अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

मैं और मेरी बातें

Written By: AjitGupta - Jun• 23•16

बाते करना, वो भी अपने आप से, मुझे रास आता है। बचपन से आजतक अपने से बातें कर के ही खुद को खोजा है। न जाने कितनी उपेक्षाएं मिली, कितना स्नेह भी मिला, दोनों ही समय अपने से बात करके उपेक्षा और स्नेह का कारण खोजा है। शायद ही ऐसा कोई समय हो जब स्वयं से बात नहीं की हो, उठते-बैठते, सोते-जागते, हर प्रहर बस खुद से बातें। इसे शायद पागलपन का लक्षण भी कह देंगे लेकिन मैंने इन बातों से मेरी सारी ही समस्याओं के हल ढूंढें हैं। मैं क्या हूँ, मुझे क्या प्रिय है, मुझे किससे तकलीफ पहुँचती है, मेरी सामर्थ्य कितनी है, सारी ही पड़ताल रोज कर लेती हूँ। लोग कहते हैं कि अपनी आत्मा को जानना ही अध्यात्म है, मैं अध्यात्म को भी नहीं जानती लेकिन करती बस यही हूँ। अब यह अध्यात्म है या पागलपन मैं नहीं जानती।
मैं इसलिये किसी से नाराज नहीं होती, दूसरे की नाराजी का कारण खोजती हूँ और फिर समाधान। यदि सामने वाला स्वयं की गलती से ही मुझसे नाराज है तो मेरे पास मौन के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं रहता और यदि मेरे व्यवहार के कारण नाराज है तब मेरा प्रयास क्षमा मांगने का रहता है। आप लोग कह सकते हैं कि खुद ही जज बनने का प्रयास है, लेकिन मैं कम से कम पड़ताल तो करती हूँ ना। कुछ लोग तो बिना पड़ताल के ही दूसरों को कसूरवार ठहरा देते हैं। यदि वे भी स्वयं से बातें कर लें तो उनके पास भी समाधान हो।
बाते करना, अपने से या दूसरे से, भगवान का दिया वरदान है। जिसे बाते करना आ गया, उसे मानो सबकुछ मिल गया। दूसरों से बाते करने में तो रस है ही लेकिन कभी खुद से भी बाते करने का आनन्द उठाकर देखिये, सच मानिये इससे अधिक सुख कहीं नहीं मिलेगा। बड़ी से बड़ी समस्याओं का तोड़ है – बातें, जो समाधान कोई ना दे सके वो समाधान है – बातें, दुनिया के सारे सुख जो ना दे सकें वह आनन्द के क्षणों को भोगने का अवसर हैं – बातें। खुद से बाते, अपने मन की बातें, अपने सुख को खोजने की बातें, बस बातें ही बातें। जिन्दगी में इससे अधिक चाहत की कहीं कोई गुंजाइश नहीं। मैं और मेरी बातें। कभी आजमाना इस फार्मूले को, दुनिया की चाहत ही खत्म हो जाएगी। अपने आप में कभी खोकर देखना, आनन्द ही आनन्द मिलेगा। इसलिये मैं हूँ और हैं मेरे साथ मेरी बातें।

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One Comment

  1. बहुत सुंदर रोचक पोस्ट …

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