अजित गुप्ता का कोना

साहित्‍य और संस्‍कृति को समर्पित

तू इसमें रहेगा और यह तुझ में रहेगा

प्रेम में डूबे जोड़े हम सब की नजरों से गुजरे हैं, एक दूजे में खोये, किसी भी आहट से अनजान और किसी की दखल से बेहद दुखी। मुझे लगने लगा है कि मैं भी ऐसी ही प्रेमिका बन रही हूँ, चौंकिये मत मेरा प्रेमी दूसरा कोई नहीं है, बस मेरा अपना मन ही है। मन […]

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तेरे बिना मेरा नहीं सरता रे

हमेशा कहानी से अपनी बात कहना सुगम रहता है। एक धनवान व्यक्ति था, वह अपने रिश्तेदारों और जरूरतमंदों की हमेशा मदद करता था। लेकिन वह अनुभव करता था कि कोई भी उसका अहसान नहीं मानता है, इस बात से वह दुखी रहता था। एक बार उसके नगर में एक संन्यासी आए, उसने अपनी समस्या संन्यासी […]

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क्या पता इतिहास के काले अध्याय भी सफेद होने के लिये मचल रहे हों!

मुझे रोजमर्रा के खर्च के लिये कुछ शब्द चाहिये, मेरे मन के बैंक से मुझे मिल ही जाते हैं। इन शब्दों को मैं इसतरह सजाती हूँ कि लोगों को कीमती लगें और इन्हें अपने मन में बसाने की चाह पैदा होने लगे। मेरे बैंक से दूसरों के बैंक में बिना किसी नेट बैंकिंग, ना किसी […]

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परशुराम को डिगा दे उसे मन की चाहतें कहते हैं

मन को परत दर परत खोल दो, पता लगेगा कि न जाने कितनी ख्वाइशें यहाँ सोई पड़ी हैं, जिन ख्वाइशों को हम समझे थे कि ये हमारे मन का हिस्सा ही नहीं हैं, वे तो अंदर ही अंदर अपना अस्तित्व बनाने में जुटी हैं बस जैसे ही किसी ने उन्हें थपकी देकर जगाया वे सर […]

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कितना गोपनीय जीवन बना लेते हैं कुछ लोग

अभी-अभी एक sms आया – 13 दिन शेष हैं, अपनी छिपी सम्पत्ती उजागर करने के लिये। अपनी जेब पर निगाह गयी, कहीं कुछ छिपा है क्या? यहाँ तो जिसे सम्पत्ती कहें ऐसा भी कुछ नहीं है लेकिन खुद को धनवान तो हमेशा से ही माना है। एक खजाना है जो मन के किसी कोने में […]

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