अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

Archive for September, 2018

हमारे मन में बसा है राजतंत्र

वाह रे लोकतंत्र! तू कहने को तो जनता के मन में बसता है लेकिन आज भी जनता तुझे अपना नहीं मानती! उसके दिल में तो आज भी रह-रहकर राजतंत्र हिलोरे मारता है। मेरे सामने एक विद्वान खड़े हैं, उनके बचपन को मैंने देखा है, मेरे मुँह से तत्काल निकलेगा कि अरे तू! तू कैसे बन […]

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कहीं दीप जलेंगे – कही दिल

साँप-छछून्दर की दशा, मुहावरा तो आपने सुना ही होगा। एक साँप ने छछून्दर पकड़ लिया, अब यदि साँप छछून्दर को निगल लेता है तो वह अंधा हो जाता है और उगलना उसके वश में नहीं। मैंने इस मुहावरे का उल्लेख क्यों किया है, यह बताती हूँ। परसो मोदी जी अपने कार्यकर्ताओं से बात कर रहे […]

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मेरे पहलवान को अखाड़े में नहीं उतारा तो????????

पहले गाँवों में एक अखाड़ा होता था, वहाँ पहलवान आते थे और लड़ते थे। जब दंगल होते थे तो गाँव वाले भी देखने आ जाते थे नहीं तो पहलवान तो रोज ही कुश्ती करते थे। जैसे ही पहलवान अखाड़े से बाहर आया वह अपनी दुनिया में रम जाता था। वह हर जगह को अखाड़ा नहीं […]

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जहरीला धुआँ फैल रहा है

कंटीले तारों से बनी सीमा, इस पार सैनिक तो दूसरी पार महिलाएं। महिलाएं हाथों में किसी पुरुष की फोटो लिये हैं और वे मौन फरियाद कर रही हैं सैनिकों से कि हमारे घर का यह शख्स कहीं खो गया है, आपने देखा है क्या? सैनिक फोटो हाथ में लेते हैं और ना मैं सर हिला […]

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नरम नेता चुनो और गुलामी का आनन्द लो

घर में पिताजी सख्त हों और माताजी नरम तो पिताजी नापसन्द और माताजी पसन्द। स्कूल में जो भी अध्यापक सख्त हो वह नापसन्द और जो नरम हो वह पसन्द। ऑफिस में जो बॉस सख्त हो वह नापसन्द और जो हो नरम वह पसन्द। जो राजनेता सख्त हो वह नापसन्द और जो नरम हो वह पसन्द। […]

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