  17. मनोज कुमार says:

    बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 13.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

  18. rashmi ravija says:

    हा हा हा आप तो बड़ी दिलेर निकलीं…वो पुलिस वाला भी कभी भूल ना पाया होगा,आपको…ये ले देकर रफा दफा करने वाली मानसिकता हमें छोडनी ही पड़ेगी…वरना सुधार की कोई गुंजाईश नहीं रहेगी

  19. वन्दना says:

    hahahaha……..bahut hi rochak sansmaran……mazaa aa gaya.

  20. शरद कोकास says:

    बहुत रोचक संस्मरण है और प्रेरनास्पद भी । ग़लत बात का इसी तरह हिम्मत के साथ मुकाबला करना चाहिये ।

  21. Dr. Smt. ajit gupta says:

    आप सभी ने पोस्‍ट पर अपनी टिप्‍पणी की इसका आभार। हम तो बहुत ही जीवट वाले थे बस क्‍या करें उम्र के साथ-साथ समझौतावादी होते जा रहे हैं।

  22. sangeeta swarup says:

    आपका ये संस्मरण बहुत बढ़िया लगा….लिखने कीशैली भी बहुत रोचक है..

    प्रेरणादायक संस्मरण है…बधाई

  23. Santosh chaurasiya says:

    Fimale ke jagah male go gym hai kya kre sir

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