सारी दुनिया में बेरोजगारी अपने पैर फैला रही है और दूसरी तरफ अत्यधिक काम का दवाब लोगों को तनाव ग्रस्त कर रहा है। परिवार संस्था बिखर गयी है और विवाह संस्था भी दरक रही है। अमेरिका से चलकर ओबामा भारत नौकरियों की तलाश में आते हैं और मनमोहन सिंह जी कहते हैं कि हम नौकरी […]
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किसान को जितनी चिन्ता फसल की है उतनी ही अपनी संतान की भी है, कितना संवेदनशील है हमारा किसान लेकिन हम? – अजित गुप्ता
अभी सुबह ही भोपाल से लौटी हूँ। राष्ट्रीय नारी साहित्यकार सम्मेलन के एक सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में मुझे भागीदारी निभानी थी। सम्मेलन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। इसके समाचार और कभी दूंगी लेकिन आज जिस पोस्ट को लिखने का मन कर रहा है वो कुछ अलग ही बात है। भोपाल से उदयपुर के […]
Read the rest of this entry »क्या आप विश्वसनीय हैं? बचपन के इस “प्रश्न” को आज मैंने अलविदा कह दिया है – अजित गुप्ता
क्या आप विश्वसनीय हैं? यह प्रश्न मेरे आसपास हमेशा खड़ा हुआ रहता है। कभी पीछा ही नहीं छोड़ता। बचपन से लेकर प्रस्थान के नजदीक भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। कभी पिताजी पूछ लेते थे कि तुम विश्वसनीय संतान हो? उनके पूछने का तरीका भी नायाब था, ठोक बजाकर देखते थे और फिर पूछते […]
Read the rest of this entry »आप विशेष हैं लेकिन पारिवारिक प्रेम आपको अतिविशेष बनाता है – अजित गुप्ता
मेरी भान्जी का ढाई वर्षीय पुत्र है सम्यक। वह अभी कुछ दिन पहले ही अमेरिका से आया है, उसका जन्म भी वहीं हुआ था तो अधिकांश परिवार के सदस्यों ने उसे पहली बार देखा था। उसका नाम आने पर सभी लोग गदगद सा महसूस कर रहे थे। खैर अभी 2 सितम्बर को ही मैं भी […]
Read the rest of this entry »मृत्यु के समय रीति-रिवाज और कर्मकाण्ड कितने जरूरी और कितने गैर जरूरी – अजित गुप्ता
आज संगीताजी की एक पोस्ट कर्मकाण्डों को लेकर आयी। मुझे लगता है कि समाज में स्थापित कर्म-काण्ड और रीति-रिवाज पर चर्चा होनी चाहिए कि यह सामाजिकता और परिवार के लिए कितने आवश्यक हैं और कितने अनावश्यक। आज के युग में कई बार देखने में आता है कि हम ऐसे रिवाजों को त्याग देते हैं जिनसे […]
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