अजित गुप्ता का कोना

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हमें वापस लाना होगा आठवीं शताब्‍दी का उभय भारती वाला काल

Written By: AjitGupta - Feb• 02•13

 

आज महिलाओं के अधिकारों पर चर्चा का बाजार गर्म है। महिलाएं भी मांग कर रही हैं कि उन्‍हें स्‍वतंत्रता दी जाए। मुझे कभी समझ नहीं आया कि वे स्‍वतंत्रत्ता की किस से मांग कर रही हैं? प्रकृति ने स्‍त्री और पुरुष को सृष्टि संरक्षण के लिए युगल रूप में उत्‍पन्‍न किया है, वे दोनों ही एक दूसरे से बंधे हुए भी हैं और स्‍वतंत्र भी हैं। पुरुष को महिला स्‍वतंत्र करे या महिला पुरुष को स्‍वतंत्र करे, यह बात हास्‍यास्‍पद ही लगती है। पुरुषों ने घोषित किया कि यह हमारी दुनिया है, महिलाओं ने इसे स्‍वीकार कर लिया! किसी देश का कानून यदि महिला को परतंत्र घोषित करता है तब बात गले उतरती है। लेकिन पुरुष से स्‍वतंत्रता की मांग, गले नहीं उतरती। एक जमाने में ईसाई मत में कहा गया कि महिला में आत्‍मा नहीं होती, तब विरोध हुआ। कई मुस्लिम देशों में महिलाओं पर प्रतिबंध है और वहाँ विरोध हो, यह बात समझ आती है। लेकिन भारत में जहाँ कभी भी महिलाओं के लिए दोहरे कानून नहीं बने, वहाँ महिलाएं स्‍वतंत्रता की बात करे, कुछ हजम नहीं होती है। अनावश्‍यक रूप से पुरुष को मालिक बनाने जैसे प्रस्‍ताव है। यदि किसी भी महिला को लगता है कि मैं पराधीन हूँ तो उसे स्‍वयं ही बंधन खोलने होंगे, इसके लिए दूसरा कुछ नहीं कर सकता। अभी एक अवार्ड शो में रेखा ने एक नज्‍म गायी थी, “उफ कितनी तरह में पकड़ी गयी”। उसमें था कि बिछिया, कंगन आदि आदि बंधन थे उसे जेवर का नाम देकर मुझे बांधा गया, लेकिन मैंने उन गिरेह को काटा। आज भी नारी मुक्‍त है, वह अपनी इच्‍छा से ही बंधती है और अपनी इच्‍छा से ही मुक्‍त होती है। देश के कानून के द्वारा तो उस पर प्रतिबंध सम्‍भव है लेकिन समाज के बंधन से वह बंधी रहे यह आवश्‍यक नहीं। पाकिस्‍तान जैसे देश में मलाला ने बंधनों को नहीं माना। तो हम भारत में पुरुष से क्‍यों स्‍वतंत्रता की मांग करते हैं? इस संदर्भ में मुझे हमेशा उभय भारती का स्‍मरण होता है।

सातवीं शताब्‍दी में आद्य शंकराचार्य का जन्‍म हुआ, उन्‍होंने बाल्‍यकाल में ही संन्‍यास की दीक्षा ली और सम्‍पूर्ण भारत का भ्रमण किया। एक दिन वे भीक्षा के लिए मंडन मिश्र के यहाँ जाते हैं। मंडन मिश्र को शंकराचार्य अपनी पुत्री के लिए योग्‍य वर नजर आते हैं। वे उनसे प्रार्थना करते हैं, लेकिन शंकराचार्य उनके प्रस्‍ताव को नकार देते हैं। वाद-विवाद बढ़ता है, उग्र हो उठता है और वे एक-दूसरे को शास्‍त्रार्थ के लिए ललकार देते हैं। उस काल में विद्वानों के मध्‍य शास्‍त्रार्थ होते थे और जो भी पराजित होता था, स्‍वयं को अग्नि को समर्पित कर देता था। मंडन मिश्र और शंकराचार्य के मध्‍य शास्‍त्रार्थ होता है और मंडन मिश्र पराजित हो जाते हैं। मंडन मिश्र चिता सजा लेते हैं और उसपर बैठ जाते हैं। शंकराचार्य उन्‍हें रोकते हैं, कहते हैं कि इस प्रकार देश से विद्वानों की समाप्ति होगी लेकिन मंडन मिश्र नहीं मानते। सूचना उनकी पत्‍नी उभय भारती तक भी पहुंचती है। वे तत्‍काल आती है और अपने पति मंडन मिश्र को हाथ पकड़कर चिता से खींच लेती है। वे शंकराचार्य से कहती हैं कि मेरे पति अभी पराजित नहीं हुए हैं। वे विवाहित है, इसलिए मैं उनका अर्धांग हूं, जब आप मुझे भी पराजित कर देंगे तभी मंडन मिश्र की पराजय होगी।

