अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

Archive for October, 2017

first cry

first cry नन्हें अतिथि को तो आना ही था लेकिन दादी से मिलने की जल्दी उसे भी थी और बस 29 अक्तूबर को नन्हें कुँवर जी हमारी गोद में थे। अभी जेट-लेक ने अपना असर भी नहीं दिखाया था कि भाग-दौड़ में जुट गये। लेकिन एक नवीन अनुभव था मेरे लिये। अमेरिका के अस्पताल और […]

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अपनी बचा लूं और दूसरे की रीत दूँ

पहली बार अमेरिका 2007 में जाना हुआ था। केलिफोर्निया में रेड-वुड नामक पेड़ का घना जंगल है। हम मीलों-मील चलते रहे लेकिन जंगल का ओर-छोर नहीं मिला। इस जंगल में सैकड़ों साल पुराने रेड-वुड के पेड़ थे, इतना घना जंगल देखकर आनन्द आ रहा था। लेकिन एक बात मुझे हैरान कर रही थी और वो […]

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पहले जुड़िये फिर बात कहिये

पहले जुड़िये फिर बात कहिये बोल झमूरे, खेल दिखाएगा? हाँ दिखाऊंगा। आज बन्दरियाँ को कहाँ- कहाँ घुमाया? बन्दरियाँ के लिये नये कपड़े लेने कहाँ गया था? क्या कहा, मॉल में! एकदम नये फैशन के कपड़े लाया हूँ। अरे मॉल में तो कपड़े बड़े महंगे मिलते हैं! तो क्या? मेरी बन्दरियां भी तो बेशकीमती है। तो […]

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यही जीवन है, यही सफलता है और यही सुख है

यही जीवन है, यही सफलता है और यही सुख है मैं अपनी जिन्दगी की जाँच-परख करती रहती हूँ, कभी दूसरों की नजरों से देखती हूँ तो कभी अपनी नजरों से। आप भी आकलन करते ही होंगे कि क्या पाया और क्या खो दिया। मेरे सोचने का ढंग कुछ बेढंगा सा है, मैं सोचती हूँ कि […]

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विदेश में जीवनसाथी और देश में पति

विदेश में जीवनसाथी और देश में पति हम घर में दोनों पति-पत्नी रहते हैं, गाड़ी एक ही धुरी पर चलती है। दोनों ही एक-दूसरे को समझते हैं इसलिये कुछ नया नहीं होता है। लेकिन जैसे ही हमारे घर में कोई भी अतिथि आता है, हमारे स्वर बदल जाते हैं, हम खुद को अभिव्यक्त करने में […]

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