अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

आखिर माँ लौट आयी

सूरज ढल चुका था, सारे ही पक्षी अपने बसेरों में आ चुके थे। बोगेनवेलिया से चीं-ची की आवाजें तेज होने लगी, मुझे लगा कि माँ लौट आयी है। सारा दिन बच्‍चे अकेले रहे थे। ना दाना और ना पानी। अपनी सुरक्षा भी बोगेनवेलिया के पत्तों के बीच छिपकर की थी। आज सुबह ही मेरे बगीचे […]

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