इक बंद पिटारी खोली तो कुछ गर्द उड़ी कुछ सीलन थी कुछ पन्ने उड़कर हाथ आ गए इक बूंद आँख से तभी गिरी बूंदों के अन्दर तैर गई मेरे अतीत की सारी रेखाएं। गर्द हटी तो काले अक्षर थे दिल को छू छूकर मुझमें समा गए। पन्नों को हाथों में थामा तो सहलाने पर […]
Read the rest of this entry »तीन पीढ़ी का बचपन : कौन सही कौन गलत?
कहते हैं बचपन की कसक जीवन भर सालती है। बचपन के अभाव जिन्दगी की दिशा तय करते हैं। कभी अभाव मिलते हैं और कभी अभावों का भ्रम बन जाता है। कभी प्रेम नहीं मिलता तो कभी प्रेम का अतिरेक प्रेम को विकृत कर देता है। हमारी पीढ़ी के समक्ष तीन पीढ़ियां हैं। एक स्वयं की, […]
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