अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

मन तड़पत गुरु दर्शन को आज

Written By: AjitGupta - Jul• 19•16

हीरे को तराशकर जब बाजार में उसका मूल्य निर्धारित किया जाता है तब हीरे को तराशने वाले का मूल्यांकन भी होता है। इसी प्रकार व्यक्ति का मूल्यांकन भी उसके तराशने वाले पर निर्भर करता है और उस तराशने वाले व्यक्ति को गुरु कहा जाता है। अपने जीवन में झांककर देखिये कि आपको कितने गुरु मिले, जिन्होंने आपकी प्रतिभा को तराशने का काम किया। यह मानकर चलिये कि आप जन्मजात हीरा हैं लेकिन उसे किसने और कितना तराशा? आपका मूल्यांकन समाज ने कितना किया? कुछ भाग्यशाली होते हैं जिन्हें गुरु मिलते हैं, लेकिन कुछ लोगों को दर-दर भटकने के बाद भी गुरु नहीं मिलते। उन्हें हीरे के स्थान पर कोयला ही समझा जाता है और सभी जगह से तिरस्कार ही मिलता है।
महिला का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही होता है। उसकी महिला पहचान इतनी बड़ी है कि उसे इससे अधिक की पहचान के लिये गुरु मिलना कठिन हो जाता है। कहीं वह बहन-बेटी के रूप में देखी जाती है तो कहीं भोग्या के रूप में। यदि महिला किसी भी क्षेत्र में अपना विकास करना चाहे तो उसे पुरुष के समान अवसर नहीं मिल पाते। महिला को या तो अपने परिवार से या फिर किसी महिला से ही अवसर मिलते हैं, यदि कभी मिलते भी हैं तो बहुत कठिनाई से। हमारे देश में महिला और पुरुष के कार्य का विभाजन कर दिया गया है, यदि महिला को महिला के अनुरूप कार्य का अवसर मिलता है तो कोई भी गुरु मिल जाता है लेकिन यदि उसने पुरुष के क्षेत्र में कार्य करने का संकल्प किया है तब उसे गुरु मिलना कठिन हो जाता है।
आज गुरु पूर्णिमा है, मेरा भी मन करता है कि किसी गुरु के चरणों में अपना सर रखकर स्वयं को धन्य कर लूं लेकिन जीवन में ऐसा अवसर प्राप्त नहीं हुआ। मेरे व्यक्तित्व के हीरे पर से तो धूल ही नहीं हट पायी, तराशने की तो बात ही बहुत दूर है। बहुत भटकी हूँ मैं, न जाने कितने चरणों में शीश झुकाया है लेकिन किसी ने भी तराशने का प्रयास नहीं किया। इसलिये गुरु पूर्णिमा के दिन स्वयं को निराश पाती हूँ। बस समाज के सम्मुख अपना शीश झुकाती हूँ जिसकी रगड़ ने कुछ प्रकाश कर दिया। आप सभी को गुरु पूर्णिमा की बधाई, जिन्हें गुरु का सान्निध्य प्राप्त हुआ।

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