जब बच्चे थे तब भी दीवाली की सफाई करते थे और अब, जब हम बूढ़े हो रहे हैं तब भी सफाई कर रहे हैं। 50 साल में क्या बदला? पहले हम ढेर सारा सामान निकालते थे, कुछ खुद ही वापस ले लेते थे, कुछ भाई लोग ले जाते थे और जब थोड़ा बचता था तो […]
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इस ओर ध्यान दीजिए माननीय
यह जो श्रद्धा होती है ना वह सबकी अपनी-अपनी होती है, जैसे सत्य सबके अपने-अपने होते हैं। अब आप कहेंगे कि सत्य कैसे अलग-अलग हो सकते हैं? जिसे मैंने देखा और जिसे मैंने अनुभूत किया वह मेरा सत्य होता है और जिसे आपने देखा और आपने अनुभूत किया वह आपका सत्य होता है उसी प्रकार […]
Read the rest of this entry »मैं इसे पाप कहूंगी
अभी शनिवार को माउण्ट आबू जाना हुआ, जैसे ही पहाड़ पर चढ़ने लगे, वन विभाग के बोर्ड दिखायी देने लगे। “वन्य प्राणियों को खाद्य सामग्री डालने पर तीन साल की सजा”, जंगल के जीव की आदत नहीं बिगड़नी चाहिये, यदि आदत बिगड़ गयी तो ये सभी के लिये हानिकारक सिद्ध होंगे। आश्चर्य तब होता है […]
Read the rest of this entry »अब कब 565?
हमारा भारत है ना, यह 565 रियासतों से मिलकर बना है। अंग्रेजों ने इन्हें स्वतंत्र भी कर दिया था लेकिन सरदार पटेल ने इन्हें एकता के सूत्र में बांध दिया। ये शरीर से तो एक हो गये लेकिन मन से कभी एक नहीं हो पाए। हर रियासतवासी स्वयं को श्रेष्ठ मानता है और दूसरे को […]
Read the rest of this entry »बैताल को ढोता विक्रमादित्य
मेरे अन्दर मेरी अनूभूति को समेटने का छोटा सा स्थान है, वह शीघ्र ही भर जाता है और मुझे बेचैन कर देता है कि इसे रिक्त करो। दूध की भगोनी जैसा ही है शायद यह स्थान, जैसे ही मन की आंच पाता है, उफन जाता है और बाहर निकलकर बिखर जाता है। मैं कोशिश करती […]
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