अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

Archive for July, 2017

सील के ये थूथन

एक दृश्य देखा था, बीत गये न जाने कितने ही दिन लेकिन वह दृश्य आज भी मुझे कुछ लिखने को उकसाता है। मैं दिमाग को झटक देती हूँ लेकिन फिर वह सामने आकर बिराज जाता है। उस दृश्य के क्या मायने निकालूं समझ ही नहीं पाती। किसी भूल-भुलैय्या में ले जाए बिना अपनी बात सीधे […]

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सेफू! तू भी अपनी माँ की बदौलत है

कल iifa awards का प्रसारण हो रहा था। उत्तर भारतीय शादी में और इस कार्यक्रम में कुछ अन्तर नहीं था। हमारे यहाँ की शादी कैसी होती है? शादी का मुख्य बिन्दु है पाणिग्रहण संस्कार। लेकिन यह सबसे अधिक गौण बन गया है, सारे नाच-कूद हो जाते हैं उसके बाद समय मिलने पर या चुपके से […]

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लड़ना क्या इतना आसान होता है?

लड़ना क्या इतना आसान होता है? पिताजी जब डांटते थे तब बहुत देर तक भुनभुनाते रहते थे, दूसरों के कंधे का सहारा लेकर रो भी लेते थे लेकिन हिम्मत नहीं होती थी कि पिताजी से झगड़ा कर लें या उनसे कुछ बोल दें। माँ भी कभी ऊंच-नीच बताती थी तो भी मन मानता नहीं था, […]

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कश्मीर मोसुल की राह पर

कल इराक का शहर मोसुल एक चैनल पर दिखाया जा रहा था। इस्लामिक स्टेट का कब्जा अब खाली करवा लिया गया है। लोग वहाँ वापस आ रहे हैं, धरती को चूम रहे हैं। वहाँ के लगभग 10 लाख लोगों को वापस बसाया जाएगा। एक-एक घर खण्डहर में बदल चुका है, उसे वापस खड़ा करना कितना […]

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नाम शबाना

अभी दो दिन पहले एक फिल्म देखी – नाम शबाना। शायद आप लोगों ने देखी होगी और हो सकता है कि नहीं भी देखी होगी, क्योंकि इस फिल्म की चर्चा अधिक नहीं हुई थी। फिल्म बेबी की चर्चा खूब थी, यह उसी फिल्म का पहला भाग था, लेकिन शायद बना बाद में था। खैर छोड़िये […]

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