उभय भारती और शंकराचार्य का शास्‍त्रार्थ होता है, उभय भारती उनसे काम-सम्‍बंधों पर प्रश्‍न करती है। शंकराचार्य निरूत्तर हो जाते हैं। वे कहती हैं कि ज्ञान का अभिमान नहीं होना चाहिए। मेरे गृहस्‍थ के ज्ञान, आप के पारलौकिक ज्ञान में भेद नहीं है, दोनों ही ज्ञान है। वे कहती हैं कि मैं आपको अग्नि मे समर्पित नहीं होने दूंगी, आप मेरे प्रश्‍नों के उत्तर कभी भी देने को स्‍वतंत्र हैं।

महिलाओं की स्‍वतंत्रता को समझना है तो इस प्रकरण से समझा जाना चाहिए। उभय भारती सम्‍पूर्ण समाज के सम्‍मुख प्रश्‍न करती है, समाज उनसे नहीं कहता कि कौन से प्रश्‍न उचित हैं और कौन से नहीं। लेकिन वर्तमान में काम-शास्‍त्र को लेकर समाज में प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। महिलाओं पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास अनेक देशों में हो रहे हैं। कई देश उससे मुक्‍त हो गए हैं और कई देश अभी भी नहीं। लेकिन भारत में ऐसे कोई कानून नहीं हैं कि वे महिलाओं को या किन्‍हीं विषयों पर प्रतिबंध लगाते हो। परिवार के अघोषित प्रतिबंध हैं, वे भी सुरक्षा कारणों से। जब हम विश्‍व को एक परिवार मानते हैं तब विश्‍व की सारी ही सभ्‍यताएं और संस्‍कृति का मेल होता है, इसकारण विभिन्‍न मानसिकता वाले मनुष्‍यों के साथ जीवन यापन करना पड़ता है। सुरक्षा के पहरे इन्‍हीं कारणों से परिवारों में लगाए जाते हैं। कानून का पालन जब कठोरता से नहीं होता है तब व्‍यक्ति को स्‍वयं ही सुरक्षित रहना पड़ता है। लेकिन महिलाओं को निडर होकर समाज के प्रत्‍येक प्रश्‍न के उत्तर देने होंगे। सर्वप्रथम महिला को उभय भारती जैसा निर्भीक और ज्ञानवान बनना होगा। कमजोर और अज्ञानी बनने से हमें शोषण से कोई नहीं बचा सकता। कहा तो यह भी जाता है कि शंकराचार्य ने संन्‍यास के संदर्भ में महिलाओं को नरक का द्वार कह दिया था। महिलाओं में इसकी व्‍यापक प्रतिक्रिया हुई थी और शंकराचार्य को अपनी बात भरी सभा में स्‍पष्‍ट करनी पड़ी थी। क्‍या हम आठवीं शताब्‍दी की महिला नहीं बन सकते? जिस शताब्‍दी में उभय भारती ने अपने पति को शास्‍त्रार्थ में पराजित होने से बचाया था।

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20 Comments

  1. Kailas chand Goyal says:

    Aapka lekh bade dhyan se padha. Aapne satyata aur sarthatakta ka samuchit dhand se apni bhasha mein prastuti ki hai. Mein aapke ukata bhawnao ka tahe dil se samarthan karta hun.

  2. रोचक और अर्थपूर्ण प्रसंग …….सच में यूँ एक दूजे का साथ देते हुए ,एक दूजे के सम्मान की रक्षा करते हुए भी जिया जा सकता है | आज समाज में इस सीख की आवश्यकता है ….

  3. सबसे ज़रूरी है स्वयं को सक्षम करें ….. जब तक हम स्वयं को आश्रित समझते रहेंगे तब तक स्वतन्त्रता की बात बेमानी है …. यहाँ आश्रित का तात्पर्य अर्थ ( धन ) से नहीं है ।

  4. t s daral says:

    समाज में स्त्री की अहम् भूमिका है जिसपर कोई मतभेद हो ही नहीं सकता। इसलिए यह स्वतंत्रता वाली बात नहीं जंचती । हाँ, कुछ विषयों में महिलाओं के साथ अन्याय होता आया है। इनमे सुधार की आवश्यकता है।

    सही कहा , स्त्रियों को उभय भारती जैसा होना चाहिए ।

  5. sanjay kumar says:

    stri – purush ek doosare ke poorak hain, nari ka mahatv bahut hai,

  6. सर्वप्रथम महिला को उभय भारती जैसा निर्भीक और ज्ञानवान बनना होगा। कमजोर और अज्ञानी बनने से हमें शोषण से कोई नहीं बचा सकता।

    मार्के की बात। आपका यह लेख बहुत अच्छा लगा! 🙂

  7. निश्चय ही वह उभयपक्षी भाव आयेगा, एक दूसरे के प्रति..

