अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

Archive for the 'मेरा मन' Category

सुकून आता जाएगा – अजित गुप्‍ता

वर्तमान में हम सब प्रेम के लिए तरस उठते हैं, सारे सुख-सुविधाएं एक तरफ हो जाती हैं और प्रेम का पलड़ा दूसरी तरफ हमें बौना सिद्ध करने पर तुला रहता है। कुछ दिन पूर्व एक आलेख लिखा था, आज उसका स्‍मरण हो आया। कारण भी था कि कुछ पोस्‍ट ऐसी पढ़ी जिसमें उहापोह था, शायद […]

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मन से पंगा कैसे लूँ, यह अपनी ही चलाता है – अजित गुप्‍ता

यह मन भी क्‍या चीज है, न जाने किस धातु का बना है? लाख साधो, सधता ही नहीं। कभी लगता है कि नहीं हमारा मन हमारे कहने में हैं लेकिन फिर छिटककर दूर जा बैठता है। अपने आप में मनमौजी होता है “मन”। ना यह हमारी परवाह करता है और ना ही हम इसकी परवाह […]

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