अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

लड़ना क्या इतना आसान होता है?

लड़ना क्या इतना आसान होता है? पिताजी जब डांटते थे तब बहुत देर तक भुनभुनाते रहते थे, दूसरों के कंधे का सहारा लेकर रो भी लेते थे लेकिन हिम्मत नहीं होती थी कि पिताजी से झगड़ा कर लें या उनसे कुछ बोल दें। माँ भी कभी ऊंच-नीच बताती थी तो भी मन मानता नहीं था, […]

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गड़बड़ी पपोलने में है

कल मैंने दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक पति की लाचारी की दास्तान लिखी थी, सभी ने बेचारे पति पर तरस खाने की बात लिखी। अब मैं अपना पक्ष लिखती हूँ। आजादी के बाद घर में पुत्र का जन्म थाली बजाकर, ढिंढोरा पीटने का विषय होता था और माँ-दादी पुत्र को कलेजे के टुकड़े की तरह […]

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