अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

पुरुषों की स्‍वतंत्रता

Written By: AjitGupta - Dec• 22•12

 

अभी एक टिप्‍पणी पढ़ी, “शादी के बाद भी आप हँस रहे हैं, यह क्‍या कम है?” प्रतिदिन ऐसी ही ढेरों बातों से हमारा साक्षात्‍कार होता है। विवाह को बंधन, स्‍वतंत्रता छीननेवाला, गुलाम बनाने वाला आदि आदि कहा जाता है। पत्‍नी सभी के लिए मुसीबत होती है। मैं एक विवाह समारोह में थी, पति अपनी इच्‍छा से मिठाई खा रहे थे, मैंने उनके मिठाई खाने पर कभी भी आपत्ति नहीं की। क्‍योंकि मेरा मानना है कि नियन्‍त्रण स्‍वप्रेरित होता है। लेकिन फिर भी उस दिन मुझे अनेक लोगों के ताने सुनने पड़े, “आप मिठाई खा रहे हैं, घर जाकर आपकी खैर नहीं”, “भाभीजी खाने दो ना इनको, आप ज्‍यादा डांटना नहीं” आदि आदि। स्थिति ऐसी हो गयी कि आप सफाई भी नहीं दे सकते, क्‍यों‍कि अक्‍सर पत्नियां टोकती भी रहती हैं तो लोगों के लिए यह मजाक का विषय बन गया है। लेकिन जब व्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता को लेकर मजाक किया जाता है और बेचारी पत्‍नी को निशाना बनाया जाता है, पीहर जाने पर स्‍वतंत्रता दिवस मनाने की बात आती है, तब हँसी कम रोना ज्‍यादा आता है। पत्नियों के बिना पानी तक जिनसे नहीं पीया जाता वे पत्‍नी के बगैर खुशियां मनाने की बात करते हैं! विवाह के पूर्व लड़कों की क्‍या स्थिति रहती है, आइए देखते हैं कुछ बानगी।

युवा होते लड़के की घर में क्‍या हैसीयत होती है? उसके पास एक कमरा तक नहीं होता है। वह अक्‍सर ड्राइंगरूम में ही रात को सोता है। छोटे-मोटे कामों के लिए उसे ही घर में दौड़ाया जाता है। ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब उसे माता-पिता से डांट नहीं पड़ती। उसे हमेशा बेवकूफ, नाकारा ही समझा जाता है। कपड़े धोना, खाना बनाना, साफ-सफाई रखना उसे आता ही नहीं है। कभी कपड़ों को कहाँ फेंकता है तो कभी कहाँ। मैं एक दिन मेरे नजदीकी रिश्‍तेदार के बच्‍चे के कमरे में गयी, जो उस समय कोचिंग के लिए दूसरे शहर में कमरा लेकर रह रहा था। बाथरूम में नेकर ऐसे पड़ा था, जैसे उसे खोला गया था। दोबारा पहनना हो तो बस उसमें सीधे ही पैर डाल दो। गन्‍दगी का तो कहना ही क्‍या था? मैं अपने बेटे के हॉस्‍टल भी गयी, वहाँ भी गन्‍दगी का ऐसा ही हाल था। वर्तमान पीढ़ी के केरियर की चिन्‍ता तो माता-पिता करते हैं लेकिन शायद ही ऐसा कोई घर हो, जहाँ बच्‍चों को “आप” कहकर बुलाया जाता हो। सम्‍मान तो उनका शायद ही कभी होता हो, प्रत्‍येक बात में कहा जाता है कि अभी तुम छोटे हो, अपनी टांग मत अड़ाओ।

