अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

बता तू किसका भूत है?

Written By: AjitGupta - Oct• 01•18

आज सुबह मैं वेन्टीलेटर पर जाते-जाते बची! अभी ढंग से मुँह धोया भी नहीं था कि आदतन अखबार तलाशने के लिये निकल पड़ी, अखबार को हाथ में लेते ही लगा कि अब साँस रूकी और अब साँस रूकी। अखबार के हर पन्ने में हाहाकार था, कहीं रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ थी तो कहीं केमिकल युद्ध की तैयारी। कहीं पुलिस ने राह चलते युवक को मार दिया था तो कहीं बलात्कार था। मैं एकदम से घबरा गयी, साँस उखड़ने लगी, दौड़कर कमरे में आयी और जैसे-तैसे टीवी का रिमोट ढूंढा। शुक्र था की वह आसानी से मिल गया, झट से टीवी ऑन किया। जैसे ही डीडी न्यूज दिखायी दी, देश में अमन-चैन दिखने लगा। तब जाकर साँस आयी। फेफड़ों को जोर से ऑक्सीजन के लिये फुलाया, भरपूर ऑक्सीजन ली और अखबार को दूर फेंक दिया। लेकिन अखबार का खौफ अभी तक बना है, चारों तरफ हाहाकार दिख रहा है, अफवाहों का बाजार गर्म है। मेरे मन का विश्वास डोलने लगा है और अफवाहें मेरे दीमाग पर हावी होने लगी हैं। तभी किसी की सलाह याद आ गयी कि कैसी भी समस्या हो, फला ओझा के पास जाओ, समस्या दूर हो जाएगी। जब ओझा के पास गयी तो देखा कि वहाँ भीड़ लगी है, उसकी पेटी धन से भरती जा रही है और लोग कह रहे हैं कि बस अब तो ओझा ही पार लगाएगा।
अफवाहे और हॉरर, अखबार क्या और क्या मीडिया फैलाने में लगी हैं, जनता का एक-एक सूत विश्वास समाप्त होना चाहिये। जब चिकित्सक से विश्वास टूट जाएगा तो ओझा की ओर इशारा कर दिया जाएगा। दवा तो डॉक्टर की ही चलेगी लेकिन विश्वास ओझा का चलेगा। डॉक्टर ने कहा कि महामारी के किटाणु हमारे देश के नहीं है, बाहर से आए हैं। इन्हें खत्म करना होगा। लेकिन लोग अड़ गये कि नहीं ये किटाणु खत्म नहीं कर सकते, हमारे ओझा का धंधा इसी कारण फल-फूल रहा है। एक तरफ अखबार हाहाकार मचा रहा है तो दूसरी तरफ ओझा की ताकत है जो संक्रमण को रोकने नहीं देती। पिस रहे हैं हम, जो रोज सुबह होते ही अखबार के दर्शन कर लेते हैं और अपनी हालत पतली करते रहते हैं। पानी 20 रू लीटर बिक रहा है उसके लिये कभी हाय-तौबा नहीं हुई लेकिन पेट्रोल के भाव बढ़ गये तो जमीन आसमान एक हो गये! किसने कानून तोड़ा, किसने कानून को हाथ में लिया, यह कानून ही तय करेगा लेकिन यह मसले भी जनता के दरबार में परोस दिये गये हैं कि तू भरपूर डर ले। सारा दिन रोता फिर की हाय मार डाला पुलिस वाले ने। उसे मारा तो मुझे भी मार देंगे। पुलिस वाला खतरनाक डाकू हो गया।
मुझे तो हर गली, हर चौराहे पर ओझा ही ओझा दिखायी दे रहे हैं, भांत-भात के ओझा हैं और जात-जात के ओझा हैं। ओझाओं का आका भी है जो जानता है कि ओझा तो सरकार चला नहीं सकता बस सरकार को गिराने में हमारी मदद कर सकता है, आखिर सरकार तो हम ही चलाएंगे। वे अफवाहों का और महामारी फैलाने का बंदोबस्त करते हैं और जनता को ओझा के पास जाने का मंत्र देते हैं। लेकिन आजकल जनता थोड़ी स्याणी होने लगी है, वह डॉक्टर की दवा बन्द नहीं करती बस ओझा का चक्कर भी लगा आती है। ओझा भी भीड़ देखकर खुश हो लेता है लेकिन दवा तो डॉक्टर की ही चलती है। सारे ही बाजार जोर पर हैं, अखबार भी बिक रहा है, मीडिया भी चल रहा है और सोशल-मीडिया नामक नयी सनसनी भी बाजार में उतर आयी है। हम सबका डर बढ़ता जा रहा है, चौबीस घण्टे डर में रखने की सुपारी अखबार और मीडिया को दे दी गयी है। जैसे ही माडिया के किसी चैनल पर रिमोट अटक जाए समझो एकाध सेर डर हमारे अन्दर फोकट में प्रवेश कर जाएगा। चैनल पर सैना डटी है, जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर डर को शरीर और मन में प्रवेश कराने की ट्रेनिंग दी जा रही है। कभी अनजाने भूत-पिशाच प्रवेश लेते थे अब मीडिया के अपने भूत-पिशाच है, पूछना नहीं पड़ता कि बता तू किसका भूत है? मीडिया को पता है कि यह कौन सी प्रजाति का भूत हमने छोड़ा है, वह सर्वज्ञ बनता जा रहा है। सारे भूत-पिशाच उसकी जेब में हैं, उनका ईलाज भी उन्हें पता है, बस वे हॉरर दिखा-दिखाकर जनता को डराना चाहते हैं जिससे जनता डरे और उनके बैठाए नये-नये ओझाओं को भीड़ मिले।

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