कल एक पुत्र का संताप से भरा पत्र पढ़ने को मिला। उसके साथ ऐसी भयंकर दुर्घटना हुई थी जिसका संताप उसे आजीवन भुगतना ही होगा। पिता आपने शहर में अकेले रहते थे, उन्हें शाम को गाड़ी पकड़नी थी पुत्र के शहर जाने के लिये। सारे ही रिश्तेदारों से लेकरआस-पड़ोस तक को सूचित कर दिया गया […]
Read the rest of this entry »मैंने माँ-पिता से क्या सीखा?
प्रथम गुरु माँ होती है। मैंने माँ से क्या सीखा? माँ के बाद पिता गुरु होते हैं। मैंने पिता से क्या सीखा? देखें आज आकलन करें। मेरे पिता दृढ़ निश्चयी थे, उन्हें मोह-ममता छूते नहीं थे। हर कीमत पर अपनी बात मनवाना उनकी आदत में शुमार था। घर में उनका एक छत्र राज था। माँ […]
Read the rest of this entry »कविता – बचपन के पन्ने मेरे हाथों में
इक बंद पिटारी खोली तो कुछ गर्द उड़ी कुछ सीलन थी कुछ पन्ने उड़कर हाथ आ गए इक बूंद आँख से तभी गिरी बूंदों के अन्दर तैर गई मेरे अतीत की सारी रेखाएं। गर्द हटी तो काले अक्षर थे दिल को छू छूकर मुझमें समा गए। पन्नों को हाथों में थामा तो सहलाने पर […]
Read the rest of this entry »बाकी है एक और बर्बरता के समाचार
अभी एक और ज्वलंत समस्या से हमें दो-हाथ होना है। अभी पुरुष बर्बरता के कारण महिलाएं संकट में पड़ी है, देश और दुनिया इनकी बर्बरता का हल ढूंढ रहे है। सारा ही देश आंदोलित है, लेकिन तर्क-वितर्क से समाधान नहीं समझ आ रहा। पुरुष की बर्बरता सभी ने स्वीकार की है लेकिन उसे अनुशासित […]
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