श्मशान में पसरी गन्दगी – क्या यही मृत्यु संस्कार है?
मृत्यु क्या है? जीवन का अन्त। जीवन का प्रारम्भ जब स्वागत से भरा होता है तो अन्त भी वैसा ही होना चाहिए। अन्तिम विदाई पूर्णरूप से गरिमामयी हो इसीकारण मृत्यु को भी संस्कार माना है। मृत्यु के बाद पूर्ण पवित्रता के साथ, नश्वर देह को स्नान कराकर, नवीन वस्त्र धारण कराकर, फूलों के सजाकर, सम्मान के साथ विदाई दी जाती है। हमारे जीवन में शुचिता का बहुत महत्व है, इसलिये मृतक की शुचिता का भी पूरी तरह ध्यान रखा जाता है।
राजा हरीश चन्द्र के जमाने में श्मशान में शवों पर कर लगाने का उदाहरण हमें ज्ञात है, लेकिन वर्तमान में श्मशान में सफाई कर्मचारी तक दिखायी नहीं देता। लोग छोटी-छोटी बातों में साम्प्रदायिक और जातिगत हिंसा पर उतारू हो जाते हैं लेकिन उन्हीं लोगों की भावनाएं जब आहत नहीं होती, तब वे दाह संस्कार के बाद अपने मृतक परिवारजन के वस्त्र और बिस्तर आदि वहीं धूल खाने को छोड़ आते हैं! हम अपने व्यक्ति की छोटी से छोटी अस्थि तक संकलन करने जाते हैं तब भी हमें वे वस्त्र दिखायी नहीं देते!
शव को ले जाने का मार्ग कैसा हो, क्या यह हमारे लिये चिन्तनीय नहीं होना चाहिए? जिस मार्ग पर नालियों का गन्दा पानी एकत्र हो, गन्दगी का ढेर लगा हो, क्या ऐसे मार्ग से हम अपने प्रियजन को विदाई देने जाते हैं? समाज बड़े-बड़े आयोजन करता है, लेकिन इस अन्तिम सत्य को नजर-अंदाज कर देता है, यह मेरे लिये तो बहुत ही कष्टकारी होता है, जब इस दृश्य को रोज ही देखना पड़ता है। जो लोग भी समाज के सुधार की बात करते हैं, यदि वे लोग इस ओर ध्यान देंगे तो हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकेंगे।
उदयपुर का रानी रोड श्मशान गृह वीआईपी श्मशान है, अर्थात जितने भी शहीद या स्वतंत्रता सैनानी अन्तिम विदाई लेते हैं, वे यही से लेते हैं। यहाँ की दुर्दशा देखकर मन करता है कि एक सफाई-कर्मचारी की नियुक्त मैं कर दूँ लेकिन फिर ध्यान आता है कि पुरुषों के क्षेत्र में एक महिला ने हस्तक्षेप यदि कर दिया तो बहुत बड़ा कलेह का कारण बन जायेगा। अब आप ही बतायें कि क्या किसी नागरिक को वहाँ हस्तक्षेप करना चाहिये या जैसा चल रहा है, वैसे को आँख मूंदकर देखते रहना चाहिये। आँखे जब बन्द होंगी, तब होगी लेकिन अभी तो हर रोज ही बन्द करना पड़ती है। आप ही मार्ग सुझायें।
sir ji lal rang honey sae padha nhi ja rh ah
लाल रंग?