अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

मूर्ख दुनिया सड़ा आटा खाती है

Written By: AjitGupta - Jul• 24•16

देशी घी मंहगा है, नहीं खा सकते। टमाटर मंहगा है, नहीं खा सकते। फल-हरि सब्जियां मंहगी हैं, नहीं खा सकते। लेकिन हम हर सप्ताह किसी न किसी अभिनेता को पूरे देश से 500 करोड़ रूपया एकत्र कर चन्दे में दे देते हैं। जो व्यक्ति हमारे अन्नदाता किसान को दो पैसे नहीं दे सकते वे मनोरंजन के नाम पर इन अभिनेताओं को झोली भर-भर कर दे रहे हैं। एक औसत परिवार मनोरंजन के नाम पर लगभग दो हजार रूपया खर्च कर देता है, यदि इस पैसे से वह रसोई का राशन लेकर आये तो उसका परिवार सुख की रोटी खा सकेगा। यह तो है मनोरंजन के नाम पर की जा रही परिवार की बर्बादी।
अब देखिये फैशन के नाम पर हो रही बर्बादी। इस देश में हजारों क्विंटल अनाज हर वर्ष सड़ता है या मिलीभगत से सड़ाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा की इस अनाज को गरीबों में मुफ्त बाँट दो, लेकिन सरकारों ने नहीं माना। क्यों नहीं माना? हमने इसे व्यावसायिक कारणों के सड़ाया है, मुफ्त में कैसे बाँट दें। 20 रूपये किलो का गैंहूं, सड़ने के बाद 2 रूपये किलो में मिल जाता है। अब इस सड़े गैंहूँ का मैदा आसानी से बन जाता है जो 30 रूपये किलो बिकता है। बिना मेहनत के जो चापड़ निकलता है उसे भी मंहगे दाम पर बेच दिया जाता है। पहले मैदा खिलायी फिर कहा कि फाइबर खाना सेहत के लिये लाभकारी है तो इस सड़े गैहूँ का चापड़ भी बेच दिया। सारी दुनिया में आटा खरीदने का चलन चल पड़ा। कौन मेहनत करे? 2 रूपये किलो का सड़ा गैहूँ का आटा 30रूपये किलो शौक से खरीदकर खा रहे हैं। अब मैं इस दुनिया को मूर्ख नहीं कहूँ तो क्या कहूँ!

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2 Comments

  1. rohit says:

    कहने की क्या जरूरत है

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