ऐसी परिस्थितियों की मार झेल रहे युवक जब विवाह योग्‍य होते हैं और पहली बार ससुराल जाते हैं तक उनका स्‍वागत बड़ी गर्मजोशी से होता है। उन्‍हें अपने लिए सम्‍मानसूचक शब्‍द “आप” भी तभी सुनायी देता है। प्रत्‍येक चीज के लिए उनका ध्‍यान रखा जाता है। ऐसे व्‍यवहार देखते ही लड़का बौरा जाता है, वह रातो-रात बड़ा हो जाता है। अपने घर आते ही फिर उसकी खिल्‍ली उड़ायी जाती है, “ससुराल जा आया, ढंग से तो खाना खाया था ना, भुक्‍कड़ की तरह टूट तो नहीं पड़ा था” आदि आदि। धीरे-धीरे लड़के को ससुराल अच्‍छा लगने लगता है, क्‍योंकि वहाँ उसे सम्‍मान मिल रहा है। विवाह हो जाता है, अब एक अदद पत्‍नी सेवा में तैयार मिलती है। नहाने जाओ तब भी कपड़े तैयार, तोलिया तक वह देती है। जिस लड़के के पास अपना कमरा तक नहीं था अब उसका कमरा भी है और  एकदम करीने से सजा रहता है। खाने में जो उसे पसन्‍द हो, बस वही बनता है। सारे ही नखरे पूरे होने लगते हैं। कल तक जो दो कौड़ी का था आज अनमोल हो जाता है। धीरे-धीरे सफाई का महत्‍व समझ आने लगता है और धूल का कण देखने पर ही पत्‍नी को इशारा करना नहीं भूलता, वह भी मेहमानों के सामने। मेहमानों को और रिश्‍तेदारों को हरपल बता देना चाहता है कि देखो कैसी कामचोर पत्‍नी है मेरी। जब  पत्‍नी मेहमानों के जाने के बाद पूछती है कि यही बात बाद में नहीं की जा सकती थी, तो मासूमियत से बोल देता है कि अरे ध्‍यान ही नहीं रहा। ध्‍यान नहीं रहा या केवल यही ध्‍यान रहा कि कैसे अपनी पत्‍नी को कमतर बताऊँ। पति विवाह के बाद क्‍या-क्‍या गुल खिलाते हैं, यह सब जानते हैं, लम्‍बी फेहरिश्‍त है। यदि उनका आकलन किया जाये तो बचपन का हीनबोध उसका कारण रहता है। जितना नाकारा युवावस्‍था में घोषित होता है, उतना ही समझदार और योग्‍य बनने का दिखावा करता है। पत्‍नी के माध्‍यम से सारे घरवालों के लिए मिसाल बनना चाहता है।

अब मूल बात पर आइए। ऐसे पति, पत्‍नी के घर से बाहर जाने को स्‍वतंत्रता दिवस कहें, तो आप उसे क्‍या कहेंगे? यही ना कि जिन्‍हे कल तक नाक सिड़कना भी नहीं आता था आज वे पत्‍नी पीड़ित होने का ढोंग कर रहे हैं। मुझे पत्‍नी से डर लगता है, मुझे पत्‍नी मारेगी आदि जुम्‍ले उछालता रहता है। अरे जिसे वास्‍तव में पत्‍नी से डर लगता है, उसकी हिम्‍मत ही नहीं होती कि वह सार्वजनिक रूप से घोषित करे कि उसे डर लगता है। वह हमेशा कहेगा कि मेरी पत्‍नी बहुत अच्‍छी है। जो खाते भी हैं और गुर्राते भी हैं वे ही इसप्रकार के जुम्‍ले बाजार में फेंकते हैं। जब पत्नियां मैके जाती हैं, तब पतियों को रोटियों के लाले पड़ते हुए रोज ही देखा जा सकता है। घर में गन्‍दगी का साम्राज्‍य आने लगता है। एक-दो दिन दोस्‍तों के साथ पार्टी वगैरह करने के बाद जल्‍दी ही वास्‍तविक जमीन दिखायी दे जाती है। कितने ऐसे पति हैं जो इस वास्‍तविकता को स्‍वीकार करते हैं और कभी भी ऐसे जुम्‍लों का प्रयोग नहीं करते? जरा हाथ खड़े करिए। किसी एक वर्ग के लिए इसप्रकार के व्‍यवहार के कारण महिलाओं के प्रति सम्‍मान-भाव में कमी आती है और फिर समाज में तनाव बढ़ता है। इसलिए आज समय आ गया है कि पुरुषों को अपनी मर्यादा समझनी चाहिए और समाज में बढ़ रहे असहिष्‍णुता को कम करने में सहयोग करना चाहिए। वैसे नयी पीढ़ी के युवक अब सारे ही काम स्‍वयं करने लगे हैं तो पत्‍नी की आलोचना और इसप्रकार के जुम्‍ले भी नहीं फेंकते। क्‍योंकि वे सच को समझने लगे हैं। इसलिए जो अभी तक सच को नहीं समझ पा रहे हैं या समझकर भी स्‍वयं के हीनबोध का शिकार है, वे जल्‍दी ही सम्‍भल जाएं तो समाज के लिए अच्‍छा ही रहेगा।

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18 Comments

  1. आपके इस विचार से मैं बिलकुल सहमत हूँ
    मैं भी अपने आसपास ये ही माहोल देखा है
    पर हाँ अपने हाथ खड़े करने के लिए कहा तो वो तो मैं
    कर सकता हूँ क्यूँ की मैं अभी अविवाहित हूँ पर जब भी माँ
    कहती हैं की बस देती शादी होती ही जो तुम आज उनके बारे मैं कह रहा है कल तुम खुद उनको दोहराओगे हर बार शादी न करने का फैसला होता है मेरा
    पर मैं शादी से भाग नहीं रहा हूँ
    सचाई तो हम सब को पता है पर हम उन सचाई को अनदेखा करते हैं
    जितनी बच्चों की जिमेदारी होती है उतनी ही माता – पिता की भी
    मेरी नई रचना पर जरुर नजर रखें
    खूब पहचानती हूँ मैं तुम को
    http://dineshpareek19.blogspot.in/

