अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

मोदी का मोशा से क्या रिश्ता है?

Written By: AjitGupta - Jul• 05•17

मोदी बनना सरल नहीं है। जो लोग मोदी को राजनैतिक चश्मे से देखते हैं, वे मोदी के लिये जौहरी नहीं हो सकते। मोदी की राजनीति, अव्यवस्था पर प्रहार करती है, मोदी की राजनीति, अकर्मण्यता पर प्रहार करती है, मोदी की राजनीति, आतंक पर प्रहार करती है। मोदी व्यवस्था को सुचारू करना चाहते हैं, मोदी आम और खास को कर्तव्य का पाठ पढ़ाना चाहते हैं, मोदी देश को सुरक्षित करना चाहते हैं। मोदी के हिस्से हजारों काम है, मोदी हजार प्रकार से सोचते हैं, मोदी हजार प्रकार से काम करते हैं। उनकी कार्यशैली को कोई नहीं समझ पाया है। वे एक जगह रहते हुए भी हजार जगह होते हैं। लेकिन उनके हर काम में मुझे एक बात समान दिखायी देती है और यही बात उन्हें सभी से अलग करती है। राजनेता अनेक हुए हैं, एक से एक कूटनीतिज्ञ भी हुए हैं। दुनिया ने उनका लोहा माना है, ऐसे भी अनेक हुए हैं। लेकिन एक खास बात है – मोदी में, जो शायद ही किसी में हो। मैं हमेशा उनके उसी पक्ष को देखती हूँ और अभिभूत हो जाती हूँ। शायद उनके विरोधी इस पक्ष को ना देख पाते हों, फिर उन्हें यह पक्ष एक ढोंग लगता हो। लेकिन मुझे नहीं लगता, क्योंकि व्यक्ति एक बार ढोंग कर सकता है, दो बार कर सकता है लेकिन हर बार नहीं कर सकता। फिर ढोंग करने के लिये भी तो सोच होनी चाहिये। कहाँ ढोंग करना है, इसका विवेक भी तो होना चाहिये।
मोदी इजरायल जाते हैं, अनेक कार्यक्रम में उलझे हैं। 70 साल से प्रतीक्षित रिश्तों के कई ताने-बाने बुनने हैं। लेकिन मेरे लिये एक बात खास बन जाती है। सीधे दिल पर आकर लगती है। एंकर बता रहा है कि वे मोशा से मिलेंगे। मेरी उत्सुकता बढ़ती है कि मोशा कौन है! शायद कोई होनहार बच्चा होगा! लेकिन एंकर बता रहा है कि मोशा वह बच्चा है जो 26/11 के मुम्बई हमले में अपने माता-पिता को खो देता है। माता-पिता यहूदी हैं और उनका यही सबसे बड़ा जुर्म है कि वे यहूदी हैं। आतंक के सहारे सम्प्रदाय का विस्तार करने वाले, मोशा के सारे परिवार को मौत के घाट उतार देते हैं। नन्हा दो साल का मोशा अपनी हिन्दुस्तानी आया की दूरदर्शिता से बच जाता है। आज वह अपने दादा-दादी के पास इजरायल में है। अब वह 10 साल का हो गया है। भारत का यह अनोखा प्रधानमंत्री मोशा से मिलने जा रहा है, साथ ही उस आया से भी मिलने जा रहा है। मोदी अपने रिश्ते परिवार की भावना से जोड़ते हैं, वे राजनीति को भी परिवार से ही साधते हैं। तभी तो नवाज शरीफ की माँ के लिये भी शॉल लेकर जाते हैं और उनके चरणों में प्रणाम भी करते हैं। मोदी बता देना चाहते हैं दुनिया को कि भारत में वसुधैव कुटुम्बकम् की बात केवल राजनीति के लिये नहीं कही थी, वे दिल से सभी को परिवार मानते हैं, तभी एक नन्हें बच्चे से जाकर मिलते हैं। क्योंकि वे मानते हैं कि उनके देश में ही इस बच्चे का संसार उजड़ा था और इसके साथ दर्द का रिश्ता जोड़ लेते हैं। वे मानते हैं कि माँ हमेशा वन्दनीय होती है फिर चाहे शत्रुता निभा रहे पड़ोसी देश के प्रधानमंत्री की ही माँ क्यों ना हो।
बस मोदी इन्हीं बातों से दिल में जगह बना लेते हैं। उनका भावुक होना ही उन्हें महान बनाता है। आप इसे कुछ भी नाम दें लेकिन मेरे लिये मोदी संवेदनशीलता का नाम है। ऐसी संवेदनशीलता जो परिवारों के रक्त सम्बन्धों में दौड़ती है, ऐसी संवेदनशीलता जो अपनी जाति और देश के लिये दौड़ती है, ऐसी संवेदनशीलता जो सम्पूर्ण प्राणी मात्र के लिये दौड़ती है। मैं इसी संवेदनशीलता के कारण उन्हें प्रणाम करती हूँ।

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