  8. rachna says:

    हर महिला को ये समझना चाहिये की वो दुनिया में “आज़ाद ” ही पैदा हुई . उसको किसी से भी आज़ादी नहीं चाहिये . जिस दिन ऐसे आलेख जहां ये लिखा होता हैं ” महिला को आज़ादी मिली हैं , दी गयी हैं , किस से चाहती हैं ” इत्यादि ख़तम होंगे उसदिन शोषण खुद बा खुद ख़तम होगा .

  9. अदभुत निःशब्द

  10. rashmiravija says:

    हर शताब्दी में क्या हर साल कहीं न कहीं किसी न किसी उभय भारती का उदय जरूर होता है .
    पर जब तक हर स्त्री, में इतनी हिम्मत नहीं आ जायेगी, वो अपना अस्तित्व, अपना महत्त्व नहीं समझेगी, उसका शोषण नहीं रुकेगा।
    और इसके लिए उन्हें उचित माहौल नहीं मिलता, पर इसके लिए संघर्ष तो उन्हें ही करना होगा
    सही कहा, जागना तो स्त्रियों को ही होगा।

  11. नारी विमर्श का एक पक्ष यह भी विचारणीय है।..अच्छा लगा यह आलेख।

  12. सहमत हूँ आपसे …
    बदलाव आवश्यक है ! शुभकामनायें …

  13. निर्भिकता और ज्ञान ही ऐसी शक्ति है जो सशक्त बनने की अहम सीढी है, बहुत सार्गर्भित आलेख.

    रामराम.

  14. उभय भारती जैसी महिलाएँ विरल होती हैं , बचपन से अनुकूल वातावरण और उचित शिक्षा पाती हैं और उनमें सजगता का संचार होता है .कितना अच्छा हो हर महिला को उपयुक्त वातावरण मिले और वह इतनी समर्थ बन सके.
    और यह भी सच है कि समर्थ बने बिना नारी का व्यक्तित्व संपूर्णता नहीं पाएगा. .

  15. विचारणीय बात है … हमाता इतिहास ये बताता है की हर तरह के लोग उस समय भी थर समाज में जो आज भी हैं … पर तब नारी सम्मान की रक्षा होती थी जो आज नहीं है …

  16. CA ARUN DAGA says:

    knowledgeable for me

  17. arun sethi says:

    thoda ajib laga ki..bharti ka kaam-sabhando par hi charcha karna..,is se ye sanket bhi nikal sakta hai koi,ki mahela ka sabhand kaam se hi hai,
    bharti aur un ki pati ke kaam anubhav saman the to fir kyu kaval bharti ne hi sbhand me charcha ki….thoda sa asngat lagta hai
    halki yah apni jagah satya hai ki shankarchaaye ko kaam-snbhandi gyan shunye th…

    • AjitGupta says:

      इस पोस्‍ट का इतना भर अर्थ है कि उस काल में काम सम्‍बन्‍धों पर चर्चा करना अपराध नहीं था, एक विदुषी महिला ने इसे बहस का मुद्दा बनाया था। इसलिए अब महिलाएं इतनी दबी हुई क्‍यों हैं? उभय भारती जानती थी कि शंकराचार्य से अन्‍य विषयों पर शास्‍त्रार्थ करने से पराजय निश्चित है, बस ये ही ऐसा क्षेत्र था जिसमें उन्‍हें ज्ञान नहीं था। वे यह बताना चाहती थी कि ज्ञान केवल एक पक्षीय नहीं होता है। जीवन के सभी पक्षों का ज्ञान व्‍यक्ति को आत्‍मसम्‍मान से भर देता है। वर्तमान में हमने ज्ञान को खांचों में बांट दिया है इसलिए ही महिला को सहजता से बुद्धिहीन कह दिया जाता है।

  18. meenakshi says:

    “भारत में जहाँ कभी भी महिलाओं के लिए दोहरे कानून नहीं बने, वहाँ महिलाएं स्‍वतंत्रता की बात करे, कुछ हजम नहीं होती है।” सौ फीसदी सच है ….
    और यह भी उतना ही सच है कि औरत स्वयं अपने अधिकारों के लिए उतरदायी है…

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