अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

सुन्‍दरता तू दुखी क्‍यूं है?

Written By: AjitGupta - May• 15•15

बात बहुत पुरानी है, लेकिन अभी भी अस्तित्‍व में है। मेरे परिचय में एक महिला थी, उनका दावा था कि वे किसी भी आत्‍मा को बुलाकर उससे भविष्‍य लिखा सकती हैं। वे कलम पकड़ती थी और बस कलम अपने आप लिखने लगती थी। लेखकों के साथ भी तो यही होता है, हम कब सोच समझकर अक्‍सर लिखते हैं! बस कलम पकड़ी या आजकल की-बोर्ड पर अंगुलिया रखी और स्‍वत: ही अक्षर आकर बिराजमान होने लगते हैं, न जाने मन की कौनसी भावना को वे शब्‍दों के माध्‍यम से उकेर देते हैं! आपने पाँच मिनट पूर्व भी नहीं सोचा होता कि आप क्‍या लिखने वाले हैं, बस लिख दिया जाता है और मन के किसी कोने की सच्‍ची बात लिख दी जाती है। शायद यही तो भविष्‍यवेत्ता भी करते होंगे। हम मानते हैं कि हम परमात्‍मा के ही एक अंश हैं, इसलिए हमारी आत्‍मा एक लघु स्‍वरूप है और जब वृहत स्‍वरूप परमात्‍मा से मन का साक्षात्‍कार होता है तब ऐसे ही लेखनी चल जाती है। देखे आज मेरी अंगुलियां किस ओर ले जाती हैं?

सुन्‍दरता के ही सपने होते हैं। न जाने सुन्‍दरता में ऐसी क्‍या बात है जो सपने देखने लगती है और जो सुन्‍दर नहीं है वे तो सपने भी नहीं देखते। उन्‍हें लगता है कि जो भगवान प्रसाद स्‍वरूप दे देगा वही श्रेष्‍ठ होगा। एक सुन्‍दर राजकुमारी थी—– या एक सुन्‍दर राजकुमार था, ऐसी अनेक कहानियां आपने और हमने पढ़ी है। ऐसी भी कहानी पढ़ी है कि दो बहने थी एक सुन्‍दर थी और एक असुन्‍दर। सुन्‍दर बहन के सपने भी सुन्‍दर थे, उसे सपनों में कोई राजकुमार ही था, महल था और सारे ही सुख के साधन। असुन्‍दर बहन तो झोपड़ी तक के सपने नहीं देखती। इसलिए उसे जो भी मिलता है, बस खुशी से अपना लेती है। जब किसी के सपने होंगे तो उनमें कुछ भी कमी असहनीय होगी। सुन्‍दरता फूल की तरह होती है जो चाहती है कि भँवरे हमारे चारों तरफ मंडराते रहें। केवल भँवरे ही नहीं, तितली भी, मधुमक्‍खी भी यहाँ तक की पूजा करने वाले हाथ भी उनकी प्रशंसा में ही उनकी तरफ बढ़ें। इसलिए कई बार मुझे लगता है कि सुन्‍दर लोग बहुत अधिक सुखी नहीं हो पाते। क्‍योंकि वे दुख को खोज ही लेते हैं। उनके सपनों में उन्‍नीस-बीस की कमी रह जाये तो वे दुखी, कोई उनके आगे-पीछे नहीं घूमे तो वे दुखी। दुनिया भी उनके लिए ही चिंतित होती है, अक्‍सर आपने सुना होगा कि लोग कहते हैं कि बेचारी इतनी सुन्‍दर थी लेकिन उसके भाग्‍य में सुख नहीं था। कभी आपने नहीं सुना होगा कि वह सुन्‍दर नहीं थी और भाग्‍य में सुख नहीं था। हम लोग मानकर चलते है कि आपका भाग्‍य अच्‍छा है तभी आप सुन्‍दर हैं, यदि आप सुन्‍दर नहीं हैं तब आपका भाग्‍य अच्‍छा नहीं है।

पहले जमाने में सुन्‍दर कन्‍यायें रानी बनने के सपने देखती थी और अब हीरोइन बनने के। रानी बनकर भी सुख नहीं था और हीरोइन बनकर भी सुख नहीं है। इसलिए यदि हमारे बाल्‍यकाल से ही सुन्‍दरता का गुमान दिल से निकल जाए तो फिर अनावश्‍यक सपने देखने का प्रचलन बन्‍द हो जाए। सुन्‍दरता भी कैसी है, अपने परिवार में आप अच्‍छे दिखते हैं तो आप सुन्‍दरता का भ्रम पाल लेते हैं, आप सुन्‍दरता के मानकों को देखते ही नहीं। लेकिन मेरा मानना है कि केवल तन की सुन्‍दरता ही दुख का मूल है, यदि मन की सुन्‍दरता भी साथ हो तब वास्‍तविक सुख मिलता है। इसलिए अपने चारों तरफ बिखरे लोगों के मध्‍य अपनी सुन्‍दरता का गुमान करें तो उनके मन की सुन्‍दरता का भी अघ्‍ययन करें और फिर गुमान करें। नहीं तो आप को लगता रहेगा कि आप सुन्‍दर होकर भी दुखी हैं और अगला सुन्‍दर नहीं होकर भी सुखी है।

ये विचार मेरे अन्‍दर से निकले हैं, आप सभी के ऐसे ही नहीं होंगे। आप न जाने कितने दृष्टिकोण से इन बातों को देखेंगे और अपनी तार्किक शक्ति से मुझे अवगत कराएंगे ही। मैंने तो स्‍वत:र्स्‍फूत होकर ही यह सब लिखा है देखें आपकी क्‍या प्रतिक्रिया रहती है।

You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.

6 Comments

  1. अन्तर सोहिल says:

    मेरे विचार से सुन्दरता मन की होती है, भावों की होती है
    एक बेटे के लिये उसकी मां हर रुप में सुन्दर ही होगी और माता-पिता के लिये अपना बच्चा ही सबसे सुन्दर लगता है
    खास मित्र शरीर, रंग-रुप से कैसा भी हो सुन्दर लगता है
    जो करीबी होता है वही सुन्दर लगने लगता है, करीबी से मतलब है जो दिल के करीब, जिसके साथ समय बिताना, विचारों का आदान प्रदान करना जरुरी हो जाये।

    • AjitGupta says:

      सच है अन्‍तर साेहिल जी, सुन्‍दरता मन की शाश्‍वत है लेकिन लोग इसे समझ नहीं पाते और मन की जगह तन को चमकाने में ही लगे रहते हैं।

  2. सुन्दरता सामंजस्य में संभव है – जो मन को प्रसन्न करे . यों सबकी अपनी दृष्टि ,अपना निर्णय !

  3. AjitGupta says:

    प्रतिभाजी, काश इस बात को सब समझ पाते। आभार आपका।

  4. onkar kedia says:

    सच तो यही है कि सुन्दरता देखनेवाले की आँखों में होती है

  5. दुखी होने के लिए सुंदरता क्या किसी भी बाह्य गुण/लक्षण की अनिवार्यता नहीं है। जिन्हें दुखी होना है वे होते ही हैं।

Leave a Reply to प्रतिभा सक्सेना Cancel reply