अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

कभी घर का मन भी रूठ जाता है

हम अक्सर कहते हैं कि घर ईंट पत्थरों से बने होते हैं, भला उनमें मन कहाँ होता है? लेकिन घर के अन्दर भी मन होता है। जब हम घर की चाहत रखते हैं तब घर हमारे सामने आ खड़ा होता है लेकिन जब हम घर से दूर भागते हैं तो घर भी हमारी आँखों से […]

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बाहर के दायरों से घर तक

कल आँधी का प्रबल वेग था, घर की गेलेरी पत्तों से इस तरह अटी पड़ी थी जैसे पतझड़ ने आज ही अपना सम्‍पूर्ण चोला उतारा हो। पूजा को फोन लगाया कि आज कुछ जल्‍दी आ जाए, जिससे चारों तरफ फैले पत्ते अपने दायरे में सिमट जाए। लेकिन उसने फोन नहीं उठाया, सोचा अब जब आएगी, […]

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