अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

गुटर गूं के अतिरिक्त नहीं है जीवन

मसूरी में देखे थे देवदार के वृक्ष, लम्बे इतने की मानो आकाश को छूने की होड़ लगी हो और गहरे इतने की जमीन तलाशनी पड़े। पेड़ जहाँ उगते हैं, वे वहाँ तक सीमित नहीं रहते, आकाश-पाताल की तलाश करते ही रहते हैं। हम मनुष्य भी सारा जहाँ देखना चाहते हैं, सात समुद्र के पार तक […]

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मेरे अंदर एक संसार है

मेरे अंदर एक पूरा संसार है। बचपन है, जवानी है और मेरा भविष्य है। मेरे अंदर मेरे माता-पिता है, भाई-बहन हैं, मेरे बच्चे हैं, पति है और मेरे मित्र हैं। बचपन का सितौलिया है, गिल्ली-डंडा है, पहल-दूज है, छिपा-छिपायी है कंचे हैं, गिट्टे हैं, रस्सीकूद है। ताश है, चौपड़ है, केरम है, शतरंज है, चंगा-पौ […]

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आपके जीवन में मैं हूँ

कड़कड़ाती ठण्‍ड हो, हम अपने आपमें ही सिमट रहे हों और कोई बाहें अपनी सी उष्‍मा देने को दिखायी नहीं दे रही हो तभी ऐसे में सूरज की गुनगुनी धूप आपको उष्मित कर दे तब आप झट से सूरज की ओर ताकेंगे, उसी समय सूरज मुस्‍कराता हुआ आपसे कहे कि तुम्‍हारे जीवन में मैं हूँ, […]

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