  2. अन्तर सोहिल says:

    शुरू के दो पैरा में काफी हद तक सच्चाई होने के बावजूद मैनें इसे व्यंग्य की तरह मजा लिया। आखिरी में तो आपने नकाब खींच लिया मेरे जैसों का,
    मैं हाथ खडा नहीं कर पा रहा

    प्रणाम

    • AjitGupta says:

      अन्‍तर सोहिल जी, चलो आपने ईमानदारी से स्‍वीकार तो किया।

  3. अरे जिसे वास्‍तव में पत्‍नी से डर लगता है, उसकी हिम्‍मत ही नहीं होती कि वह सार्वजनिक रूप से घोषित करे कि उसे डर लगता है।

    बिलकुल सही ….विचारणीय मुद्दा रोचक शैली में प्रस्तुत किया ।

  4. t s daral says:

    पति पत्नि की नोंक झोंक को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए।
    कई हास्य कवियों का गुजारा तो पत्नि पर कविता लिख कर ही चलता है। 🙂

  5. CA ARUN DAGA says:

    रोचक शैली ,इस व्यंग्य में सच्चाई है

  6. anju(anu) says:

    वाह …क्या सार्थक सोच के सच आपने आज के सच को सबके सामने रखा …इस विषय पर मैं भी बहुत दिन से सोच रही थी कि इस इन्टरनेट की दुनिया के दोस्त (सभी पुरुष )हर वक्त अपनी बीबी की बुराई कर उसके व्यवहार को लेकर अलोचना क्यों करते है ? क्या वो सच में अपनी बीबियों से इतने दुखी है कि २३…२४ की शादी के बाद भी उसकी सोच नहीं बदली ?
    पर आपकी इस पोस्ट ने उन्हें सच का आईना दिखा दिया है …..सादर

  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-12-2012) के चर्चा मंच-1102 (महिला पर प्रभुत्व कायम) पर भी की गई है!
    सूचनार्थ!

  8. हम अपने जीवन में बहुत से काम आदतन करते हैं। पति-पत्नी के चुटकुले हर समय-समाज में चलते होंगे। उनमें लोग अपने भी जोड़ते जाते हैं। जीवन साथियों के बारे में चुटकुलों की भरमार हर समाज में होती है। मै तो मानता हूं कि किसी का भी जीवन सुखमय रहा है तो उसमें उसके जीवन साथी की अहम भूमिका रहती है। बाकी हंसी-मजाक तो चलता रहता है। अपने कुछ किस्से मैंने इस पोस्ट में लिखे हैं http://hindini.com/fursatiya/archives/1992

  9. आज तो मेरा खड़े होकर तालियाँ बजाने को मन कर रहा है ..क्या सफाई और सटीक ढंग से एकदम पते की बात कही है आपने , जैसे आइना सामने रख दिया. गज़ब अजीत जी गज़ब .

  10. आप की बात बिलकुल सही है!

  11. सच तो यही है जो आपने बयान किया … पुरुषों को तो आइना दिखला दिया …
    पर ये बातें मजाक तक ही रहें तो अच्छा है … वास्तविक जीवन में आदर सामान दोनों तरफ से जरूरी है …

  12. नई पीढ़ी इस मामले में काफ़ी हटकर है। अधिकतर मामले बराबरी का व्यवहार करते दिखते हैं, बचे हुये मामलों में अधिकतर तो पति ही भीग.. बिल्ल… की तरह व्यवहार करते दिखते हैं।

  13. दांपत्य जीवन में इस प्रकार के खट्टे -मीठे बयान रोचकता और जीवन्तता लाते हैं , तब तक तो ठीक है !बाकी तो रिश्ता दोतरफा सम्मान और प्रेम से ही निखरता है !

  14. अधिक आदर में भी कृत्रिमता दिखती है, संभव है यही कारण हो सर्वाधिक मजाक विवाह का बनता है।

  15. bhaskarbhumi says:

    अजित जी नमस्कार
    पूर्व में हुई चर्चा के अनुसार आपके ब्लाग ‘अजित गुप्ता का कोनाÓ के लेख ‘पुरूषों की स्वतंत्रताÓ को भास्कर भूमि में प्रकाशित की गई है। इस लेख को आप भास्कर भूमि के ई पेपर में ब्लॉगरी पेज नं. 8 में देख सकते है। हमारा ई मेल एड्रेस है।www.bhaskarbhumi.com
    सधन्यवाद
    नीति श्रीवास्तव

  16. गजब का लिखा आपने और आपकी बात सही भी लगती है, पर मेरी अपनी राय यही है कि ज्यादातर लोग पति पत्नि के चुटकलों को खुद पर फ़िट करके आनंद लेते हैं. यह गृहस्थी की गाडी है जो इक तरफ़ा नही चल सकती.

    रामराम.

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