अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

आजाद तो प्रकृति भी नहीं  है

  जब आँधी चलती है तब धूल का गुबार उठता ही है. पेड़ से पत्ते झड़ते ही हैं। जब भूकम्प आता है तब समुद की लहरे तूफानी हो ही जाती है, जब मेघ गरजते हैं तब बरसाती आफत अपना कहर बरपाती ही है। क्या कहेंगे इसे? प्रकृति का नियम या प्रकृति की बर्बरता? जिस प्रकृति […]

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मधुमक्‍खी शहद बनाती है और मनुष्‍य जहर बनाता है

  प्रकृति अपने यौवन पर है, बगीचों में जहाँ तक नजर जाती है, फूल ही फूल दिखायी देते हैं। भारतीय त्‍योहार प्रकृति पर आधारित हैं इसी कारण यह मौसम त्‍योहारों का भी रहता है। अभी होली गयी, फिर नया साल आ गया और अब गणगौर। त्‍योहारों के कारण परिवारों में प्रेम भी फल-फूल रहा है। […]

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