अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

बैलों की चरम-चूं, चरम-चूं

Written By: AjitGupta - Oct• 01•17

मैंने कई बार न्यूसेंस वेल्यू के लिये लिखा है। आज फिर लिखती हूँ। यह जो राज ठाकरे है, उसका अस्तित्व किस पर टिका है? कहते हैं कि मुम्बई में वही शान से रह सकता है जिसकी न्यूसेंस वेल्यू हो। फिल्मों का डॉन यहीं रहता है। चम्बल के डाकू बीहड़ों में रहते हैं, इसलिये उनका आतंक या न्यूसेंस वेल्यू बीहड़ों से लगे गाँवों तक सीमित है लेकिन मुम्बई के डॉन की वेल्यू सभी जगह लगायी जाती है। राज ठाकरे भी उन में से ही एक हैं। उनकी सोशल वेल्यू तो लगभग जीरो है, इसकारण वे पूरी निष्ठा से न्यूसेंस वेल्यू बढ़ाने में लगे हैं। जैसै आपको हर सामाजिक मौके पर अपनी सोशल वेल्यू बढ़ानी होती है, वैसे ही राज ठाकरे जैसों के लिये अपनी न्यूसेंस वेल्यू बढ़ाने का मौका दुर्घटनाओं के समय मिलता है।
कहीं भगदड़ मचती है, शायद मुम्बई में रोज की ही मारामारी है, तो इन जैसों को अपनी वेल्यू बढ़ाने का अवसर समझ आता है। कारखाने में काम करते समय यदि किसी मजदूर की तबियत खराब हो जाए तो ऐसे लीडर दौड़कर मालिक का कॉलर पकड़ लेते हैं। बेचारा मालिक कुछ पैसा देकर अपनी जान छुड़ाता है। मजदूर को कुछ मिले या नहीं लेकिन उस लीडर की न्यूसेंस वेल्यू बढ़ जाती है और उसकी कमाई चल पड़ती है। मुम्बई में पुल नहीं टूटता है, भगदड़ है लेकिन राज ठाकरे दौड़ पड़ते हैं कि बुलेट ट्रेन नहीं आने दूंगा। मुझे चाहिये हफ्ता। आज ही अहमद नगर में एयर पोर्ट का उद्घाटन है, रोक देना चाहिये उसे भी। राज ठाकरे सरीखे लोगों को कसम खा लेनी चाहिये कि जब तक देश में ऐसी भगदड़ रहेंगी, वायुयान का प्रयोग नहीं करेंगे।
समाज को सभ्य बनाने की ओर कदम किसी का नहीं है, बस हर व्यक्ति लगा है अपनी दादागिरी छांटने में। मुम्बई के आंकड़े बताते हैं कि रोज ही न जाने कितने लोग ट्रेनों में लटकते हुये यात्रा करते हैं और मरते भी हैं। तो रोक दो सारे ही विकास की धारा। क्यों नहीं रोका जा रहा है मुम्बई में बड़ी कम्पनियों को आने से। जिन कम्पनियों के भी 10000 से ज्यादा कर्मचारी हैं, उन्हें अपनी टाउनशिप बनानी चाहिये। लेकिन रोकने की कवायद हो रही है बुलेट ट्रेन को। ऐसा लग रहा है जैसे बुलेट ट्रेन के कारण ही इनका वोट बैंक धड़ाम हो जाएगा! भाई राजनीति में हो तो राजनीति जैसी बात करो, गुण्डे-मवालियों जैसी बात तो मत करो, इससे ना न्यूसेंस वेल्यू बढ़ती है और आपकी सोशल वेल्यू तो पहले से ही जीरो है, तो वह तो कैसे बढ़ेगी। भीड़ को रोको ना कि तीव्रता को। तुम्हारी लीडरी तीव्रता से ही परवान चढ़ेगी ना कि बैलों की चरम-चूं, चरम-चूं से।

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