अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

छैनी-हथौड़ी और कागज-कलम ही हैं इतिहास की संजीवनी

काल के हाथों विध्‍वंस हुए सैकड़ों किले, छिन्‍न-भिन्‍न हो चले हजारों महल, क्षत-विक्षत लाखों हवेलियां, आज भी अपना अस्तित्‍व तलाशती हुई हर गाँव कस्‍बे में दिखायी दे जाती हैं। न जाने कितनी कहानियां इनके नीचे दफ्‍न हैं और न जाने कितनी कारीगरी इनमें समायी हुई हैं! जब एक किला बनता है तब न जाने कितने […]

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कलाकार और सम्‍मान

सम्‍मान भी क्‍या चीज है, अच्‍छे-अच्‍छे समझदारों को पगला बना देती है। एक कलाकार कोणार्क का सूर्य मन्दिर गढ़ता ही रहा, क्‍यों? अपनी अनुपम कलाकृति के लिए सम्‍मान पाने के लिए! न जाने कितने कलाकार इस धरती पर कभी अजन्‍ता बनाते रहे तो कभी एलोरा, कभी पहाड़ की ऊंची चोटी पर जाकर एक ही पत्‍थर […]

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